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14 अप्रैल 2025

फोन पर समझाइश न होती तो,न हो पाते 2 देहदान

 फोन पर समझाइश न होती तो,न हो पाते 2 देहदान
2. कोटा से सही संयोजन और मार्गदर्शन हुआ,तो संपन्न हुए दो देहदान

शाइन इंडिया फाउंडेशन के प्रदेश स्तरीय देहदान जागरूकता अभियान से, अब प्रदेशवासियों में देहदान के प्रति भी जागरूकता बढ़ती जा रही है । देहदान के लिए आमजन पूरी तरह जागरूक है, बस जरूरत है,सही संयोजन और मार्गदर्शन की । शाइन इंडिया फाउंडेशन के माध्यम से,अभी तक देश भर के अलग अलग मेडिकल कॉलेज में 40 से अधिक देहदान सम्पन्न हुए है ।

बीते दिनों गुरुवार को प्रदेश के ग्राम राजगढ़,सरदार शहर,जिला चूरू, निवासी सेवा निवृत शिक्षक भगत सिंह पूनिया का हृदयघात से आकस्मिक निधन हुआ । बेटी अर्चना पूनिया ने माँ सुरेश देवी और भाई अरविंद से सहमति लेकर देहदान के लिये,दिल्ली की संस्था ऑर्गन इंडिया के माध्यम से कोटा की शाइन इंडिया फाउंडेशन को पिताजी के नेत्रदान देहदान करवाने के लिये संपर्क किया।

शाइन इंडिया के डॉ कुलवंत गौड़ ने सुबह 5 बजे ही, नेत्रदान व देहदान के लिए प्रयास करना प्रारंभ कर दिया और थोड़ी देर बाद श्री भंवरलाल दूगड़ आयुर्वेद विश्व भारती, गांधी विद्या मंदिर सरदारशहर जिला चूरू के प्रोफेसर डॉ रविंद्र कुमार को देहदान संपन्न करवाने के लिए संपर्क किया। सभी के तुरंत सक्रिय से, राजगढ़ से पहला नेत्रदान और दूसरा देहदान संपन्न हुआ ।


बेटी अर्चना ने संस्था शाइन इंडिया का धन्यवाद देते हुए कहा की, हमारे लिए देहदान का कार्य छोटे से गांव से संपन्न करवाना, शायद मुश्किल होता परंतु जिस तरह से शाइन इंडिया ने तुरंत तत्परता दिखाते हुए मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों के साथ कॉर्डिनेट किया,उससे हम हमारे पिताजी की अंतिम इच्छा देहदान को पूरा कर पाए ।

गुरुवार को सुबह 10:00 बजे ही, जयपुर निवासी अंकुर अस्थाना, के पिताजी धनंजय कुमार अस्थाना (सेवानिवृत्त आयकर विभाग) का भी आकस्मिक निधन जयपुर हो गया । उन्होंने देहदान का संकल्प 12 साल पहले शाइन इंडिया फाउंडेशन के साथ भरा हुआ था, निधन होते ही बेटे अंकुर ने तुरंत ही कोटा में डॉ कुलवंत गौड़ को संपर्क किया । डॉ कुलवंत गौड़ ने जयपुर में तुरंत ही सहयोगी संस्था जैन सोशल ग्रुप,सेंट्रल संस्था के कमल सचेती को संपर्क कर धनंजय जी का नेत्रदान-देहदान और त्वचा दान गीतांजलि मेडिकल कॉलेज जयपुर में सम्पन्न करवाया ।

अब तक देश में 40 से अधिक देहदान संपन्न करा चुके डॉ कुलवंत गौड़ का कहना है की, जब प्राकृतिक मृत्यु हो और परिजन स्वेच्छा से देहदान करना चाहते हो, तो यह पहले से आवश्यक नहीं है कि,मृतक का पहले से ही कोई देहदान का संकल्प पत्र भरा हुआ हो, जिन्होंने संकल्प पत्र नहीं भर रखा है,और उनकी मृत्यु हुई है,और देह मेडिकल स्टूडेंट्स के अध्ययन के लिये काम आ सकती है, तो देहदान संभव हो सकता है ।

यह आवश्यक नहीं है कि,देहदान का संकल्प पत्र मेडिकल कॉलेज में जाकर ही भरा हुआ हो,भारत में ऐसी कई सामाजिक संस्थाएं कार्य कर रही हैं,जो अपनी ओर से देहदान संकल्प पत्र भरवाती हैं,और समय आने पर,और मृतदेह के उपयुक्त होने पर, संस्थाओं के सम्मिलित प्रयासों से, देहदान संपन्न हो जाता है ।


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