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22 दिसंबर 2010

सूखे देश में राष्ट्रपति जी का हरित क्रांति का सपना

मानसून , बेमोसम बरसात ,प्राक्रतिक आपदा,मोसम की मार ,रेगिस्तान सहित अन्य समस्याओं से जूझ रहे इस देश में राष्ट्रपति महामहिम पतिभा पाटिल हरित क्रांती लाना चाहती हे , कल उदयपुर में उन्होंने देश की स्थिति पर चिता व्यक्त करते हुए क्रषि अनुसन्धान केन्द्रों और सरकारी मदद के माध्यम से देश में हरित क्रान्ति का आह्वान किया , १९ दिसम्बर को सादगी से अपना जन्म दिन मनाने के बाद उदयपुर में उनका यह पहला कार्यक्रम था ।
राष्ट्रपति महोदया राजस्थान की पूर्व गवर्नर भी रह चुकी हें और वोह राजस्थान की बहु भी हें उन्होंने चोंकाने वाले आंकड़े बताते हुए कहा के वर्ष २०५० में नदेश की जनसंख्या का विशाल आंकडा होगा और वर्तमान में देश में क्रषि भूमि का आंकड़ा ५१ प्रतिशत से घट कर ११ प्रतिशत रह गया हे उन्होंने चिंता जताई हे के पहले प्रति व्यक्ति क्रषि भूमि का अनुपात ११ हेक्टेयर प्रति व्यक्ति था जो आब घट कर ०.३ हेक्टेयर रह गया हे वास्तव में यह एक गम्भीर चिन्तन का विषय हे हम शहरीकरण के नाम पर इस देश को खत्म कर रहे हें यहाँ क्रषि उपज की स्थिति आज हमारे सामने हे और शहर विस्तारसे भी हमें कोई ख़ास खुशहाली नहीं मिल रही हे गाँव खत्म हो रहे हें और शहर जस के तस हें ऐसे में हरियाली खत्म क्रषि उपज खत्म क्रषि उपज के दम सातवें आसमां पर हें ,
क्रषि भूमि के मामले में हमारे देश के प्रोपर्टी डीलरों ने और सरकार ने सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की कहावत चरितार्थ की हे के एक सोने का अंडा रोज़ देने वाली मुर्गी से जब मालिक संतुष्ट नहीं हुआ तो उसने मुर्गी को हलाल कर दिया फिर वोह जिंदगी भर रोता रहा ऐसे ही हमारे देश में किसान को लालच देकर उसकी क्रषि भूमि महंगे दामों में खरीदी जा रही हे इधर ज़मीं के मूल्य बढ़ रहे हें उधर किसान उन रुपयों को कुछ दिनों में ही बर्बाद कर बेरोजगार हे और देश में क्रषि भूमि खत्म हो रही हे तो दोस्तों राष्ट्रपति महोदया ने हरित क्रांती का जो आह्वान किया हे इस तरफ हमें भी कुछ तो सोचना ही होगा और तेज़ी से हो रही क्रषि भूमि के विनाश को रोकना होगा वरना क्रषि उपज और स्वच्छ वातावरण के लियें हम और हमारे देश वासी तरस जायेंगे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. कोई भी नेता चाहे राजनैतिक हो या सामाजिक या धार्मिक, आबादी पर नियंत्रण की बात ही नहीं करता। सब अंधी गली में दौड़े चले जा रहे हैं।

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