यकींनन वालदेन के लिए एक दिन तो क्या , एक ज़िंदगी तो क्या , हर ज़िंदगी कम ही नहीं बहुत कम पढ़ती है, लेकिन अब यह सोशल मीडिया के चोचले , हर ख़ुशी , हर गम को , हरा कर देते है , ,वालिद दिवस की , सोशल मीडिया पर याद दहानी के साथ ही , फिर से मेरे वालिद इंजीनियर हाजी असगर अली की मेरी परवरिश को लेकर यादें फिर ह्री हो गयी है , अल्लाह का शुक्र उनकी परवरिश का ही नतीजा है , जो आज में , लोगों के सामने , सर बुलंदी के साथ सुर्खुरू हूँ, उनकी और वाल्दा की ही दुआएं है , के हर ज़रूरत , हर ख्वाहिश , अल्लाह सोचते ही पूरी कर देता है , यक़ीनन अल्लाह यह सर कहीं झुकने नहीं देता , ,सुर्खुरू रखता है , दो वक़्त की रोटी , एक अदद कान उमेठने वाली बीवी , इंजीनियर बेटा , डॉक्टर बेटी , और भविष्य में कोपीटीशन के संकल्प के साथ , माशा अल्लाह दिल ओ जान से कोशिशों में जुटी प्यारी बिटिया , दुआ देने वाली माँ , वक़्त ब वक़्त , साथ निभाने वाली बहने, भाई , रिश्तेदार ,सभी हैं , लेकिन वालिद की कमी , रोज़ , हर लम्हा अखरती है ,, उनकी परवरिश , उनकी एडवांस प्लानिंग ,, मुझे याद आती है , वोह इंजीनियर होकर भी , बच्चे के भविष्य की समझ रखते थे ,, इसलिए ,, उन्होंने मेरे स्वभाव को देखते हुए , मुझे पत्रकारिता से रोक दिया , मुझे याद है , जब दूरदर्शन न्यूज़ में ,कॉम्पिटिशन के बाद , न्यूज़ एडिटर के ओहदे पर , मेरा केंद्र सरकार के ब्रॉडकास्ट मिनिस्ट्री का 1994 में नियुक्ति पत्र आया , तो उसका वेतन , रिपोर्टिंग के लिए हेलीकॉप्टर सुविधाएं और , बेंगलोर में नियुक्ति देखकर , में खुशियों से झूम उठा था , ,वालिद के फैक्ट्री से आने पर जब मेने अपनी कामयाबी का उन्हें हिस्सेदार बनाया , तो वोह मुस्कुराये , एक सवाल पूंछा , आज़ाद , सर बुलंद ज़िंदगी चाहिए , या फिर , गुलाम ज़िदंगी दूसरों के भरोसे चलने वाली ज़िंदगी , में यकायक , जवाब नहीं दे सका , लेकिन वोह मेरे असमंजस को समझ चुके थे , उन्होंने आज की पत्रकारिता में जो गंदगी है , जो गुलामी है , जो छिछालेदारी है , उसका अहसास उस दौर में ही कर लिया था , वोह बोले , बेटा तुम्हारी क़लम ,तुम्हारी रिपोर्टिंग , तुम्हारे लिखे गए , रोज़मर्रा के कॉलम ,में पढ़ता हूँ ,, तुम जागीरदार हो , ईमानदार हो , मिजाज़ में सर बुलंदी है , समझौता तुम्हारे मिजाज़ में नहीं , जागीरदाना मिजाज़ वाले गुलामी की ज़िदंगी को ठुकराते है , ,मेने नासमझी में फिर ज़िद करते हुए कहा , गुलामी नहीं सरकारी दूरदर्शन की नौकरी , बहतरीन तनख्वाह , इज़्ज़त है , और सरकारी नौकरी में , सेवानिवृत्ति के वक़्त , दो तीन लाख रूपये प्रति माह की पेंशन भी हो जायेगी , मेरे वालिद फिर मुस्कुराए ,, और सवाल पूंछा , फिर इसमें मेरा हँसता खेलता अख्तर , मेरा मज़लूमों के लिए आवाज़ बुलंद करने वाला अख्तर , सच के लिए जंग का ऐलान करने वाला अख्तर , मेरा वोह अख्तर जो सर बुलंद रखता है , झुकता नहीं , क्या वोह रह पायेगा अपने इस मिजाज़ के साथ इस सरकारी नौकरी में , , सच देखकर भी मुंह मोड़ना ,होगा सरकार अगर सच को झूंठ के रूप में फैलाने के लिए कहेगी तो करना होगा , में रोया , लेकिन उन्होंने कहा , मेरी इजाज़त नहीं , तुम चाहो तो चले जाना , फिर मेने , जोइनिंग के लिए , तीन महीने के एक्सटेंशन लिया , ,फिर पूंछा , इस बीच एक बढे समाचार पत्र से भी मुझे ऑफर था , वोह बताया , फिर उनका वही जवाब , तुम्हारी मर्ज़ी , लेकिन अब आने वाला कल, तुम जैसे लिखने वालों की क़द्र करने वाला नहीं रहेगा , ,सिर्फ बिज़नेस , समझौते , झूंठ , फरेब , गुलामी , मालिक जो कहेगा वोह लिखना होगा , मालिक जो , सरकार या उद्योपति जो कहेगा , उन्हें वोह लिखना होगा , उन्हें कहा वकालत तुम्हारे लिए सही है , तुम्हारे ज़मीर को ज़िंदा , यही पेशा रख सकेगा तुम फिट हो , बेबाकी तुम्हारी इसी में ज़िंदा रहेगी , ,तुम अगर वहां गए तो रोज़ मरोगे , रुपया होगा , गाड़ियां होंगी , सरकारी सुविधाएं होंगी , या प्राइवेट सेक्टर में प्रेस कोंफ्रेस होंगी , आवभगत