तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
09 जुलाई 2010
जजों के फेसलों की समीक्षा के लियें आयोग की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट के एक जज स्वतंत्र कुमार ने एक दिन में ७५ मामलों में फेसले देने का रिकोर्ड बनाया हे इसके पहले भी इन्हीं जज साहब ने मुंबई हाईकोर्ट में ८० मामलों में फेसले सूना कर रिकोर्ड कायम किया था एक दिन में इतने फेसले सुनाना अच्छी बात हे लेकिन वोह फेसले कोनसे हें उनकी विधिक गुणवत्ता किया हे इस मामलों में ऐसे मुकदमों के फेसलों की समीक्षा के लियें आयोग गठित होना चाहिए जल्द बाज़ी के फेसले हों तो सजा और गुणवत्ता वाले फेसले हों तो इनाम का प्रावधान होना चाहिए । हाल ही में कारों से आने जाने वाले एक ज साहब जो शायद वर्षों पहले दो पहिये वाहन पर बेठे होंगे या फिर कभी चलाया होगा उन्होंने दो पहिये वाहनों के लियें फेसला दिया हे के दो पहिये वाहन बेचने वाले हेलमेट साथ ही बेचेंगे अब यह फेसला केसा हे थी हे या अव्यवहारिक अगर जज साहब मोटरसाइकल पर कुछ दिन घुमे होते और फिर उनका यह फेसला होता तो व्यवहारिक लगता लेकिन दोपहिये वाले वाहन चालकों की परेशानी का जब दर्द ही पता नहीं हे तो किताबी फेसला जो फेसला तो हे लेकिन सार्वजनिक नहीं हे , एक कहावत हे के अमीरों को गरीबों का दर्द उनकी जरूरतें पता नहीं होतीं लेकिन व्ही गरीबों के उत्थान की योजनायें बनाते हें जो खाओ पियों मोज करो के हिसाब से बनती हे एक आमिर से गरीबी पर लेख लिखने के लियें कहा तो जनाब उसने लेख लिख डाला लेख मन लिखा था के गरीब बहुत गरीबन हटा हे , उसका ड्राइवर भी गरीब होता हे , उसका नोकर भी गरीब होता हे , घर साफ़ करने के लियें उसके पास पेसे नहीं होते गरीब बहुत गरीब होता हे इनका धोबी भी गरीब होता हे तो जनाब एक आमिर को गरीबी की कल्पना करना पद्धति हे इसलियें वोह उसके बारे में सोच नहीं सकता इसी तरह से हेलमेट के मामले में कारो पर चलने वालों का फेसला किस हद तक व्यवहारिक हे सोचने के बात हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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एक दिन में इतने फैसले? फिर भी गुणवत्ता जाँचने के लिए आयोग? गुणवत्ता संभव ही नहीं है।
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