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17 अक्तूबर 2021

वोह श्री मयूरेश्वर महादेव मंदिर प्रतिष्ठान धर्मार्थ पंजीकृत न्यास विज्ञाननगर कोटा राजस्थान के संस्थापक ट्रस्टी है

 

वोह श्री मयूरेश्वर महादेव मंदिर प्रतिष्ठान धर्मार्थ पंजीकृत न्यास विज्ञाननगर कोटा राजस्थान के संस्थापक ट्रस्टी है , विश्वविख्यात हिन्दू गुरु है , माशा अल्लाह आज वोह 96 वे वर्ष के हष्टपुष्ट ,राजस्थान सरकार से एक मात्र साहित्यिक पेंशन प्राप्त , साहित्यकार है , विजय दशमी के दिन उनका जन्म हुआ और आज , ईद मिलादुन्नबी के एक दिन पहले , फिर उनका 96 वां जन्म दिन है , अल्लाह उन्हें उम्रदराज़ रखे , कामयाब रखे , उन्हें उनकी सालगिरह पर , बेशुमार दुआएं ,
बधाई
मुबारकबाद , वोह अपने जन्म दिन पर खुद बढे गर्व से अपनी भाषा में लिखते है ,, मेरा जन्मदिवस
सन २०२१ ईस्वी उम्र के छिन्नवे वर्ष के प्रवेश का मेरा पहला दिन
स्नेहिजन मेरा सादर अभिवादन सलाम स्वीकारें ।
हमारे जाने के बाद यारों ज़माना पूछेगा तुमसे आकर
वो एक शायर कहां गया
कभी जो रहता था इस शहर में
उनसे कह दो अपने वक्त के टाइम कैप्सूल साधे शताब्दियों के सभागार में अनश्वर आसीन हूं।
याद करने पर में खयालों की इबारत में लिखा आऊंगा।
आप एहसास की आंखों से मुझे पड़ लेना।
आप के सपरिवार स्वस्थ आनंदी जीवन की कामना के साथ
बशीर अहमद मयूख,, यकींनन , बशीर अहमद मयूख , साहित्यिक खासकर हिंदी साहित्यिक दुनिया के सर्वोच्च स्थान प्राप्त व्यक्तित्व है , उनके एक मज़हबी मुखालिफ काम को लेकर , में उनसे व्यक्तिगत नाराज़गी रख सकता हूँ , उनकी आलोचना कर सकता हूँ , लेकिन जिस शख्स में , बेहिसाब खूबियां हों , खामोशियाँ हों, विनम्रता हो , साहित्यिक समझ हो , अनुभव हो , उसकी एक गलती , बहुत छोटी , बहुत छोटी सी लगती है , वोह गलती , उनकी निगाह में क़ौमी एकता का संगम है , निश्चित तोर पर , जिस मंतव्य , जिस विचार , जिस प्रचार , जिस मक़सद से वोह क़ौमी एकता के नाम का मंदिर , सिर्फ भावनाओं , सिर्फ धर्मों को जोड़ने के मक़सद से मनाया गया था , अगर वहां , रामायण ,भगवत गीता , क़ुरआन , बाइबिल , गुरु ग्रन्थ के प्रचार प्रसार होते , सभी त्योहारों के मौके पर वहां कार्यक्रम होते तो यक़ीनन , वोह सोच अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण होती , लेकिन वोह ऐसा ना कर सके , क्यों ना कर सके , इसका जवाब वोह ही जाने ,, लेकिन वोह सूरज हैं , वोह साहित्यिक दुनिया के सर्वोच्च स्थान पर बैठी शख्सियत है , इख्तलाफात के बाद भी उन्हें
बधाई
मुबारकबाद ,
आज़ादी के जश्न के वक़्त 15 अगस्त 1947 को बशीर अहमद मयूख ने लिखा था , तू हिंन्दू नहीं , नहीं मुस्लिम ,केवल हिंदुस्तानी बन ,, फिर जगह न होगी शेष वह , जहाँ तेरा झंडा ना हो , यक़ीनन यह पंक्तियाँ बशीर अहमद मयूख ने , उस वक़्त एक सलाह के रूप में लिखी थी , लेकिन आज इस कविता के संदेश के विपरीत हम हिन्दू है , हम मुसलमान है , और रोज़ आपस में ही हिन्दुस्तानियत को ताक में रखकर , इस आज़ाद हिन्दुस्तान के सीने को छलनी कर रहे है , बशीर अहमद मयूख , जैसा नाम वैसा