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19 अप्रैल 2022

और किसी काम की निस्बत न कहा करो कि मै इसको कल करुँगा

 ग़ार) पर (बतौर यादगार) कोई इमारत बना दो उनका परवरदिगार तो उनके हाल से खूब वाकि़फ है ही और उनके बारे में जिन (मोमिनीन) की राए ग़ालिब रही उन्होंने कहा कि हम तो उन (के ग़ार) पर एक मस्जिद बनाएँगें (21)
क़रीब है कि लोग (नुसैरे नज़रान) कहेगें कि वह तीन आदमी थे चैथा उनका कुत्ता (क़तमीर) है और कुछ लोग (आकि़ब वग़ैरह) कहते हैं कि वह पाँच आदमी थे छठा उनका कुत्ता है (ये सब) ग़ैब में अटकल लगाते हैं और कुछ लोग कहते हैं कि सात आदमी हैं और आठवाँ उनका कुत्ता है (ऐ रसूल) तुम कह दो की उनका सुमार मेरा परवरदिगार ही ख़ब जानता है उन (की गिनती) के थोडे़ ही लोग जानते हैं तो (ऐ रसूल) तुम (उन लोगों से) असहाब कहफ के बारे में सरसरी गुफ्तगू के सिवा (ज़्यादा) न झगड़ों और उनके बारे में उन लोगों से किसी से कुछ पूछ गछ नहीं (22)
और किसी काम की निस्बत न कहा करो कि मै इसको कल करुँगा (23)
मगर इन्शा अल्लाह कह कर और अगर (इन्शा अल्लाह कहना) भूल जाओ तो (जब याद आए) अपने परवरदिगार को याद कर लो (इन्शा अल्लाह कह लो) और कहो कि उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे ऐसी बात की हिदायत फरमाए जो रहनुमाई में उससे भी ज़्यादा क़रीब हो (24)
और असहाब कहफ अपने ग़ार में नौ ऊपर तीन सौ बरस रहे (25)
(ऐ रसूल) अगर वह लोग इस पर भी न मानें तो तुम कह दो कि ख़ुदा उनके ठहरने की मुद्दत से बखूबी वाकि़फ है सारे आसमान और ज़मीन का ग़ैब उसी के वास्ते ख़ास है (अल्लाह हो अकबर) वो कैसा देखने वाला क्या ही सुनने वाला है उसके सिवा उन लोगों का कोई सरपरस्त नहीं और वह अपने हुक्म में किसी को अपना दख़ील {शरीक} नहीं बनाता (26)
और (ऐ रसूल) जो किताब तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से वही के ज़रिए से नाजि़ल हुई है उसको पढ़ा करो उसकी बातों को कोई बदल नहीं सकता और तुम उसके सिवा कहीं कोई हरगिज़ पनाह की जगह (भी) न पाओगे (27)
और (ऐ रसूल) जो लोग अपने परवरदिगार को सुबह सवेरे और झटपट वक़्त शाम को याद करते हैं और उसकी खुशनूदी के ख़्वाहाँ हैं उनके उनके साथ तुम खुद (भी) अपने नफस पर जब्र करो और उनकी तरफ से अपनी नज़र (तवज्जो) न फेरो कि तुम दुनिया में जि़न्दगी की आराइष चाहने लगो और जिसके दिल को हमने (गोया खुद) अपने जि़क्र से ग़ाफिल कर दिया है और वह अपनी ख़्वाहिशे नफसानी के पीछे पड़ा है और उसका काम सरासर ज़्यादती है उसका कहना हरगिज़ न मानना (28)
और (ऐ रसूल) तुम कह दों कि सच्ची बात (कलमए तौहीद) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (नाजि़ल हो चुकी है) बस जो चाहे माने और जो चाहे न माने (मगर) हमने ज़ालिमों के लिए वह आग (दहका के) तैयार कर रखी है जिसकी क़नातें उन्हं घेर लेगी और अगर वह लोग दोहाई करेगें तो उनकी फरियाद रसी खौलते हुए पानी से की जाएगी जो मसलन पिघले हुए ताबें की तरह होगा (और) वह मुँह को भून डालेगा क्या बुरा पानी है और (जहन्नुम भी) क्या बुरी जगह है (29)
इसमें शक नहीं कि जिन लोगों ने इमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम करते रहे तो हम हरगिज़ अच्छे काम वालो के अज्र को अकारत नहीं करते (30)

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