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24 अप्रैल 2011

अपनी साहित्यकार माँ को समर्पित एक बेटी है साधना वेद

    कहते हैं माँ के पैर के नीचे जन्नत होती है , और माँ के लालन पालन से ही उसकी गोद में पलने वाला बचपन अपना भविष्य तय करता है , अपनी माँ को दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार करने वाली साधना वेद प्रथम महिला आदर्श बेटी ब्लोगर हैं जिन्होंने अपनी माँ के साहित्य को एक डायरी के माध्यम से एक ब्लॉग के माध्यम से दुनिया में प्रसिद्ध कर दिया है .


जी हाँ दोस्तों हम बात कर रहे है अपनी माँ के प्रति साधक बनी एक बेटी साधना वेद की, जिनका जन्म प्यार की इमारत ,सातवें अजूबे ,ताजमहल के शहर, आगरा में हुआ है ,बहन साधना वेद ,यूँ तो वर्ष २००८ से ब्लोगिंग की दुनिया में धूम मचा रही हैं ,लेकिन इनके विशेष ब्लॉग उन्मना unmana   और सुधिनमा sudhinama में जिंदगी का हर सच भर कर रख दिया है .हिंदी ब्लोगिंग में अपने माँ और बाबूजी की यादगार स्म्रतियों के साथ ब्लोगिंग करने वाली पहली भारतीय महिला साधना वेद जी को संगीत सुनना, लेखन कार्य करना और अध्ययन करना बहुत अच्छा  लगता है .
साधना जी का कहना है के वास्तव में, हमारे दुखों का कारण, हमारी चुप्पी है ,हम अपने आसपास, घटित होने वाली, अवांछनीय गतिविधियों के प्रति जिस तरह से खामोश रहकर, तटस्थ रहते हैं, इसी के कारण अपराधियों के होसले बुलद होते हैं ,अपराध सहते रहने की लोगों की खामोशी की आदत का खिमियाज़ा आज देश और समाज को सहना पढ़ रहा है , समाज के अध्ययन में काफी लम्बी साधना करने के बाद ,समाज के बिगाड़ का यह मूलमंत्र बहना साधना जी के हाथ लगा है ,जो शत प्रतिशत नंगा सच है अगर हम हमारे आसपास किसी भी गलत काम का विरोध करना शुरू करदे, उसे सहना छोड़ दें, तो निश्चित तोर पर बुरे लोगों के होसले पस्त होंगे ,और बुराई सच्चाई से हार जायेगी लेकिन इस मन्त्र पर कोई भी अमल नहीं करता है, इसीलियें बहन साधना ने दुखी मन से इस सच को उजागर कर डाला है . 
साहित्य के लिए समाज का दर्द, और समझ चाहिए, इस सच्चाई को बहन साधना यूँ समझाती हैं ,वोह कहती हैं के ना दिल में जख्म ना आँखों में ख्वाब, की किरने, फिर किस गुमान पर ,इतने दीवान लिख डाले ,,,,,बात साफ़ है के लेखन और अच्छे लेखन के लिए एक दर्द एक अनुभव की जरूरत है ....वोह बहतरीन गज़ल बहतरीन साहित्य के लियें कहती हैं के,, तमाम उम्र ,जब इस दर्द को जिया मेने, तब कहीं जाके, यह छोटी सी गजल लिखी है मेने .,,,.