काम ,, बशीर यानि अच्छी खबर , अहमद यानी खुदा का शुक्रगुज़ार , मयूख यानी रौशनी की किरण , यक़ीनन खालिस एक अपवाद को छोड़कर बशीर अहमद मयूख , हिंदी साहित्य के लिए अच्छी खबर है , ऐतिहासिक खबर है , और वोह विनम्र है , हर आलोचना के बाद भी विनम्र जवाब के साथ खुदा के शुक्रगुज़ार है , बशीर अहमद , जब साहित्यिक दुनिया में मयूख बने तो यक़ीनन वोह एक साहित्य की रौशनी की किरण ही थे , जो आज एक सूरज की तरह चम रहे है , जग मग हो रहे है , , बशीर अहमद मयूख , आज़ादी की जंग , के साथ आज़ादी के जश्न के गवाह है , उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने जब , उनकी साहित्यिक सेवाओं को देखकर , साहित्यिक सेवाओं के सृजन के लिए , पहली बार साहित्यकार पेंशन शुरू की जो ,टेम्परेरी थी , लेकिन गाँधीवादी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने , इस साहित्यिक सृजन यात्रा को आगे बढ़ाने के लिए बशीर अहमद मयूख के निवेदन को स्वीकार किया , वेदव्यास के साहित्य एकेडमी अध्यक्ष के दौरान , मयूख को ,जीवन पर्यन्त साहित्यिक पेंशन , की स्वीकृति दी जो आज भी निर्बाध जारी है , कोटा में मयूरेश्वरमंदिर के निर्माण के बाद , कुछ भाजपाई लोगों के नज़दीकियों को देखकर , तात्कालिक साहित्य एकेडमी के चेयरमेन , वेदव्यास ने जब मयूख को दक्षिण पंथी , साहित्यिक सोच की तरफ बढ़ने वाला बताया तो वोह आहत हो गये , बशीर अहमद मयूख , लगातार आरोपों से , उनकी उपेक्षा से आहत थे , उन्होंने कोई विवाद नहीं किया, क़लमकार थे , अल्फ़ाज़ों के जादूगर थे , उन्होंने , विनम्रता से अपने शब्दबाण छोड़े , शब्द युद्ध में महारत इस योद्धा ने , वेदव्यास और विरोधी साहित्यकारों द्वारा उठाये गए हर प्रश्न का लाजवाब ,, जवाब दिया , हर अलफ़ाज़ में विनम्रता थी , गंभीरता थी , ,14 अप्रेल 2013 को लिखे इस पत्र के ज़रिये उन्होंने एक एक आरोप के जवाब को विनम्र ऐतिहासिक दस्तावेज बना दिया ,,, उन्होंने मयूरेश्वर मंदिर के आरोपों के बारे में भी सफाई देते हुए लिखा ,, मेरा लेखन धार्मिक नहीं आध्यात्मिक राष्ट्रिय है , द्वारा स्थापित मयूरेश्वर महादेव मंदिर के प्रवेश द्व्रार पर , शिलापट्ट पंक्तियों में , ईश्वर , अल्लाह , वाहेगुरु , चाहे कहो , चाहे कहो श्रीराम , सब का मालिक एक है , अलग अलग है नाम , का हवाला देकर खुद को सभी धर्मों का पैरोकार बताने का प्रयास क्या , उन्होंने लिखा , के पेंशन आपने नहीं दिलवाई , अस्थाई पेंशन हरिदेव जोशी ने शुरू की , जिसे खुद के आग्रह पर अशोक गहलोत जी ने , स्थाई पेंशन कर मेरे जीवन की व्यवस्था कर दी , ,मयूख ने स्पष्ट किया , उनकी हर कविता , हर साहित्य में , उनका मंतव्य साफ रहता है , वोह आठवीं पढ़े लिखे होने पर भी , बहतरीन लिख रहे है , उन्होंने स्वीकार किए के वर्ष 1950 से 1972 तक वोह समाजवादी पार्टी से जुड़े रहे उन्होंने वर्ष 1954 में समाजवादी पार्टी से चुनाव भी लढा ,, फिर वोह कोटा बूंदी , झालावाड़ ,, कोटा संभाग के , समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष भी रहे ,,, और अब 6 जून 1972 से वोह राजनीती से सन्यास ले चुके