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20 जनवरी 2011

देश में आत्म हत्याओं का यह सिलसिला बंद क्यूँ नहीं होता

दोस्तों यह हमारा देश हे इसे वीर नो जवानों का अलबेलों का मस्तानों का देश कहा जाता हे यहाँ हिम्मत और मेहनत हे लोगों में आशावाद हे लेकिन निराशावाद की मेरे इस महान देश में जगह नहीं हे अरे में गलत लिख गया जगह हे नहीं जगह नहीं थी लेकिन पिछले कुछ वर्षों से देश के नेताओं ने देश को गर्क में धकेल दिया हे देश में खुशहाली भाई चारा सद्भावना और अपनापन खत्म कर देश के नोजवानों को दिशाहीन और निराश कर दिया हे हालात यह हें के आज देश में हर चोथे मिनट में एक आदमी आत्महत्या कर रहा हे यह आंकडा देश में सियासत की बिछात के चलते और बढ़ता ही जा रहा हे इस निराशावाद को खत्म करने के लियें देश के किसी भी नेता या समाज सेवक ने कोई पहल नहीं की हे ।
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के रिकोर्ड पर अगर हम नजर डालें तो देश में हर चोथे मिनट में एक आदमी आत्महत्या का शिकार हो रहा हे और ऐसा करने वालों में से प्रति तीन लोगों में एक युवा होता हे इस तरह से देश में प्रति दिन ३४८ लोग आत्महत्याएँ कर रहे हें आंकड़ों के अनुसार देश में २४ प्रतिशत लोग पारिवारिक परेशानी और इतने ही लोग बीमारियों से घबरा कर आत्म हत्या अक्र्ते हें ३ प्रतिशत दहेज़ के कारण और ४ प्रतिशत लोग गरीबी के कारण आत्म हत्या करते हें इस तरह से देश में प्रति दिन २२३ पुरुष और १२५ महिलाएं आत्महत्याएं करते हें वर्ष २००९ में २७ हजार १५१ लोगों ने अपनी जान दी जिनमें ७० प्र्तिओष्ण युवा और अधेड़ लोग थे करीब तीन हजार लोगों ने बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या की हे यह तो वोह रिकोर्ड हे जो पुईस में दर्ज हे कई गाँव और दूर दराज़ के स्थानों के तो रिकोर्ड ही तय्यार नहीं हे ।
दोस्तों देश के लियें यह एक कडवा सच हे और इस खतरनाक निराशावाद की बीमारी से इस देश को बचाने के लियें हमें आप को और मिडिया से जुड़े दुसरे लोगों को आगे आना होगा वरना यह देश खोखला हो कर रह जाएगा । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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