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27 जुलाई 2010

आज शबे बरात हे

आज शबे बरात का मुस्लिमों के लियें महत्वपूर्ण त्यौहार हे जेसे हिन्दू भाइयों में श्राद्ध का त्यौहार होता हे वेसे ही मुस्लिमों में भी परलोक सिधार गयी आत्माओं की ख़ुशी के लियें उनके मन पसंद व्यंजन हलवे के रूप में बनाये जाते हें लेकिन मेरे बचपन से आज तक मेने इस त्यौहार के रूप में परिवर्तन देखा हे , दोस्तों मेरी दादी के वक्त हमारे घर में खुद दादी सुबह से काम शुरू कर हलवे बनाती थीं और कमसे कम पचास तरह के व्यंजन मिठाईयों हलवे बनाकर बांटती भी थी और खिलाती भी थी ,फिर कमान हमारी अम्मी के हाथ में आई यकीन मानिए दादी तक तो कुछ ठीक चला लेकिन दादी की स्वर्गवास के बाद इस शबे बरात के त्यौहार पर हमारी अम्मी ने व्यंजन और हलवों की संख्या घटा दी केवल दस बारह व्यंजन और हलवे बनने लगे लेकिन अब तो हद हो गयी मेरी शादी हो गयी बच्चे भी हो गये और अब जनाब आप को यकीन नहीं होगा यह त्यौहार इस त्यौहार के व्यंजन हलवे सब सिम्त कर रह गये हालात यह हें के केवल तीन चार तरह के ही हलवे और मिष्ठान पर सब्र करना पढ़ रहा हे हमारे पडोस में तो हालत और भी बुरी हे वहां बाज़ार से हलवे और मिठाई मंगवा कर फातिहा लगाई जाती हे तो दोस्तों यह त्योहारों में पीड़ियों का बदलाव केवल शबेबरात में ही नहीं देश के हर समाज हर वर्ग हर धर्म से जुड़े लोगों में देखने को मिल जाता हे , खेर अब हम शबेबरात की बात करें तो जनाब यह रात श्राद्ध की फातिहा का दिन और एक दुसरे से परस्पर हलवे मिष्ठान बाँट कर खाने खिलाने का दिन तो होता ही हे साथ ही यह रात इबादत की भी होती हे इस दिन कहते हें के मुसलमानों के साल भर के खानपान और काम काज का लेखा जोखा तय्यार होता हे इतना ही नहीं इस दिन मुस्लिम महिला बच्चे बढ़े सभी लोग रात भर इबादत करते हें खुदा से दुआ मांगते हें इस दिन खुदा जिससे खुश होता हे उसे आसमान में तारों के बीच से निकलती घोड़ों पर निकलने वाली बारात दिखा देता हे लेकिएँ कहते हें के किसी के सर पर चांदनी की परछाईं के चलते सर पर जुदा जेसा निकला अगर दिख जाए तो समझा जाता हे की इसी वर्ष इसकी म्रत्यु निश्चित हे और इसीलियें कई लोग डर के मारे छत पर नहीं जाते हें बहर तक चांदनी रात में नहीं निकलते हें कहते हें के इस रात खुदा सातवें आसमान से नीचे पहले आसमान पर आ जाता हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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