अपनी माँ ,और बाबूजी की यादों में खोयी एक प्यारी सी बिटिया कब साहित्यकार बन गयी, उन्हें पता ही नहीं चला और जब वोह लिखने लगी तो अपनी माँ की डायरी जिसमें जर्रे से लेकर आफताब तक यानी मोसम सर्दी गर्मी,बसंत, त्यौहार, होली ,दीवाली, जज्बात ,दुःख ,दर्द, जीने का एक  फलसफा, गरीबी, अमीरी ,सामाजिक रीतिरिवाज प्यार मोहब्बत हर मुद्दे  पर जीवंत अक्षर उकेर कर ,साधना जी की माँ श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना किरण ने साहित्य की दुनिया में कभी न खत्म होने वाली सुगंध बिखेर दी है और इस सुगन्ध को अपनी माँ की डायरी में से बहन साधना ने अपने ब्लॉग के माध्यम से उन्मना में हम तक पहुंचाया है ऐसी लेखनी ऐसा साहित्य जो जिंदगी के जर्रे का अहसास कराता है ,वोह सिर्फ और सिर्फ साधना बहन की माँ का ही लिखा है , बहन साधना ने वर्ष २००८ से ब्लोगिग्न में सुधिनामा में भी संवेदनशील साहित्य ,रचनाएँ लिखी हैं पहले साधना जी ने अंग्रेजी में लिखा ,फिर हिंदी में जो लिखना शुरू किया तो सभी साहित्यकारों पर इनकी रचनाये भारी पढने लगी और इन्हें जब मुक्त कंठ से दाद मिली तो इन्होने कभी गरीबी , कभी महंगाई ,कभी भ्रस्टाचार, कभी मोसम के मिजाज़ तो कभी आज के बिगड़े हालातों पर ब्लोगिंग  की और इनके ब्लॉग आज अधिकम पढने वाले ब्लोगों में  शामिल हैं, एक भावुक और संवेदन शील, महिला ब्लोगर ने अकेले इतना जखीरा इकट्ठा कर परोस दिया है के पढने वालो से समेटे नहीं सिमट रहा है इनके ब्लॉग उन्मना के ६९ तो सुधिनामा के ७७ फोलोवर्स हैं जो हजारों हजार टिप्पणी से साधना बहन को दाद देते रहे हैं . इनकी रचना में जनता की आवाज़ हे ,गरीबी का दर्द है ,रिश्तों की आस है इनकी सबसे बहतरीन रचना माँ का एहसास आज भी लोग पढ़ कर अपने बचपन में खो जाते हैं इस रचना की खासियत यह के माँ अपनी ममता और बच्चे अपने बचपन की यादों को ताज़ा करने लगते हैं ऐसी ब्लोगर बहन जो कई दर्जन सांझा ब्लोगों में शामिल होकर ब्लोगिंग का मन बढ़ा रही हैं उन्हें सलाम ..................................... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

2 टिप्‍पणियां:

  1. अख्तर भाई आज कल आप ने ये जो नयी विधा शुरू की है जीवन चित्रण का बहुत ही प्यारा लगा कुछ हमने पढ़े बहुत सुन्दर सार्थक प्रयास आप का सराहना के योग्य अपने पेशे में व्यस्तता भी आप के आड़े नहीं आती धन्य है हमारी मिटटी जिसमे लाल ही लाल भरे हैं हीरे जड़े हैं निम्न बहुत सुन्दर लगा
    धन्यवाद
    अपनी माँ ,और बाबूजी की यादों में खोयी एक प्यारी सी बिटिया कब साहित्यकार बन गयी, उन्हें पता ही नहीं चला और जब वोह लिखने लगी तो अपनी माँ की डायरी जिसमें जर्रे से लेकर आफताब तक यानी मोसम सर्दी गर्मी,बसंत, त्यौहार, होली ,दीवाली, जज्बात ,दुःख ,दर्द, जीने का एक फलसफा, गरीबी, अमीरी ,सामाजिक रीतिरिवाज प्यार मोहब्बत हर मुद्दे

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  2. अख्तर भाई आपने जिन अल्फाजों में मेरा परिचय दिया है मैं खुद को इतनी तारीफ़ के लायक नहीं समझती ! आज देखा की आपके ब्लॉग पर भी यह आलेख है इसे मैंने शायद ब्लॉग की खबरें में पढ़ा था ! इतनी इज्ज़त देने के लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया !

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