आपका-अख्तर खान

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19 जुलाई 2010

ना हो खुलूस

ना हो खुलूस
दिलों में
तो भी
जहर के
घूंट पीकर
दुनिया दिखावे के लियें
हंस कर मिलना हे जरूरी ।
दोस्तों
आप ही बताओ
जिंदगी में
रस्में निभाने की
केसी हे यह मजबूरी ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

2 टिप्‍पणियां:

  1. अख्तर भाई अस्सलाम-वालेकुम!
    जनाब बहुत बहुत शुक्रिया की आपने अपना कीमती वक़्त निकाला मेरे ब्लॉग पर आने के लिए!
    मालिक हम भी ब्लॉग की दुनिया के ही बाशिंदे हैं! आपको पढ़ कर बहुत ही ख़ुशी मिली हमें!
    मैं तो आता ही रहूँगा आपके ब्लॉग पर आपके दीदार-ए-ख़ास करने, उम्मीद है की आप भी अपनी टिप्पणियों से कृतार्थ करते रहेंगे!
    आपकी रचना पढ़ के लगा की कोई भाई मिल गया हो!
    आफरीन रचना!

    जवाब देंहटाएं

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

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