राजस्थान में सब कुछ ठीक है , आल इज़ वेल ,, राज फिर से आएगा ,, सही बात है , लेकिन राजस्थान सरकार में बैठे मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर , जिला स्तर के सभी पुलिस और प्रशासनिक अधिकारीयों सहित कुछ विशेषाधिकारियों में अगर आमूल चूल परिवर्तन नहीं हुआ तो वोह ,, ऑल इज़ वेल की गुमराही रिपोर्ट के साथ साथ , करोली में क़ानून व्यवस्था के नाम पर लापरवाही जैसी हरकतें करते रहेंगे , और संवेदनशील , गाँधीवादी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का सुशासन को बदनाम करने का षड्यंत्र चलता रहेगा ,, शासन में संगठन की भागीदारी , ज़रूरी है , संगठन की भागीदारी में , मंत्रियों , उनके चमचों , विधायकों उनके चमचों की भागीदारी नहीं , जो सच कहने , सच देखने , सच लिखने , सच बोलने का साहस रखते हों , जिनका विकास विज़न हो , अपने अपने समाजों में संवेदनशील हों , जिनके पास गुप्त सूचनाएं आती हों , उन लोगों को भागीदार बनाने से ही ,, अब सरकार के लिए फिर से राज लाना सम्भव है , लेकिन सेवानिवृत अधिकारी , सरकार में बैठे खासमखास बने अधिकारी , विधायक , मंत्री , कुछ गिनती के लोग , अपने कोकस को बनाये रखने के लिए , मिस्फीडिंग कर रहे है , और राजस्थान में सब कुछ बेहतर से बेहतर होने के बाद भी, विरोधियों को अनावश्यक षड्यंत्रकारी विरोध का माहौल बनाने का मौक़ा मिल रहा है,, हम करोली की घटना ही लें , करोली में , कलेक्टर , पुलिस अधीक्षक कितने गैर ज़िम्मेदार निकले ,, यह सभी जानते है , किसी भी जुलुस को स्वीकृति देने के पहले ,, शत प्रतिशत शर्तों का पालन होता है , सद्भाविक माहौल बनाने के लिए , सभी वर्ग , धर्म समाज के लोगों को कलेक्टर बुलाता है , पुलिस अधीक्षक खुद उसमे मौजूद होते है , एक सकारात्मक वातावरण बनाता है , अख़बारों की पब्लिसिटी सकारत्मक होती है , एक धर्म के लोगों को दूसरे धर्म के लोग , पानी की प्याऊ लगाए , वगेरा वगेरा जैसे मामले मोटिवेटेड होते है , लेकिन यह सब नहीं हुआ , कलेक्टर का क़ानून व्यवस्था का फीडबैक ज़ीरो रहा , दूसरी तरफ पुलिस अधीक्षक की क़ानून व्यवस्था तो छीन भिन्न थी, हल्के में जुलुस को लिया , कागज़ों में तैनात पुलिस कर्मी भी फिल्ड में मौजूद नहीं रहे , हर बार जब भी जुलुस का कोई रुट तय होता है , तो वहां घरों की छतों पर , पुलिस कर्मी पहले से तैनात हो जाते है , छतों की तलाशी ली जाती है , सकारात्मक मोटिवेशन होता है , एक भरोसे का माहौल होता है , कोई भी बेहूदा नारा लगते ही उसे वही रोक दिया जाता है , पुलिस बनाम पब्लिक हो जाए , लेकिन साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाला विवाद नहीं होना चाहिए , ,एक सेवानिवृत्त अधिकारी करोली की घटना पर , अब तक कलेक्टर , पुलिस अधीक्षक के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होने से बहुत नाराज़ थे , किसी भी जुलुस के पहले ,, जुलुस रुट का पूर्वाभ्यास , छतों की निगरानी , तलाशी , और पुलिस जाब्ते के ज़रिये , आम जनता , सभी समुदायों में , क़ानून व्यवस्था का भरोसा वोह दिला पाने में सो फीसदी नाकामयाब रहे है , लेकिन कुछ तो सेवानिवृत अधिकारी , जो सरकार से छुट्टी होने के बाद भी , सरकार का महत्वपूर्ण हिस्सा बने है, कुछ अधिकारी जो खुद को सरकार का सबसे नज़दीकी हिस्सा स्वीकृत रूप से साबित करते देखे जाते है , कुछ विशेषाधिकारी , जो इन अधिकारीयों के खिलाफ न बोलते है ,न मुख्यमंत्री को फीडबैक देते है , ऐसे में , गलत लोगों के हाथ में प्रशासन रहता है और , ऐसे गलत लोग , प्रतिपक्ष के हाथों की भी कठ पुतली होकर , विपक्ष को मुद्दा हाथ में देने के लिए उल जलूल हरकतें करते है , कोटा में , धारा 144 का मूर्खतापूर्ण आदेश , करोली में आल इज़ वेळ के