नफरतबाज़ी के इस बेदर्द निराशावाद माहौल में , देश भर में ,कुछ शरारती तत्वों द्वारा , मुद्दे भटकाने , और शार्ट कट में , कुर्सी हथियाने का गोल करने वाले , सियासी लोगों की नफरतबाज़ी वाले माहौल में ,, आशा की एक किरण ,, कुमारी आशा मल्लाह , मुस्कुराती है , धर्म कर्म करती है , और अपने प्रयासों से क़ौमी एकता , शांति सद्भाव का पाठ पढ़ा कर ,सभी इष्ट देवताओं , भगवान , अल्लाह से , मुल्क में , अमन , सुकून ,, तरक़्क़ी , प्यार ,, मोहब्बत और कोरोना जैसी खतरनाक महामारी से , मुक्ति की दुआएं करती है ,, खुदा उनकी दुआएं क़ुबूल करे , उनके रोज़े ,, उनकी क़ुरआनख्वानियाँ , उनके भजन , उनके कीर्तन , भंडारे ,, उनके रोज़े , उनके नवरात्रे , व्रत क़ुबूल फरमाए , उनकी दुआएं क़ुबूल करे , और फिर से मुल्क में प्यार ,, मोहब्बत के सुकून के माहौल के साथ ,, तरक़्क़ी हो ,एक जुटता हो , राष्टीर्य एकता हो , इस महामारी कोरोना से सभी की हिफाज़त रहे , हम स्वस्थ रहे , सुरक्षित रहे , मोत के ताँडवों से हम सुरक्षित हों , हर घर में , ख़ुशी की , ठहाकों की किलकारियां गूंजे , आशा मल्लाह की ऐसी सभी दुआएं अललाह क़ुबूल करे ,, आमीन के साथ ,,बस अल्लाह से यही दुआ है ,,,, मज़हबी एकता ,समाजसेवा समर्पण की अनूठी मिसाल ,,कुमारी आशा मल्लाह ,एक गोल्ड ,ऐंड बोल्ड महिला की पहचान ,हैं ,,, कुमारी आशा मल्लाह ,खुद अपने पैरों पर खड़े होकर ,परिवार को एकजुट कर मज़बूती देने वाले बेटी होने पर भी , बेटे के कर्तव्यों का अनूठा उदाहरण हैं ,, , आशा मल्लाह ,बहुमुखी प्रतिभा की धनी ,,,ईमानदारी ,,कर्मठता से ,खुद ,कोटा पहुंचकर अपने पैरों पर खड़े होकर ,,,कोई काम नहीं है मुश्किल जब किया इरादा पक्का ,,कहावत को चरितार्थ करने वाली हैं ,, बहन आशा मल्लाह ,,दोनों नवरात्रा के व्रत के साथ साथ जब पुरे माह ऐ रमज़ान में रोज़े पुरे अहद ,,पूरी ज़िम्मेदारी के साथ रखकर ,,मज़हबी एकता ,,का अनूठा ,उदाहरण ,अनूठा संगम है ,,,जी हाँ धर्म मजहब और धर्मों से जुड़े रीतिरिवाज,, विधि नियम,, किसी व्यक्ति विशेष या धर्म के गुलाम नहीं ,,यह तो होसलों और भाईचारे का पैगाम है ..जी हाँ दोस्तों अपने धर्म के सभी निति नियमों को बरकरार रखते हुए, यह समाजसेविका आशा कुमारी मल्लाह रोज़े में जब किसी को दिन भर इस्लामिक निति नियमों पर चलता हुआ देखती है ,तो यह उनकी इस निति का अनुसरण करती है .मुस्लिम धर्म के मुताबिक रमजान के महीने में रोज़े रखना फर्ज़ है ..यह सही है के मुस्लिम धर्म से जुड़े कई लोग रोज़े पुरे नहीं रखते है ,,लेकिन आशा जी है ,के पिछले पांच सालों से लगातार ,,बिना किसी चुक के रोज़े रख रही है ..एक पीर बाबा के सम्पर्क में आने के बाद ,,उन्होंने जाना के रोज़े से सुकून मिलता है ,रोज़े में अनुशासन ,,धैर्य ,संयम ,और सब्र का पैगाम होता है ,,जबकि दुसरे की भूख के दर्द का अहसास होता है ..उनका मानना है के ,,रोज़े से खुद का दिली सुकून ,जीवन शेली का अनुशासन और इश्वर की प्रशंसा सभी एक साथ हो जाते है ........