किराये का ज़िस्म
ऐ ख़ुदा सच बता दो बसे हो कहाँ।
सब किराये पे देकर छुपे हो कहाँ।।
जान की ही वसूली किये जा रहे,
लोग मजबूर होकर दिये जा रहे,
पूरी दुनिया तुम्हारी है मालिक हो तुम,
धडकनें दिल की इतनी रखे हो कहाँ।
सब किराये पे देकर छुपे हो कहाँ।।
किसको देना है क्या कैसे तय करते हो,
किसकी सुनना है कब कैसे तुम सुनते हो,
सोच करके मैं हैरान होती रही,
इतने ब्योरे बता दो लिखे हो कहाँ।
सब किराये पे देकर छुपे हो कहाँ।।
लिखके तकदीर अक्सर मिटाते रहे,
साथ ख़ुशियों के ग़म आज़माते रहे,
इसको सीखे हो किससे कहो तो सही,
इतनी सारी किताबें पढे हो कहाँ।
सब किराये पे देकर छुपे हो कहाँ
डॉ.फूलकली पूनम
शायरा, कवयित्री
व्हाइट हाउस अमेठी
उ.प्र. भारत
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