है , वोह लोहिया प्रभावित है , उन्होंने याद दिलाया , वेदों की ऋचाओं में देखें ,, तो अद्देत की आयत में अल्लाह नज़र आये , उन्ही की पत्रिका में उनकी कविता प्रकाशित हुई है , उन्होंने अपना दुःख व्यक्त करते हुए लिखा , हुशियार कलमकारों ,, नाख़ून सियासत का शब्दों के , परिंदों के पर नोच ना जाएँ , मेरी आत्मा नोच गए ,, बशीर अहमद मयूख ने , सिक्स्थ क्लास में पढ़ते वक़्त उनके जीवन की पहली कविता लिखी थी फिर तो वोह लिखते गए , लिखते गए , और अपने शहर कस्बे छबड़ा से , ,कोटा , फिर संभाग ,हाड़ोती , ,फिर राजस्थान , फिर सम्पूर्ण भारत फिर सम्पूर्ण विश्व के ,, हिंदी कवि के रूप में हिंदी साहित्यकार के रूप में , विश्व हिंदी के गुरु बन गए ,, वोह रेल्वे सहित भारत सरकार की सभी हिंदी उत्थान समितियों , हिंदी समितियों के , ज़िम्मेदार , पथ प्रदर्शक , सलाहकार रहे है ,
कोटा के विख्यात कवि, बशीर अहमद मयूख अब अब माशाअल्लाह 96 से 97 वर्ष में शामिल हो रहे हैं,,
उन्होंने कविता और हिंदुत्व के क्षेत्र में मिसाल कायम की है। उन्होंने
ऋग्वेद की ऋचाओं का हिंदी काव्यानुवाद किया है। सभी धर्मो के
प्रमुख ग्रंथों के खास- खास सूक्तों को भी हिंदी कविता की लडि़यों
में पिरोया है। कोटा में उनके द्वारा निर्मित शिव मंदिर में नियमित
पूजा अर्चना होती है। बिड़ला फाउंडेशन ने उनकी पुस्तक "अवधूत
अनहद नाद" को बिहारी पुरस्कार प्रदान किया है। जापान के एक
विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग में उनके द्वारा लिखी कविता पढ़ाई
जा रही है। श्री मयूख को वर्ष 2018 में, केंद्र सरकार की ओर से,
प्रवासी भारतीय केंद्र नई दिल्ली में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति
रामनाथ कोविंद द्वारा 'विश्व हिन्दी सम्मान' से भी नवाजा गया है।
श्री मयूख गत छः दशकों से निरंतर सृजन रत हैं। आपके द्वारा 1973 में
प्रकाशित ‘स्वर्ण रेख’, जिसमें ऋग्वेद की ऋचाओं का भावानुवाद है,
उनका कवि सम्मेलनों में हजारों श्रोताओं के बीच में एक ऋषि की
ओजस्वी वाणी में वाचन करना, अपने आपमें अद्भुद प्रयास रहा है।
श्री मयूख ने, जैन सूक्तों का, गुरुग्रन्थ साहिब का भावानुवाद कर,
एक मुस्लिम भारतीय सांस्कृतिक मन की जिस उदात्तता का परिचय
दिया है, वह अद्भुत्त है,,,
1. ‘स्वर्ण रेख’- (ऋग्वेद की ऋचा मंत्रों का काव्य रूप है- जो 1973 में
प्रकाशित हुआ है। दो कविताएं, एन.सी. आर.टी. द्वारा प्रकाशित हिन्दी
के 11वीं व बारवीं के पाठ्यक्रम में सम्मिलित है।
2. ‘अर्हत ’(1975) सूक्त काव्य का भाषानुवाद
3. ‘ज्योतिपथ (1984)’ वेद, उपनिषद, गीता, कुरान, गुरुग्रन्थ साहिब,
जैन, बौद्ध आगम का भाषानुवाद
4. ‘सूर्य बीज’ (1991)
5. ‘अवधू अनहद नाद ' (1998) ...., बिहारी पुरस्कार प्राप्त।
6. संस्कृति के झरोखे से (2000) सांस्कृतिक निबन्ध संग्रह
‘... कवि ‘मयूख भारतीय संस्कृति की उदात्त धरोहर के पक्षधर हैं, उसीे मार्ग पर वे चल रहे हैं, और अपनी कविता में, साझा संस्कृति की पुष्प गंधी सुगंध अनवरत निसृत कर रहे हैं। वोह हास्य काव्य के ज़रिये ,, साहित्य से विमुख व्यवस्था के खिलाफ भी है , बशीर अहमद मयूख ने , सैकड़ों कविताएं , डी, कई दजर्न पुस्तकें , सैकड़ों पत्र , लिखे है , हज़ारों हज़ार कवि सम्मेलनों की शोभा
