में क़लम हूँ पहले साधू के पास थी तो धर्म बांटती थी ,,आज साधू के पास हूँ तो सियासत और नफरत लिखती हूँ ,,,में क़लम हूँ पहले मौलाना के पास थी तो ईमान लिखती थी आज सियासी बिकाऊ मौलाना के पास हूँ तो नफरत ,,लालच लिखती हूँ ,,में क़लम हूँ कभी इन्साफ लिखती थी ,,कभी इन्साफ लिखती थी ,,आज नफरत ,,,घृणा ,,,,,कुतर्क में लिखा करती हूँ ,,,में क़लम हूँ कभी आज़ाद रहकर ,,गरीबों ,,,शोषित लोगों की पैरवी करा करती थी आज चंद चांदी के सिक्कों में बिक कर ,,अपने उसूल छोड़कर एक वेश्या की तरह से खरीदने वाले की ज़ीनत बनकर उनके लिए उनकी फरमाइशों पर तवायफों की तरह मुजरा करती हूँ ,,,में क़लम हूँ मेरे पुराने अतीत में गर्व करती हूँ ,,,मेरे आज के हालातों पर में फुट फुट कर रोती हूँ ,,में क़लम हूँ जिसे मिला करती कभी इज़्ज़त आज अपमान ,,नफरत ,,तिरस्कार ,,बिकाऊ जैसे अल्फ़ाज़ों से घिरी हूँ ,,में क़लम हूँ ऐ मेरे खुदा मुझे मेरी आज़ादी ,,,मेरी निष्पक्ष न्यायप्रियता ,,,मेरा इंसाफ ,,,मेरी सादगी ,,मेरी ईमानदारी ,,,,मेरा वोह वुजूद जिसके आगे गरीब ,,शोषित ,,पीड़ित नतमस्तक रहते थे जिससे लिखे अल्फ़ाज़ों से पूंजीपति ,,उद्योगपति ,,ज़ालिम ,,मिलावट खोर ,भ्रष्ट लोग ,,नफरत और घृणा फैलाने वाले लोग ,,,धर्म के नाम पर अराजकता का माहोल बनाने वाले लोग पनाह मांगते थे घबराते थे ,,ऐ खुदा मुझे फिर से मेरा वोह वुजूद लोटा दे ,,,मेरा वोह वुजूद लोटा दे ,,,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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