कई साल बाद मिले हो तुम कहाँ खो गये थे जवाब दो
मेरे आँसुओं को ना पोंछो तुम मेरे आँसुओं का हिसाब दो ।
किसी रोज़ तुम मेरी ख़ैरियत कभी फ़ोन करके ही पूछ लो
ये तो मैंने तुमसे कहा नहीं के मेरे ख़तों का जवाब दो ।
मैं अगर हूँ काँटों की मुस्तहिक़ तो ये तोहफ़ा मुझको क़ुबूल है
ये मेरा कहाँ है मुतालबा के मुझे मेहेक्ते गुलाब दो ।
यही शहज़ादों की रस्म है वो नवाज़ते हैं ख़िताब से
मैं अगर तुम्हारी कनीज़ हूँ तो मुझे मेहेक्ते गुलाब दो ।
हुई इम्तिहान मैं फ़ेल क्यों ये सहेलियों को तो इल्म है
मैं ज़माने वालों से क्या कहूँ मुझे आप इसका जवाब दो ।
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