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28 अप्रैल 2011

दर्द का अहसास अल्फाजों में पिरोकर जीवंत ब्लोगिंग कर रही हैं हरकीरत हीर

इक दर्द 
                                                       था सीने   में ,
                                                      जिसे 
                                                      लफ्जों में पिरोती रही 
                                                      दिल के दहकते 
                                                      अंगारे लिए में ,
                                                      जिंदगी की 
                                                      सीडियां चढ़ती   रही 
                                                      कुछ माज़ियों की 
                                                      कतरनें थीं ,
                                                      कुछ रातों की बेकसी 
                                                      जख्मों के ताकों में 
                                                       में रातों को सोती रही ..................जी हाँ दोस्तों यह चंद लाइनें हकीक़त हैं हरकीरत कलसी हकीर उर्फ़ हरकीरत हीर की और इसी दर्द ने हरकीरत कलसी हकीर को हरकीरत हीर बना दिया हरकीरत जी के सीने में छुपे दर्द को जब जब इन्होने कागज़ के कलेजे पर उतारा है तब तब इन्होने हजारों हजार नहीं लाखों लोगों से दाद पायी है , हरकीरत हीर की कलम से निकले अलफ़ाज़ एक ऐसी सच्चाई ऐसे दर्द का हिस्सा होते हैं के हर कोई इसे अपना हाल , अपनी जिंदगी समझ कर इस गीत,गज़ल,लेख,का जीवंत अहसास करता है ,और बेसाख्ता उसके मुंह से हरकीरत जी के लिए, वाह निकल जाती है , 
बहन ,हरकीरत हीर आसाम में गोहाटी के सुन्दरपुर में रहती है ,,और शायद इनके अल्फाजों और इनके व्यवहार ने ही इनके रहने वाले इलाके को इनके सुन्दर अहसास की वजह से सुन्दरपुर का नाम दिया हो , बहन हरकीरत जी किसी भी रचना को अल्फाजों में ढाल कर पहले तराशती है,, फिर एक सुन्दर अंदाज़ में ब्लोगिंग कर उसे खूबसूरती से पेश करती हैं ,,,अपनी कई सच का सामना करने वाली,रचनाओं के कारण, बहन हरकीरत जी अनेकों बार ब्लोगिंग का विवाद रहीं, लेकिन सभी ने बाद में खुद की गलती का एहसास किया और हरकीरत हीर के अहसास इनके अल्फाजों को समर्थन दिया है .
ब्लोगिंग की दुनिया में नोव्म्बर २००८ से जोर आज़माइश कर रही हरकीरत जी ब्लोगिंग की दुनिया की जान हैं ब्लोगिग्न की दुनिया का अहसास हैं जिनके बगेर ब्लोगिंग का सब कुछ नीरस सा लगता है ब्लोगिंग बिना हरकीरत हीर की रचना के बिना नमक के आते के सामान लगने लगती है और फिर हरकीरत जी जब ब्लोगिगिन में आती है तो एक नया अंदाज़ नया अहसास नई जिंदगी का तराना देखकर सभी को सुखद अहसास होता है . 
बहन हरकीरत हीर जी को पूरानी फिल्म पाकीज़ा और मुगलेआज़म बहुत पसंद है इन्हें दर्द भरी कविताओं का  काव्य संकलन बहुत बहुत पसंद है अपने विचारों को जिंदगी देने के लियें अल्फाजों को जिस माला में पिरोकर ब्लोगिंग के जरिये यह आपके सामने हैं उसका नाम खुद के नाम से यानि हरकीरत "हीर"है और इसी नाम से इनकी ब्लोगिंग है हाल ही में इनकी रचनाये..तवायफ की इक रात , दर्द की मुस्कुराहटें , लोगों को काफी पसं आ रही है अपनी ब्लोगिंग २१ सितम्बर २००९ को हरकीरत जी ने एक खत इमरोज़ के नाम से शुरू की थी और फिर पत्थर होता इंसान , ख़ामोशी चीरते सवाल जेसी रचनाओं ने हरकीरत को साहित्य में एक नई पहचाना दी जो आज ब्लोगिंग की दुनिया में बहतरीन लिखने वाले साहित्यकारों में से प्रमुख हैं .हरकीरत जी के इस ब्लॉग के ४५१ अनुसरण करता है इनका  एक दूसरा ब्लॉग अनुवाद कार्य है जिसमें इन्होने एक नई विधा के तहत कुछ रचनाओं के अनुवाद किये हैं ,बहन हरकीरत जी ने पंजाबी में भी लिखा है और इनका एक ब्लॉग पंजाबी में जबकि कुछ सांझे ब्लॉग हिंदी और पंजाबी में भी चलते हैं , बहन हरकीरत जी की रचनाओं को पढो तो बस पढ़ते रहने और उसी में खो जाने को जी चाहता है इसीलियें तो हरकीरत हीर नहीं तो ब्लोगिंग केसी का नारा ब्लोगर्स की दुनिया में चल रहा है ..................... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान           

1 टिप्पणी:

  1. आद. अख्तर साहब .....
    आदाब .....
    आज आपने दर्द को नायाब तोहफ़ा दिया .....
    शायद आपने किसी पाक मस्ज़िद की ईंट चुराई होगी जो आपका ध्यान हीर की कलम की ओर गया ....
    आज मेरी कलम उस खुदा के आगे नतमस्तक है .....

    इतना लेखा -जोखा तो मैंने कभी रखा ही नहीं कब लिखना शुरू किया ...
    आपकी खोज से ही पता चला तीन साल गुजर चुके हैं ब्लोगिंग में ....
    शुक्रिया .....

    जवाब देंहटाएं

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