होंगी ,, रुपया होगा , गिफ्टें होंगी , पुरस्कार होंगे , दिखावटी रिश्ते सम्मान होंगे , लेकिन क्या , तुम अपनी मर्ज़ी का एक अलफ़ाज़ भी बोल सकोगे , क्या तुम सच देखकर भी , सच लिख सकोगे , अगर ऐसा कर सकते हो तो चले जाओ , बस , मेने रोना धोना , और पत्रकारिता में सरकारी , गैर सरकारी नौकरी की ज़िद छोड़ी , और वकालत में वन टू वन महनत के साथ लग गया ,, मेरे साथ नियुक्ति लेकर , अतिरिक्त निदेशक से सेवानिवृत्त दूरदर्शन सम्पादक मेरे भाई को अभी , दो लाख सत्तर हज़ार की तनख्वाह मिलती है , मुंबई जैसी जगह की फर्श कॉलोनी में उनका बंगला है , चार पांच फ्लेट है, उनसे अभी में जयपुर में मिला वोह रुपयों के मामले में मालामाल थे , लेकिन मुझ से उनकी ईर्ष्या थी , वोह कहने लगे , यार अख्तर तू आज़ाद पंछी है , जो चाहता है , जो सच समझता है , लिख देता है , हमारा तो ऑर्डर पर लेखनी चलाने , रिपोर्टिंग करने , का ऐसा स्वभाव हुआ के आज ,, निष्पक्ष , आज़ाद अलफ़ाज़ हमारी क़लम से निकलने में भी शर्माते है , तब ,, मेरे वालिद की सीख मुझे याद आयी , वोह मुझे मुझ में , मेरे ज़मीर को ,मेरे आज़ादी को ज़िंदा रखना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने मुझे फॉरस्फुल तरीके से , मेरी आज़ाद क़लम , को गुलामी के अँधेरे में जाने से रोका ,, अल्लाह का शुक्र आज में करोड़ों करोड़ कलमकारों से बेहतर हूँ , में रोज़ मरता नहीं हूँ , में रोज़ जीता हूँ , इस स्वाभिमानी ज़िंदगी के मेरे वालिद मेरे सलाहकार रहे है , ऐसा वोह इसलिए कर पाए , क्योंकि वोह चाहे टेक्निकल इंजीनियर हों, लेकिन वोह शिकारी भी थे , निशानेबाज़ भी थे , वोह उड़ते शिकार पर , पंख गिन लिया करते थे , स्पीड का अंदाजा लगाकर निशाना साधा करते थे , इसलिए उनका अनुभव आज मेरे स्वाभिमान को बचाने में मददगार साबित हुआ , मेरे वालिद एशियाड ओलम्पियाड में ,,फ़्लाइंग बर्ड्स शूटिंग में , सिल्वर मेडलिस्ट रहे है , वोह खुद निशानेबाज़ी में प्रेजिडेंट एवार्ड थे , ऍन सी सी कमांडर थे , इसलिए उन्होंने मुझे भी ऍन सी सी में रखा , पहले नेवी ऍन सी सी में दो साल महात्मा गाँधी स्कूल में रहा , फिर कॉलेज में , आर्मी केडेट के रूप में , सी सार्टिफिकेट के साथ , निशानेबाज़ी की तरेंगीं दी , और मुझे भी उनकी कोशिशों , टोका टाकी से ऍन निशानेबाज़ी में एवार्ड मिला , जबकि मेरी छोटी बहन को, लोगो के लाख इंकार के बाद भी , ऍन सी सी दिलवाई , जो जे डी बी कॉलेज की ऍन सी सी कमांडर रही, आज भी कॉलेज के बोर्ड पर उसका नाम है , वोह भी निशानेबाज़ी में , राष्ट्रपति एवार्ड लेकर , अव्वल रही , ,छोटे भाई को भी मेरे वालिद ने , निशानची बनाया , ,, सेवानिवृत्ति के बाद , दुनियादारी से अलग थलग, ज़िम्मेदारी की चाबियाँ मेरी वाल्दा के हाथों में थीं , और हमे हिदायत थी, माँ के पैर के नीचे जन्नत है , कभी नाफ़रमानी नहीं होना चाहिए , तब से हम उनके हर हुक्म पर लब्बेक हैं , ,इस तरह मुतमईन होने के बढ़ , अललाह की राह में ,शामिल हुए , एक साल हज , एक साल उमराह का सिलसिला चलता रहा और तीन हज , चार उमराह के बाद , एक दिन , तबियत खराब हुई , और अललाह ने हमारे सर से हमारा साया , हमारे वालिद को छीन लिया ,, जाते वक़्त भी , वोह मुस्कुराते रहे , में ठीक हूँ , आगे भी सब ठीक रहेगा , घबराओ मत , यही उनके डायलॉग थे , जो आज भी मेरे दिल , दिमाग में गूंजते है, , और बस आँसुओं के साथ , भाव विहल होकर, कुछ भी नहीं लिख पाता हूँ , खामोश हो जाता हूँ , अल्लाह मेरे वालिद को जन्नतुल फिरदोस में आला मुक़ाम अता फरमाए ,, मेरे ,,मेरे भाई , बहनों का सर बुलंद रखे , सुर्खुरू रखे , उनकी बताई हिदायतों पर चलने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाये और कड़ोदिया जागीरदार खानदान का खुशियों के साथ , ईमानदारी , निष्पक्षता , निर्भीकता ,, सुर्खुरू पन के साथ , सर बुलंद रखे , ,आमीन ,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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