कोटा नगर निगम की बैठक में कल यहाँ कोंग्रेसी पार्षदों के बीच ही खूब तकरार हुई स्थित यह आ गयी के कोंग्रेसी पार्षदों और कोंग्रेस महापोर के बीच अपशब्द गली ग्लोंच जेसे माहोल पैदा हो गये कोंग्रेस के पार्षदों ने महापोर से सीधे शहर की व्यवस्था नहीं सूधारने का आरोप लगाया जबकि महापोर ने सीधे ही नकारते हुए कहा के उनका काम कोंग्रेस के पार्षदों को खुश करना नहीं बलके वोह शहर की जनता के लियें महापोर बनी हे ।
कल कोटा में नगर निगम की कई दिनों बाद बैठक हुई थी भाजपा यहाँ अल्पमत में हे लेकिन फिर भी भाजपा के गिनती के पार्षदों ने विरोध का मसोदा तय्यार किया था इधर कोंग्रेस के पार्षदों की महापोर ने पहले तो कोई बैठक नहीं ली फिर जब कोंग्रेस के पार्षदों ने इस पर एतराज़ जताया तो एक दिन पहले कोंग्रेस कार्यालय में पार्षदों की बैठक रखी गयी बस कोंग्रेस कार्यालय में ही पार्षदों ने महापोर के कार्यों के प्रति असंतोष जताया और उन्हें आड़े हाथों लिया उनकी इस कार्यवाही को देख कर महापोर खामोश रहीं लेकिन जब निगम बोर्ड की बैठक का नम्बर आया तो उन्होंने कोंग्रेस पार्षदों को खूब खरी खोटी सुनाने का प्रयास किया इस बैठक में जो काम भाजपा के पार्षदों को करना था वोह काम कोंग्रेस के पार्षदों ने कर डाला ।
कोटा में दिक्कत यह हे के महापोर रत्ना जेन कोंग्रेस प्रष्टभूमि से नहीं हे वोह डोक्टर रही हे उनका कभी कोंग्रेस से कोई दूर का या मतदाता होने का भी सम्बन्ध नहीं रहा हे लेकिन अचानक पेराशूट से उठ कर आने के बाद जब उन्हें टिकिट मिला और कोंग्रेसियों ने पंजे के चिन्ह पर उन्हें चुनाव जिताया तब से ही वोह लगातार कहती रही हे के मेरा चुनाव मेने मेरे बल पर लदा हे इसलियें कोंग्रेसी पार्षदों से मेरा कोई लेना देना नहीं हे महापोर कदम कदम पर कोंग्रेई पार्षदों को अपमानित करती आई हें और इसीलियें कोटा में पहली बार नगर निगम की कारगुजारियां जनता में कोंग्रेस के प्रति नफरत घोल रही हे अगर महापोर के वक्त रहते कोंग्रेस ने पर नहीं कुतरे तो निश्चित तोर पर कोंग्रेस को यहाँ बहुत बढा नुकसान होगा साथ ही कोटा को तो नुकसान हो ही रहा हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
22 जनवरी 2011
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बहुत ही अजीब स्थिति है। यह बताती है कि कांग्रेस को अब जनता से कोई लेना-देना नहीं रहा है।
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