आशा जी अदालत परिसर कोटा में ई मित्र संचालिका और स्टाम्प विक्रेता है ,,वोह सभी से भाईचारे सद्भावना के माहोल में हसंते खेलते अपने सभी काम करते हुए ,दिन गुजार देती है वोह नियमित रूप से सुबह सहरी के बाद ,,रोज़े की नियत करती है फिर, दिन भर न काहू से दोस्ती न काहू से बेर ..न किसी की आलोचना ना किसी की बुराई ..न बुरा कहना न बुरा देखना बस ख़ामोशी से खुद के काम में समर्पण भाव से लगे रहना,, फिर इफ्तार के वक्त ,अजान का इन्तिज़ार, वही इफ्तार की दुआ और रोज़ा इफ्तार, यही दिनचर्या आशा जी की नियमित है ..आशा जी इन दिनों ,,कुरान ख्वानी करवाती है ..मिलाद शरीफ पड़वाती है भजन कीर्तन ,,कथा करवाती है ,,,.दुसरे धर्म करम करती है,, कुछ लोगों को साथ रोजा खुलवाती है मज़हबी एकता की ख़ुशी हासिल करती है ..लगातार पांच से रोज़े रख रही आशा जी कहती है वोह किसी के लियें नहीं खुदा के लियें और उनके दिली सुकून के लियें रोज़े रख रही है , जमाना क्या सोचता है इससे उन्हें कोई मतलब नहीं वोह कहती है ,मेरे इश्वर मेरे अल्लाह के बीच में कोई तीसरा क्यूँ ..उनका कहना है ,, धर्म सभी एक जेसे होते है ,,मान्यताये एक जेसी होती है ,,प्रार्थना और नमाज़ के तरीके अलग हो सकते है ,,व्रत और रोज़े के तरीके अलग हो सकते है ,,लेकिन मिलते जुले कार्यक्रम और परम्पराएँ तो है ,,उनका कहना है के वोह साल में जो दो नवरात्री आते है वोह उन्हें भी पुरे विधि नियमों के तहत रखती है ,,पूजा पाठ करती है ..उपवास रखती है लेकिन ,,,रोज़े भी उसी शिद्दत के साथ रख कर,,, खुदा के दरबार में अपना सर झुकाती है ...........आशा जी कामकाजी महिला भी है और समाजसेविका भी लेकिन उनके सर्वधर्म भाव और काहू से दोस्ती ना काहू से बेर की फितरत के कारण ही उनका होसला बुलंद है इसीलिए अल्लाह के करम ,ईश्वर की कृपा से, कामयाबी की सीड़ियों पर वोह लगातार बुलंदियों पर चढ़ रही है ........आशा जी के आलावा एक समाज सेवक भाई देवेन्द्र पाठक जो रोज़े पुरे तो नहीं रखते लेकिन उनका संकल्प कई वर्षों से है वोह पहला और आखरी रोजा पुरे निति नियमों से रखते है वोह जनेऊ भी डालते है तो उस जनेऊ के साथ अपने गले पीर बाबा की दी हुई तसबीह भी गले से लगाते है .वोह कहते है ,,दोस्तों मन्दिर में अज़ान और मस्जिद में घंटी की आवाज़ सुनने सुनाने के वक्त शुरू हो गए है ..नियत साफ़ तो सब ठीक ,,धर्म कर्म दिखावे से नहीं मन से होता है और आत्मा ..रूह मन की शुद्धिकरण सर्वधर्म भाव से होता है परस्पर मेल जोल से होता है भाईचारे सद्भावना से होता है ,,धर्म तो एक जानवर जेसा व्यवहार करने वाले व्यक्ति को इंसान बना देता है मानव बनाता है आत्मीयता मानवता सिखाता है तो आओ दोस्तों कुछ ऐसा किया जाए के रोते हुए को हंसाया जाए और इबादत का कोई मजहब कोई ज़ात कोई धर्म न हो ऐसा कुछ विधि विधान बनाया जाए ...........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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