कोटा में एक धार्मिक स्थान तक सड़क बनाने के अवरोध के बाद , एक वन अधिकारी के दफ्तर में भाजपा के पूर्व विधायक , भवानी सिंह राजावत के खिलाफ मुक़दमा , फिर गिरफ्तारी , फिर फरियादी की न्यायालय में ज़मानत की अर्ज़ी खारिज करने की प्रार्थना एक लीगल इश्यू हो सकता है , लेकिन इसके बाद , समाजों के बीच में जो कटुता का माहौल है, इस घटना को लोग समाज से जोड़ कर जो कार्यवाही कर रहे है , वोह निश्चित तोर पर एक सभ्य समाज के लिए ठीक नहीं है , भवानी सिंह राजावत ,, ने जो किया वोह आम जनता के सामने वीडियो के ज़रिये खुलासा हो रहा है , प्यार से चपत , फिर खुद वन अधिकारी का हाथ पकड़ कर उन्हें खुद की कुर्सी पर बिठाने का इसरार , निश्चित तोर पर , यह जाति सूचक अपमान की साक्ष्य तो नहीं , विडिओ के अलावा कोई और घटना हो तो पता नहीं लेकिन इन घटनाओं में तो ऐसा कोई सच नहीं है , ,खेर , इस ड्रामा पॉलिटिक्स में , भाजपा में ही , पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा सिंधिया , और वसुंधरा सिंधिया के मुखालिफ लोगों की अपनी अहम भूमिका है , पार्टियों के आँतरिक विरोधाभास हो सकते है , लेकिन भवानी सिंह राजावत के जेल जाने और फिर अस्पताल में अचानक गंभीर बीमारृ होकर भर्ती होने के बाद , जो ड्रामा पॉलिटिक्स है , वोह समाजों को बांटने , नफरत फैलाने वाला कृत्य है , इसकी सभी समाजों को निंदा करना चाहिए , ,यह झगड़ा , यह मामला , समाजों का झगड़ा नहीं , एक अधिकारी , एक जनप्रतिनिधि के बीच का क़ानूनी मामला है , मुक़दमा दर्ज हुआ ,गिरफ्तारी हुई , ज़मानत ख़ारिज हुई , हायकोर्ट में ज़मानंत हो जायेगी , फिर सरकारें अगर बदली तो बड़े आराम से यह मुक़दमा जनहित का मुद्दा बताकर , पहले के मुक़दमों की तरह राज्य सरकार वापस ले लेगी , लेकिन इसमें राजपूत समाज , इसमें , मीणा समाज को , अलग अलग रैलियां करने , प्रदर्शन करने की ज़रूरत कहाँ है , सभी तो एक है , सभी तो भाईचारा सद्भावना से रह रहे है , वन अधिकारी ने मुक़दमा दर्ज करा दिया , गिरफ्तारी हो गयी , ज़मानत ख़ारिज हो गयी , और क्या चाहिए , हायकोर्ट में भी वोह जाकर इसका विरोध करें , भवानी सिंह राजावत गिरफ्तार हुए , उनके अस्पताल में भर्ती होने पर ,फरियादी की तरफ से ,, मेडिकल बोर्ड बिठाकर कार्यवाही करने का कोई प्रार्थना पत्र पेश नहीं हुआ , यानी उन्होंने अब इसे गम्भीरता से नहीं लिया ,, बात गयी रात गयी , क़ानून अपना काम करेगा , भवानी सिंह राजावत के पास अदालत में ज़मानत प्रार्थना पत्र के सभी विकल्प है , जो धाराएं लगी है , उन्हें हाईकोर्ट में चेलेंज करने के क़ानूनी विकल्प है , अनुसंधान अधिकारी के समक्ष अपनी साक्ष्य पेश करने के विकल्प है , वन अधिकारी , और भवानी सिंह राजावत के जो समर्थक है ,वोह इस मामले में क़ानूनी मदद करे , लेकिन रैलियां निकलना , पुतले जलाना , मोन जुलुस निकालना ,, बैठके करना ,, यह सब ऐसी घटनाओं को लेकर , ठीक नहीं लगता , भवानी सिंह राजावत एक जनप्रतिनिधि है , पूर्व विधायक है , कई मीणा समाज के लोगों से उनके अंतरंग संबंध है ,जबकि खुद वन अधिकारी एक अधिकारी है , खुले दिमाग के है ,उनके भी , राजपूत समाज के कई लोगों से अंतरंग संबंध है ,ऐसी निजी घटनाओं में ,समाजों को झोंकना बेमानी है , बेवकूफी है , सीना ठोककर , कई कोंग्रेसियों ने , लिखा में कोंग्रेसी हूँ , लेकिन राजपूत हूँ ,में कोंग्रेसी हूँ लेकिन भवानी सिंह राजावत के साथ जो अन्याय हुआ उसके खिलाफ हूँ , अरे लिखने से क्या हुआ , उनकी मदद करो , अच्छा वकील करवाओ , समझौते का वातावरण बनवाओ , समाजो की दूरियां कम करो ,, व्यक्ति की घटना को समाजों से मत जोड़ो , ऐसे हालात बनाओ , के ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति फिर कभी ना हो ,, जनप्रतिनिधि को किसी के चपत लगाने, किसी का अपमान करने का अधिकार नहीं है , एक अधिकारी अगर गलत कर रहा है , तो शांतिपर्ण प्रदर्शन , उनके वरिष्ठ अधिकारीयों को ऐसे अधिकारी की तथ्यात्मक शिकायत करो , ,अधिकारी के चैंबर में, वाद विवाद , तो उसे धमकाने की आई पी सी की परिभाषा में आता ही है , और क़ानून का राज तो होना ही चाहिए , , अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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