बधाई
है , अभी हाल ही में , भरत सिंह विधायक पूर्व मंत्री ने जब , महात्मा गाँधी पर एक गोष्ठी आयोजित की , तब ,, बशीर अहमद मयूख ने ,, गांधीवाद का समर्थन करते हुए दृढ़ता से दोहराया था ,, जहाँ सत्य और अहिंसा है , वहां गांधी जी थे और रहेंगे ,, उन्हें कोई भी खत्म नहीं कर सकता है , अल्लाह , उम्र के इस पड़ाव मे उनके अनुभवों का लाभ , कोटा सहित राजस्थान , और पुरे देश के साहित्यकारों को दे , देश के हिंदी साहित्यकार उनकी विधा , उनकी लेखनी , के प्रति जागरूक हों , साक्षर हों , केंद्र सरकार , उनके इस समर्पण , मयूरेश्वर मंदिर की थीम , को समझे और राष्ट्रिय स्तर पर ,, उन्हें साहित्यिक प्रतिभा के आलावा , एक खामोश तबियत , क्रन्तिकारी , व्यवस्थापक के रूप में , समझे , उन्हें केंद्रीय स्तर पर उनकी सेवाओं के अनुरूप उन्हें सम्मान दे , और अब जब , भारत की सबसे बढ़ी पंचाययत , लोकसभा के अध्यक्ष , हमारे कोटा के ही सांसद , ओम बिरला जी लोकसभा अध्यक्ष है , तो फिर इस बारे में , उन्हें सोचना ही चाहिए , क्यूंकि राजस्थान सरकार के गांधीवादी मुख्यमंत्री ने उनकी साहित्यिक यात्रा को निर्बाध बनाये रखने के लिए जो कुछ भी हिस्सेदारी दिखाई है , वोह तो खुद उन्होंने प्रशंसनीय बताकर , वेदव्यास जी को लिखे पत्र में , विनम्र शब्दों में , स्थिति स्पष्ट कर दी है , आदरणीय कहूं या फिर कहूं तुम्हे रक़ीब , जो भी साहित्य के तुम बीज भी , साहित्य के तुम वट वृक्ष भी हो , साहित्य के तुम समुन्द्र नहीं , तुम महासमुन्द्र भी हो , , अल्लाह से दुआ है ,के ज़िंदगी भर विनम्रता से , समाजवादी सोच के साथ , सब को साथ लेकर चलने के स्वभाव के साथ जो विनम्रता अपने दिखाई है , जो कुछ छोटी मोटी भूल , गलतियां , भटकाव भावावेश में आपसे हुए हो उसके लिए भी तोबा कर , देश की आप महान हस्ती जो , हिंदी साहित्य का सूरज है , जिससे देश का ही नहीं , विश्व का हिंदी साहित्य रोशन है , वोह जगमगाते रहे , अल्लाह लम्बी उम्र दे ,भूलें जो भी है , उन्हें सुधार करवाए और , विश्व के हिंदी इतिहास में , अंग्रेज़ों के खिलाफ योद्धा बन कर शब्दों के बाणों से लड़कर , आज़ादी के जश्न पर , भारत को वैश्व का सर्वोच्च दर्जा दिलवाने के लिए दी गयी क़ौमी एकता की नसीहत के साथ , जो साहित्य का सृजन किया है वोह यात्रा जारी रहे , और केंद्र सरकार आपकी इस विधा , आपके इस समर्पण को समझे , वोह कोई पुरस्कार तो ,नहीं ,, लेकिन केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी भी है , के एक अज़ीम शख्सियत जो कोटा में एक सादगी भरे जीवन में है , उसे राष्ट्रिय स्तर पर , एक बार फिर , सम्मान कर साहित्यकारों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभाए , एक बार फिर बशीर अहमद मयूख साहब को , उनकी लम्बी उम्र की दुआओं के साथ , उन्हें
बधाई
, मुबारकबाद , अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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