अलग ....................कुछ
सुनाओ मत तुम वफ़ा करोगे
बताओ कितनी दफा करोगे
मिला के नज़रें झुका रहे हो
ज़माने भर को खफ़ा करोगे
किसी को अपना कभी न कहना
कहा तो सबसे ज़फ़ा करोगे
हमारी चाहत में’ मिट गये तो
हमारा कैसे नफ़ा करोगे
अभी तो उल्फ़त नई नई है
अभी से क्या फलसफा करोगे
_______________समीक्षा सिंह
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