आपका-अख्तर खान

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28 जुलाई 2010

रिश्तों की कुछ परिभाषा नहीं होती

दोस्तों
रिश्तों की
आज
कोई परिभाषा नहीं होती ,
ना दोस्ती ना दुश्मनी
किसी की किसी से
स्थायी होती ।
कभी दोस्त दुश्मन
तो कभी दुश्मन दोस्त होता हे
कभी अपना पराया
तो कभी पराया अपना होता हे
दोस्तों
ना दुश्मनी ना दोस्ती
स्थायी होती हे ।
रिश्ते तो बनते हें
रिश्ते तो बिगड़ते हें
ना खून का रिश्ता स्थायी
ना जन्म का रिश्ता स्थायी
ना पडोस का रिश्ता स्थायी
ना दोस्ती का रिश्ता स्थायी
मिलना बिछुड़ना , रूठना मनाना
रिश्तों की हे खासियत
रिश्ते तो रिश्ते होते हें
ना यह कच्चे होते हें ना यह पक्के होते हें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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