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23 जनवरी 2011

आरक्षण आखिर खत्म क्यूँ नहीं किया जाता

दोस्तों इस देश की बर्बादी का एक प्रमुख कारण इन दिनों महंगाई भ्रस्ताचार के बाद आरक्षण माना जा रहा हे , महंगाई भ्रस्ताचार का खात्मा या उस पर नियन्त्रण तो नेताओं के हाथ में हे लेकिन एक बहुत बढ़ी देश की बिमारी आरक्षण को तो जनता खुद खत्म करने का सरकार पर दबाव बनाती हे ।
आज़ादी के बाद देश की उपजी स्थतियों में चाहे सरकार की आरक्षण देना मजबूरी रही हो लेकिन सरकार ने उस वक्त अनमन लगा लिया था के आरक्षण दस वर्षों से अधिक अगर दिया गया तो खतरनाक होगा और इसीलियें संविधान में आरक्षण मामले में केवल दस साल तक के आरक्षण का प्रावधान रखा गया था फिर कमजोर सरकारों ने जाती और समाज के डर से वोटों के लालच में आरक्षण को दस वर्ष के लियें बढ़ा दिया हद तो यह कर दी के आरक्षण के जो अद्यादेश देश में जारी किये गये उसमें धर्मनिरपेक्ष इस देश में विधान के विपरीत केवल जाती के आधार पर आरक्षण का आदेश जारी किया गया आदेश में कहा आज्ञा था के केवल हींदुओं को ही आरक्षण दिया जाएगा जबकि काका केलकर ने मांस का व्यवसाय करने वाले ,चमड़े का व्यवसाय करने वाले ,कपड़े बुनने का अव्यवसाय करने वालों सहित कई दस्तकारों को पिछड़ा मान कर आरक्षण देने की सिफारिश की थी जो इस व्यवसाय से जुड़े सभी जाती के दस्तकारों को दिया जाना थी लेकिन केंद्र की कोंग्रेस सरकार ने इसमें केवल हिन्दुओं के लियें शब्द जोड़ कर आरक्षण की सुविधा पिछड़े और मजलूम मुसलमानों से दूर कर दी नतीजा यह रहा के मांस के व्यापारी खटीकों को तो आरक्षण मिला लेकिन इसी व्यसाय से जुड़े कसाइयों को यह सुविधा नहीं दी गयी इतना ही नही कपड़ा बुनने वाले बुनकर समाज के कोलियों को तो आरक्षण दिया गया लेकिन मुलिम बुनकर अन्सारियों जुलाहों को इसका लाभ नहीं दिया ऐसी कई बेईमानियाँ इस सुविधा में जारी रखी गयीं लेकिन अब तो हर वर्ग हर जाती हर धर्म सभी आरक्षण के इस बहुत से चिंतित नजर आ रहे हें और घर घर की आवाज़ हे के आरक्षण का तो अब तमाशा बंद होना चाहिए लेकिन सियासत से जुड़े लोग जो इस देश से ज्यादा कुर्सी से जमे रहना बहतर समझते हें वोह आरक्षण के इस बहुत को आगे बढ़ा कर देश को घुन की तरह से बर्बाद करते रहे हें नतीजा सामजिक असंतुलन आज सबके समने हें स्वर्ण अब आरक्षित जातियों से निम्नतर और उनके गुलाम होते जा रहे हें और देश की जनता इस मुद्दे पर आज बगावत के कगार पर खड़ी हे , आज वर्ष २०११ में आरक्षण का संविधन के प्रावधानों के तहत दुबारा से दस वर्ष के लियें अध्य्देश को बढ़ाया जाना प्रस्तावित हे कोंग्रेस भाजपा या कोई भी पार्टी किसी भी स्तर पर वोटों के बेंक के कारण इस आरक्षण को वक्त की आवाज़ होने पर भी खत्म करने को तयार नहीं हे लेकिन सरकार को अब राष्ट्रहित में तो बली का बकरा तो बनना ही पढ़ेगा वरना आरक्षण का यह जहर देश में इतनी बढ़ी खायी पैदा कर देगा के देश में ग्रह युद्ध की स्थित हो जायेगी इसलियें दोस्तों अब वर्ष २०११ में आरक्षण से देश को बचाने का सिर्फ एक ही रास्ता हे के देश में आरक्षण मामले में अगर सरकार इसे दस वर्ष के लियें बढाना चाहटी हे तो कम से कम जनता से जुड़े इस मुद्दे पर अब सरकार केवल एक ही मुद्दे पर जनमत संग्रह चुनाव आयोग के जरिये करा ले और बहुमत के आधार पर अगर आरक्षण बढाने का फेसला हो तो आरक्षण बढ़ा दिया जाए और नहीं तो आरक्षण हमेशा के लियें खत्म कर आर्थिक आधार पर जरूरत मंद पिछड़ों को कोई न कोई सुविधा के लियें पैकेज योजना तय्यार की जाए और इसके लियें अब जनमत की आवाज़ बुल्लने करना जरूरी हे क्योंकि इस बार देश और देश की जनता खामोश रही और आरक्षण दस वर्षों के लिए अनावश्यक गेर्ज़रुरी होने पर भी बढ़ा दिया गया तो आने वाला कल देश के लियें अराजकता और गृह युद्ध का ही होगा । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

3 टिप्‍पणियां:

  1. आरक्षण समाप्त करने से सभी राजनैतिक दलों की वोट-गणित बिगड़ जाएगी। आरक्षण के कपड़े ने बेरोजगारी के भूत को ढंक रखा है, वह बाहर निकल जाएगा तो पूंजीवाद को खा जाएगा।

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  2. @ अख़्तर खान 'अकेला' bhai, Abhi naye roop me aapka balog bahut hi sunder dikh raha hai,

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  3. आपने लिखा है के://jnaab meraa yeh blog aap sbhi bhaiayon kaa apnaa blog he ismen aapka svaagt he iski gltiyaa sudhrvane ke iyen mhrbaani krke mujhe sujhaav den men aapka abhari rhunga//
    बूरा ना माने तो आप के छोटे भाई के तरफ़ से एक छोटी सुझाव है के: आप {हे} के स्थान पर {है} का प्रयोग करते तो सायेद बेहतर होता.
    इस कमेंट्स के लिये माजरत चाहतां हूं.
    आप का भाई
    अली सोहराब.

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