देश के प्रख्यात साहित्यकार शमशेर बहादुर सिंह को आज यहाँ भारतेंदु समिति कोटा में उनकी स्म्रति में दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित कर याद किया , भारतेंदु समिति भवन में आयोजित इस कार्यक्रम को कोटा की विकल्प साहित्यिक संस्था और राजस्थान हिंदी साहित्य एकेडमी उदयपुर के संयुक्त तत्वाधान में शुरू किया गया ।
तीसरा खम्भा और अनवरत के संस्थापक ब्लोगर किंग भाई दिनेश राय द्विवेदी भारत होटल से महमानों को कार्यक्रम स्थल पर लेकर पहुंचे और कार्यक्रम की शुरुआत की गयी भाई अम्बिका दत्त जी ने कार्यक्रम का संचालन शुरू किया महमानों को मंच पर बेठा कर कार्यक्रम की शुरुआत की गयी दीप के स्थान पर मशाल दीप प्रजलित किया गया और कार्यक्रम के शुभारम्भ के पहले भाई शरद तेलंग की मधुर आवाज़ में कोटा के ठाडा राही के गीत को सुना कर माहोल को जमाया गया शरद जी की मधुर आवाज़ ने सच वातावरण खुबसुरत और संगीतमय बना दिया ।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में जनाब महेंद्र नेह ने दर्द भरे अंदाज़ में बताया के इस कार्यक्रम की प्रस्तावना स्वर्गीय शिवराम जी ने बनाई थी लेकिन आज जब कार्यक्रम हो रहा हे तो वोह खुद हमें छोड़ कर चले गये , इसी दोरान शांति भारद्वाज राकेश ,डोक्टर कन्हय्या लाल ,अकील शादाब गीतकार कमलाकर, सईद महवी , कवि गोविन्द सिंह जी के निधन पर शोक व्यक्त किया गया ।
कार्यक्रम में जस्टिस शिव कुमार के नहीं आ पाने से रामकुमार कृषक जी से कार्यक्रम की अध्यक्षता करवाई गयी जबकि कवि साहित्यकार नन्द भारद्वाज को मुख्य अतिथि बनाया गया सुरेश सलिल विशिष्ट अतिथि थे कार्यक्रम में साहित्य एकेडमी से डोक्टर प्रमोद भट को आना था लेकिन वोह नहीं आये और प्रतिनिधि विष्णु पालीवाल को भेज दिया सभी वक्ताओं ने कवि साहित्यकार शमशेर की कविता रचना प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया वक्ताओं ने शमशेर को सरल और जटिल रचनाकार कवि बताया किसी ने उन्हें मार्क्सवादी कहा तो किसी ने उन्हें साहित्यकार के साथ साथ कलाकार चित्रकार शिल्पकार भी कहा ।
शमशेर बहादुर सिंह का जन्म १३ जनवरी १९११ को एक जाट परिवार में देहरादून में जन्म हुआ शमशेर ने इलाहाबाद से बी ऐ किया उनकी पत्नी का कम समय में ही मिर्त्यु हो गयी वोह फिर दिल्ली आ गये उन्होंने लगभग एक वर्ष तक दिल्ली में चित्रकारिता सीखी १९३७ में वोह हरिवंश राय बच्चन की प्रेरणा से वापस इलाहबाद चले गये वोह कलेक्ट्रेट में रीडर के पद पर कार्यरत रहे फिर बनारस में कहानी के सम्पादक हो गये इसी दोरान शमशेर कम्युनिस्ट की और बढ़ गये ,इनका नया साहित्य का निराला अंक बहुत चर्चित रहा ,फिर समशेर माया मैगज़ीन में सहायक सम्पादक हो गये १९५४ में इन्होने माया छोड़ दी इन्होने मनोहर कहानिया सहित कई दूसरी मेग्ज़िनों का भी सम्पादन किया इन्होने एक पुस्तक प्रकाशित की और फिर मध्य प्रदेश से तुलसी पुरस्कार के लियें चयन हुआ दिली में हिंदी उर्दू शब्दकोश में सहयोगी रहे १९७८ में शमशेर ने सोवियत संघ की यात्रा की कई संस्थाओं के अध्यक्ष रहने और साहित्य में गदध पदध की सेवा करने के बाद जब इनका लेखन इनके विचार बुलंदियों पर थे तब १२ माय १९९३ को इनका निधन हो गया इनका साहित्यिक योगदान आज भी अविस्मरनीय हे और इसीलियें इनकी प्रतिभा को जन जन तक पहुँचने के लियें विकल्प ने कोटा में दो दिवसीय कार्यक्रम रखा हे । कार्यक्रम में भारतेंदु समिति अध्यक्ष राजेश बिरला, मदन मदिर ,बार कोंसिल के सदस्य महेश जी गुप्ता, शरद तेलंग ,अर्चना सक्सेना,दृष्टिकोण के सम्पादक चटर्जी ,एडवोकेट विपिन बाफना, प्रशांत तहलियानी ,डोक्टर मनु शर्मा सहित दर्जनों साहित्यकार और पत्रकार उपस्थित थे . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
12 फ़रवरी 2011
साहित्यकार शम्शेर बहादुर सिंह को कोटा के साहिय्कारों ने याद किया
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उम्दा रपट..
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