लाश डॉक्टर संवाद
डॉ. अपने केबिन में बैठा हुआ था। केबिन में एक शख्स ने कदम रखा। -डॉ. ने सिर उठाकर देखा और पूछा, कौन हो तुम?
-लाश हूं।
-लाश? मतलब?
-तीन महीने पहले इसी अस्पताल में लाश में बदला था, आॅक्सीजन नहीं मिल पाई थी।
-यहां तो अनगिनत लोग आॅक्सीजन की कमी से लाश बने थे।
-लेकिन सरकार तो कहती है कि एक आदमी भी आॅक्सजीन की कमी से नहीं मरा?
-सरकार झूठ बोलती है।
-तो तुम सच बोलो।
-नहीं...मैं सच नहीं बोल सकता।
-क्यों नहीं बोल सकते?
-मेरा बड़ा अस्पताल है। करोड़ों रुपये लगे हैं इसमें। न जाने कितने गलत-सलत काम किए है। सरकार सब जानती है। अगर सच बोल दिया तो न जाने कितनी जांच एजेंसीज मेरे पीछे पड़ जाएंगी। अस्पताल बंद हो जाएगा। मैं जेल भी जा सकता हूं।
-तो फिर सच कौन बोलेगा?
-नोएडा चले जाओ। वहां न्यूज चैनल के दफ्तर हैं। उनसे मिलो।
-अगर वे सच बोलते तो क्या देश की यही हालत होती?
-फिर कुछ नहीं हो सकता। वापस लौट जाओ।
-क्या कोई भी सच नहीं बोलेगा?
-नहीं कोई सच नहीं बोलेगा। हम जिंदा लाशें हैं। कुछ को जिंदा लाशें बना दिया गया है, कुछ जानबूझ कर लाशें बन गए हैं। तुम यहां से चले जाओ। न जाने कौन हमारी बातें सुन रहा होगा।
लाश की आंखों से आंसू गिरने लगे। वह धीरे-धीरे नीचे बैठ गई और घुटनों में सिर दे कर रोने लगी।
डॉक्टर हड़बड़ाकर नींद से जाग गया। एसी चलने के बावजूद वह पसीने से नहाया हुआ था। उसने चारों तरफ देखा। चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तैर आई और बोला, थैंक्स गॉड सिर्फ सपना था।
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