अल्लाह
यह केसी सजा हे
अनपढ़ हें
जो लोग
काले गोरखधंधों से
रूपये कमाते हें ,
रूपये कमाकर
यही लोग
शहर में इज्जत
की जगह
पाते हें ,
पढ़े लिखे
बेचारों का क्या
वोह तो
इन बे पढों के यहाँ
नोकरी लगवाने के लियें
चक्कर लगाते हें ,
यह तो
बेचारे पढ़े लिखे हें
इनके रोज़गार तो बस
किताबों में ही
दफन हो जाते हें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
14 सितंबर 2010
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बहुत सही......... अपनी रचना अपने परिचय और अपनी तस्वीर के साथ मुझे मेल कर दें
जवाब देंहटाएंrasprabha @gmail .com
... bahut badhiyaa !!!
जवाब देंहटाएंसही लिखा है... अकेला जी आपने...
जवाब देंहटाएंसच्चाई उकेर कर रख दिया......
जवाब देंहटाएंहकीकत बयां करती पोस्ट है.....
जवाब देंहटाएंसही स्थिति उकेरी है हमारी शिक्षा और डिग्रियों
की ...... अच्छा लगा पढ़कर ।
badiya
जवाब देंहटाएंसही, केवल और केवल सही
जवाब देंहटाएंसच ही कहा है
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