आपका-अख्तर खान

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23 अगस्त 2010

एक नदी की समुन्द्र को ललकार

तेज़ ज्वार भाटे में लहरों के उमड़ते
समुन्द्र से
नदी ने रुकने को कहा
अपनी ताकत के नशे में चूर
समुन्द्र नहीं रुका
और सुनामी का श्मशान बना दिया
तबाही की इस कहानी को देख
नदी ने दूसरी नदियों से कहा
के समुन्द्र की ताकत हम हे
इसे हम कमजोर कर दें
बस फिर किया था
नदियों ने अपनी धाराए बदल दी
जिन छोटी नदियों की ताकत से
समुन्द्र में पानी भरने से
समुन्द्र समुन्द्र कहलाता था और पानी भर जाने के बाद
सुनामी जेसे आतंक और ज्वार भाटे जेसे तूफानों से
जनता को डराता था
नदियों के इस बदलाव से समुन्द्र समुन्द्र नहीं रहा
और बस मुर्दा ठहरे पानी की तरह खामोश एक गड्डे की तरह पानी हिलोरे लेता रहा
और समुन्द्र जो कभी समुन्द्र था नदियों के इस अश्योंग से समुन्द्र न रहा ।
नदियों के बदलाव से समुन्द्र को रुआंसा देख
एक नदी ने दूसरी नदी से कहा
काश भारतीय भी हमसे सीख लें
हमने जसे समुन्द्र को सबक सिखाया हे ऐसे ही भारतीय भी अकडू सरकार को अकडू नेताओं से मदद का हाथ खेंच कर उन्हें सबक सिखाएं और जिस तरह नदियों ने समुन्द्र की मदद से हाथ खींच कर उसके समुन्द्र होने का अस्तित्व खत्म कर दिया हे इसी तरह से जनता राज्यों और केंद्र में जन विरोधी कार गुजारियों का सेलाब , सुनामी लाने वाली इस सरकार को अपना समर्थन खेंच कर सरकार को धुल चटाए क्या हम और हमारी जनता इस लोकतंत्र में समुन्द्र के समुन्द्र होने का अस्तित्व छीनने वाली नदियों की एकता से सबक लेंगे या फिर यूँ ही हिन्दू मुस्लिम,हिंदी भाषी, उर्दू भाषी मराठी,कन्नड़ में बंट कर बेईमानों की जय बोल कर उन्हें मजबूत करते रहेंगे। अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्छा विश्लेषण किया है ... शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  2. बढिया प्रस्‍तुति .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन!


    रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं

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