Apni Kadar
Apni Pehchan
पहली बार खुद की कदर जानी
बिस्तर पर पड़ी तो कीमत पहचानी
झाड़ू पौछा, दो हजार
खाना, चार हजार
कपड़े, डस्टिंग, तीन हजार
ओर चाय नाश्ता .....
उफ़ क्या क्या लिखूं....??????
दस हजार देकर भी मिलती नहीं
घर मैं कोई बाई टिकती नहीं
और मैं बरसों से टिकी हूं
बिन सैलेरी के ही रुकीं हुं
बीस साल का तो
लाखों हो गया
और वो कहते रहे
कमाती नहीं हो
वेशक कमाया नहीं
पर बचाया तो हैं
मकान को घर
बनाया तो है
आज जब चाय बनाते हों
चार बार पूछनें जो आते हों
फिर भी मेरी तरह
ना बना पाते हो
और तुमने जो पोहे बनाएं
आधे कढ़ाही में थे चिपकाएं
और परांठा को पापड़ बनाया
जो हमने प्यार से था खाया ....!
माना तेरा किया बहुत है
पर मेरा किया कम तो न था
घर को सहेजना
मेरा शौक नहीं जरूरत थी
काश ये तुम समझ जाते
तो मेरे किये को हल्का न बताते। ....
सभी ग्रहणियों को समर्पित
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