मुगालते में , साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने की साज़िश ,, बिजली आपूर्ति मामले में , रमज़ान को बीच में लाकर , दिए गए आदेश , यह मूर्खताएं नहीं है , यह एक साज़िश हैं , जो जान बुझ कर विपक्ष को सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए मुद्दे दिए जाएँ , क्योंकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में सरकार का इक़बाल बुलंद है , भारत के सभी राज्यों में , राजस्थान सरकार की संवेदनशीलता , अव्वल है ,विकास अव्वल , बुज़ुर्गों ,विकलांगों , बेरोज़गारों , कर्मचारियों , हर वर्ग के लिए सरकार की कल्याणकारी योजनाए , अव्वल है , फिर भाजपा के पास विरोध करने के लिए बाबा जी का ठुल्लू के सिवा कुछ नहीं , लेकिन अधिकारी सिर्फ सत्ता के वफादार होते है , इसीलिए भाजपा सरकार के विश्वसनीय समझे जाने वाले सभी अधिकारीयों से मुखबिरी करवाने की जुगत में है , कुछ अधिकारी सेवानिवृत अधिकारी तो यह भी जानते है , के भाजपा सत्ता में आने के बाद ऐसे अधिकारीयों को , सेवानिवृत अधिकारीयों को पुरस्कृत भी करती है , इसलिए वोह इधर से उधर होते रहते है , इधर सरकार और संगठन का तालमेल नहीं है , सिर्फ दो तीन लोग , जो संगठन से जुड़े है , उनसे संगठन नहीं होता ,, राजस्थान में 400 निर्वाचित पी सी सी सदस्य ,, 400 निर्वाचित ब्लॉक अध्यक्ष ,, सो से भी अधिक सहवृत पी सी सी सदस्य है , जिला अध्यक्ष है , लेकिन उनकी राय ,, मशवरे की अब कोई अहमियत नहीं रही , बस औपचारिकता के नाम पर अग्र्र कभी बुलाया भी तो , सामने बिठा दिया , गिनती के पिक ऐंड चूज़ ,, प्रक्रीया से , लोगों से भाषण दिलवाया और , लो साहब हो गए हम ज़िम्मेदार , आज शासन केसा है , शासन में क्या कमी है , क्या शासन में अधिकारी सही काम कर रहे है , शासन के विधायक , मंत्री क्या शै काम कर रहे यही , ,कांग्रेस के सभी जिला अध्यक्ष , जिला कार्यकारिणी के पदाधिकारियों , सभी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्यों , सभी ब्लॉक अध्यक्षों को बुलाकर , इस मामले में , हाँ , या ना , के मुद्दे पर ,गुप्त मतदान करवा लिया जाए , अगर , ,40 प्रतिशत भी हाँ के पक्ष में वोट मिल जाए तो यक़ीनन , सरकारी अधिकारी बेहतरीन काम कर रहे हैं , लेकिन अगर इससे कम वोट मिलते है तो फिर स्वीकार कर लेना चाहिए , के सरकारी अधिकारीयों से सरकारें नहीं चलती है , यह सिर्फ सरकारी नौकर होते है , शासन तो सरकार में बैठे मंत्री , और जिस संगठन के ज़रिये सरकार बनती है , उस सगंठन के जिला ब्लॉक स्तर के पदाधिकारी , ज़िम्मेदार चलाते है , लेकिन ऐसे लोगों के लेटर पेड़ पर , नियमित जाने वाले हज़ारों सुझाव , हज़ारों शिकायतें , समस्याएं , यह अधिकारी पत्र खोलते ही अंडर दी टेबल कर देते है , मुख्यमंत्री तक शायद जाने ही नहीं देते , ,तभी तो , मुख्यमंत्री महोदय की प्रक्रिया इन पत्रों के जवाब में कहीं पहुंच नहीं पाती है , , संगठन में भी , करोली मामले में , संगठन को भूमिका निभाना चाहिए थी , ,अल्पसंख्यक विभाग कांग्रेस का राजस्थान में अभी तो बनाया ही नहीं , लेकिन राष्ट्रिय अल्पसंख्यक विभाग की टीम करोली के मामले में जाना चाहिए थी , अल्पसंख्यक आयोग की टीम जो अभी बनी ही नहीं , लेकिन अध्यक्ष तो हैं ,उन्हें वहां जाना चाहिए था , इसमें हमारी कोताही हुई है,, एक अकेले मुख्यमंत्री क्या करें , उन्होंने कोरोना काल में , पुरे देश को , राजस्थान प्रबंधन मॉडल दिया, उन्होंने हर गरीब के घर पर खाना , दवा पहुंचाई ,बेहतरीन प्रशासन दिया ,, भाजपा के षड्यंत्र के बावजूद भी , कुछ लोगों के बहकावे में आकर , सरकार गिराने की साज़िश को , अकेले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने , असफल किया , सरकार बचाई , ज़िम्मेदारी