खून का गोरख धंधा
नेगेटिव ब्लड ग्रुप चढ़ाने के बाद मौत से उपजे विवाद पर भास्कर ने पैथोलॉजी, ब्लड बैंक से जुड़े वरिष्ठ चिकित्सकों और हेमेटोलॉजी विशेषज्ञों से बातचीत कर यह पता लगाने की कोशिश की कि आखिर किन हालात में मरीज को ब्लड दिया जा सकता है अथवा नहीं।
मौत तो नहीं हो सकती: हालांकि विशेषज्ञ इस बात पर एक राय नहीं हैं कि पॉजिटिव ग्रुप के व्यक्ति को नेगेटिव ब्लड चढ़ाया जा सकता है या नहीं। हां, सभी डॉक्टरों ने यह जरूर कहा कि इमरजेंसी में ऐसा किया जा सकता है और यह मौत का कारण नहीं बनता। लेकिन ऐसा एक बार ही हो सकता है।
...लेकिन इमरजेंसी में ही: विशेषज्ञों का मानना है कि अस्पताल में भर्ती किसी मरीज का ब्लड ग्रुप यदि पॉजीटिव है तो उसे सही क्रॉस मैचिंग करके नेगेटिव ग्रुप का रक्त चढ़ाया जा सकता है, इससे मरीज के जीवन को कोई खतरा नहीं होता है। हालांकि यह मरीज की स्थिति गंभीर होने पर इमरजेंसी में या पॉजीटिव रक्त उपलब्ध नहीं होने पर ही दिया जाना चाहिए।
राज्य का 40 फीसदी रक्तदान कोटा में: राज्य में रक्त की 40 प्रतिशत जरूरत को पूरा करने वाले कोटा शहर में दो प्राइवेट और एक सरकारी ब्लड बैंक में 15 हजार से ज्यादा स्वैच्छिक रक्तदाता रक्तदान तो कर रहे हैं, लेकिन नियमित रक्तदाताओं की संख्या अभी भी बहुत कम है। रक्त की सबसे ज्यादा कमी एमबीएस स्थित सरकारी ब्लड बैंक में रहती है, जहां करीब 225 थैलेसीमिया बच्चों के अलावा गंभीर भर्ती मरीजों के ऑपरेशन, दुर्घटना में घायलों और गरीब महिलाओं को प्रसव के दौरान रक्त की जरूरत हमेशा बनी रहती है। कोटा ब्लड बैंक में भी 135 थैलेसीमिया बच्चों को माह में दो बार रक्त दिया जा रहा है। शहर में एबी नेगेटिव और ओ नेगेटिव ब्लड की कमी हमेशा रहती है। नेगेटिव रक्तदाताओं की संख्या भी बहुत कम है।
कोटा ब्लड डोनर क्लब डॉट कॉम: इस वेबसाइट पर दो साल में करीब 6 हजार स्वैच्छिक रक्तदाताओं ने अपना ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराया है। अध्यक्ष भुवनेश गुप्ता ने बताया कि इससे स्वैच्छिक रक्तदान के प्रति अवेयरनेस बढ़ी है। जरूरत के समय मरीज को रक्त उपलब्ध कराने के लिए कई एनजीओ सक्रिय योगदान कर रहे हैं।
रक्त की जांच इतनी महंगी क्यों: रक्त की जरूरत पड़ने पर मरीजों को इलाज के साथ रक्त की महंगी जांच का दर्द भी झेलना पड़ता है। इसका मुख्य कारण यह है कि सरकार ने एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी और हेपेटाइटिस-सी की जांच को अनिवार्य किया हुआ है। रक्त में एचआईवी की जांच पर 150 रुपए, हेपेटाइटिस-बी व हेपेटाइटिस-सी की जांच पर 100-100 रुपए खर्च आता है,जबकि हेपेटाइटिस-सी की जांच में 0.1 प्रतिशत से भी कम पॉजिटिव निकलते हैं। बड़े शहरों में ऑटोमेटिक क्रॉस मैच करने की सुविधा भी आ गई है, लेकिन फिलहाल यह बहुत महंगी है।
अब नेट टेस्ट भी: कोटा ब्लड बैंक के डॉ.पीएस झा के अनुसार, भविष्य में रक्त की जांच के लिए न्यूक्लिक एसिड टेस्ट (नेट)भी कराया जा सकेगा, इसकी जांच पर 1 हजार रुपए खर्च होंगे। इससे रक्त में किसी वायरस की उपस्थिति 3 हफ्ते की बजाय 1 हफ्ते में पता लग सकती है। इससे विंडो पीरियड कम होता है, लेकिन जांच अभी महंगी है।
इमरजेंसी में दे सकते हैं नेगेटिव रक्त: ब्लड के आर एच की क्रॉस मैचिंग में 2 से ढाई घंटे का समय लगता है, इसलिए इमरजेंसी में आर एच पॉजिटिव को आर एच नेगेटिव भी दिया जा सकता है। जब भी क्रॉस मैचिंग में संशय हो तो आर एच नेगेटिव सबसे सुरक्षित रक्त माना जाता है। - डॉ.नरेश एन.राय, एचओडी,पैथोलॉजी, मेडिकल कॉलेज, कोटा
यह खतरनाक हो सकता है: मेरे विचार से पॉजिटिव रक्तग्रुप वाले रोगी को नेगेटिव रक्त नहीं दिया जाना चाहिए, यह खतरनाक सिद्ध हो सकता है। आर एच पॉजिटिव ज्यादा और नेगेटिव कम होने पर लाल रक्त कणिकाएं टूटने से पीलिया हो सकता है। - डॉ. पीएल ढांडे, एचओडी, पैथोलॉजी, मेडिकल कॉलेज, इंदौर
सिर्फ एक बार दे सकते हैं: पॉजिटिव को नेगेटिव ग्रुप सिर्फ एक बार ही दिया जा सकता है, दोबारा नहीं। ए, बी और ओ मेजर ग्रुप हैं और आर एच माइनर ग्रुप होता है। आर एच ग्रुप एक समान न होने पर हिमेलाइसिस हो जाता है, लेकिन इससे मौत नहीं हो सकती। - डॉ. अजय बाफना, हेमेटोलॉजिस्ट, महावीर कैंसर हॉस्पिटल, जयपुर
उपलब्ध न हो तो दे सकते हैं: आपातकालीन स्थिति में जब पॉजिटिव ग्रुप उपलब्ध न हो तो क्रॉस मैचिंग करके नेगेटिव ग्रुप भी दिया जा सकता है, तुलनात्मक रूप से यह गलत नहीं है। पॉजिटिव ग्रुप को नेगेटिव ग्रुप देने से किसी रोगी की मौत नहीं हो सकती है। - डॉ.एसएस अग्रवाल, स्वास्थ्य कल्याण ब्लड बैंक, जयपुर
इसमें कोई रिस्क नहीं: पॉजिटिव ब्लड ग्रुप को नेगेटिव रक्त देने में कोई जोखिम नहीं होती है, हालांकि नेगेटिव ब्लड ग्रुप की गर्भवती महिलाओं को पॉजिटिव रक्त देने से नवजात शिशु को समस्या हो सकती है, इसलिए ऐसे मामलों में इससे बचना चाहिए। - डॉ.वेदप्रकाश गुप्ता, अध्यक्ष, आईएसबीटीआई
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