में पतझड़ हूँ
इसीलियें तो
तेरी सख्त शाखों से
यूँ टूट टूट कर
बिखर रहा हूँ
तुझ से
यूँ अलग होकर
रोज़ नीचे
जमीन पर
गिर रहा हूँ
बस
तू ही हे
जो हरियाली हे
इसीलियें तो
मासूम कोपलों की तरह
खुबसूरत हरे भरे
पत्तों की तरह
यूँ इन कठोर
टहनियों के
सीने से लगे बेठे हो ..................................
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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