दिखाई ,, दो बार कोरोना की मार झेलने , हार्ट की बाईपास सर्जरी के बाद भी , मुख्यमंत्री हँसता हुआ चेहरा लेकर , राजस्थान के पेट में पल रहे भ्रूण से लेकर , उम्र की आखरी दहलीज़ पर खड़े बुज़ुर्ग तक के हर शख्स , हर वर्ग के लिए , कल्याणकारी योजनाओं के साथ मौजूद रहते है , लेकिन उनके हाथ पांव , उनकी आँख नाक , तो अधिकारी है , उनके विशेषाधिकारी है , वोह लोग उन्हें को ऑपरेट नहीं कर रहे है, मिस फीड कर रहे है , जहाँ आल इज़ वेळ नहीं है वहां भी आल इज़ वेल बताकर गुमराही कर रहे है ,, संगठन के पदाधिकारियों से उन्हें मिलने नहीं देते , अकेले में फीडबैक नहीं लेने देते , बस फोर्मलिटी करवाकर , खाना खिलाकर , रवानगी , कभी कोई मिलना चाहे तो टाइम नहीं देते , टाइम है , तो लाल पट्टी की हदबंदी ऐसी के कोई अकेले में कुछ कहने की स्थिति में नहीं , पत्र उन तक पहुंचाते ही नहीं , जिला स्तरीय अधिकारीयों की रिपोर्ट ही नहीं , इसलिए अब इन सब हालातों में , मुख्यमंत्री कार्यालय को , अधिकारीयों और कुछ लापरवाह विशेषाधिकारियों , सलाहकारों के दायरे से बाहर निकलना होगा ,, सच तलाशना होगा , स्वर्गीय राजीव गाँधी की तरह , हर ज़िले , हर कस्बे में अपना एक फीड बेक देने वाला , निजी व्यक्ति मुक़र्रर करना होगा ,, जो दिन प्रतिदिन नहीं तो सप्ताह में , उनके क्षेत्र के विधायक , सांसद , मंत्री , कांग्रेस पदाधिकारी , कलेक्टर , पुलिस अधीक्षक , दूसरे छोटे बढे अधिकारी किस तरह से काम कर रहे है , जनउपयोगी फ्लेगशिप योजनाओं के क्या हाल है , ओरिजनल रिपोर्ट मुख्यमंत्री तक पहुंचाए , और मुख्यमंत्री महोदय , जिस तरह से स्वर्गीय राजीव गांधी का संवाद विभाग हर पत्र को देखने पढ़ने , उस पर विचार करने , प्रतिक्रिया देने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी वैसी ही ज़िम्मेदारी यहां शुरू हो ,अधिकारीयों , सलाहकारों में आमूल चूल परिवर्तन हों , आम जनता से पक्षपात , बेईमानी , अभद्रता करने वाले अधिकारी को बोरिया बिस्तर बंद हो , , कार्यकर्ताओं , पदाधिकारियों की हर वाजिब लिखित शिकायत पर काम हो, , अधिकारीयों को जो गलत फहमी बैठी हुई है , के वोह किसी भी कलफ लगे कुर्ते पायजामे वाले को नेता नहीं माने , चाहे वोह कितना ही बढ़ा संगठन का पदाधिकारी हो , ,अधिकारीयों को जो गलत फहमी है , के उनके खिलाफ तो तभी कार्यवाही होगी , जब संगठन के सभी लोग इकट्ठे होंगे , उनके खिलाफ प्रस्ताव पार्टी करेंगे ,नहीं तो उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं होगी, जब विधायक ,, मंत्री द्वारा लगाए गए , ,अधिकारी है , वोह उनको साध लेते है , तो फिर संगठन भी मंत्री विधायकों का होता है , ऐसे में , उनके खिलाफ संगठन बोलेगा ही नहीं , संगठन एकत्रित ही नहीं होगा, लेकिन जो पदाधिकारी जिनका दम घुटता है , वोह तो सच बताएंगे , ,लेकिन ऐसे अधिकारीयों के दिमाग में सेट है , के एक अधिकारी चाहे कितना ही बढ़ा हो इस शासन में , उसकी शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं होगी , ना नो मन तेल होगा , ना राधा नाचेगी , वाले कहावत अधिकारी समझने लगे है , लेकिन अब वक़्त आ गया है , के उनके दिमाग से यह गलत फहमी निकले , सच अगर एक आम आदमी भी लिखे ,सच अगर एक अकेला पदाधिकारी भी बताये तो ,, कार्यवाही होना चाहिए, इस मोड़ को हमें बदलना होगा ,, राज लाना है , राज आएगा , एक अकेले मुख्यमंत्री की कोशिशें कामयाब हों , सब मिलजुलकर , इसमें हिस्सेदार बने , इसलिए सभी को अपनी ज़िम्मेदारी निभाना होगी ,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
06 अप्रैल 2022
राजस्थान में सब कुछ ठीक है , आल इज़ वेल ,, राज फिर से आएगा ,, सही बात है
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