जी हाँ दोस्तों जो संसद में होता हे जो विधानसभा में होता हे वाही अब बुद्धि जीवी वकीलों की संस्था में भी होने लगा हे संसद में एयर कन्डीशन और सात सितारा सुविधाओं में बेठ कर गरीबों के कल्याण की योजनायें बनती हें गरीबों की सेकड़ों समस्याएं ऐसी हें के किसी भी संसद से जुड़े आदमी और अधिकारी को पता नहीं हे ठीक यही चलन अब वकीलों में भी चल पढ़ा हे वकीलों ने वकीलों के लियें अजीब कानून बनाने का मन बनाया हे .
वकीलों की संस्था ने प्रस्ताव दिया हे के वकील अब पक्षकार से जो तय शुदा फ़ीस हे उससे कम फ़ीस नहीं लेंगे इसके लियें वकील फ़ीस का रजिस्टर और रसीद बुक रखेंगे और वकील फ़ीस पक्षकारों से चेक से ही ले सकेंगे . अजीब बात हे सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट जहां बोलने और मिलने के वकील लाखों रूपये ले लेते हें वहां तक तो यह बात ठीक हे लेकिन इस कानून का प्रस्ताव रखने वाले ऊँची दूकान के मालिकों को शायद पता नहीं हे के जिला और ताल्ल्लुका स्तर पर वकीलों की क्या समस्याएं हें वहां बेठने की जगह नहीं हे अदालत के कक्ष नहीं हे रीडर और बाबुओं की जगह नहीं हे इजलास नहीं हे मजिस्ट्रेट और जजों के कई पद रिक्त पढ़े हें और इस स्तर पर अस्सी फीसदी से भी अधिक पक्षकार ऐसे आते हें जिनके घरों के चूले नहीं जलते वोह फ़ीस कहां से देंगे उनसे तो जो मिल जाए उसी को वकील अपना महन्ताना मानता हे और फिर इनम लोगों को तो बेंक का रास्ता तक पता नहीं हे गाँव की हालत सब जाते हें ऐसे में चेक से फ़ीस लेने का प्रस्ताव इस गरीब निरक्षर देश में बेमानी नहीं तो और क्या हे .
वकीलों के नेताओं को अगर कानून बनाने का शोक हे तो वोह बनाएं के सभी अदालतों में सरकार सभी सुख सुविधाएं जो आवश्यक होती हे उपलब्ध कराए सभी अदालतों में पीठासीन अधिकारियों की नियुक्ति करे मजिस्ट्रेट और जजों को पाबन्द करें के वोह केवल अंदाज़े और सम्भावनाओं पर फेसले नहीं करे पुराने रिकोर्ड के आधार पर कार्यवाही नहीं करें जो भी पत्रावली में हे उसी के आधार पर मेरिट पर मुकदमे की कार्यवाही करें इसके आलावा कभी वोह गरीब वकीलों में आकर उठे बेठें उनकी समस्याएं सुने और समाधान करें ऐसे हास्यास्पद कानून अगर प्रस्तावित किये जाने लगे तो आ बेल मुझे मार वाली कहावत ही साबित होगी . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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