आपका-अख्तर खान

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19 मई 2011

ऐसा केसे होता है मिलन ....

सुबह का जब 
रात में 
हो रहा था मिलन ..
तब मेने सोचा 
यह केसा मिलन है .
सूरज का जब 
पहाड़ों से 
हो रहा था मिलन 
तब मेने सोचा 
यह केसा मिलन है .
आसमान का 
पहाड़ों से 
जब हो रहाथा मिलन 
मेने सोचा 
यह केसा है मिलन ..
समुन्द्र का नदियों से 
हो रहा था जब मिलन 
मेने सोचा 
यह केसा है मिलन ...
इंसान का इंसान से 
जब हुआ मिलन 
मेने तब भी सोचा 
यह केसा है मिलन 
इनमे कोन किस ज़ात किस सम्प्रदाय का है .
अब सोचता हूँ 
जानदार से तो बेजान चीजें अच्छी हैं 
जो बेजुबान हैं 
जो सिर्फ और सिर्फ मिलती ही हैं 
और किसी से कुछ सवाल नहीं करती है .
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

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