ये वही दोज़ख़ तो है जिसमें तुम लोग शक किया करते थे (50)
बेशक परहेज़गार लोग अमन की जगह (51)
(यानि) बाग़ों और चष्मों में होंगे (52)
रेशम की कभी बारीक और कभी दबीज़ पोशाकें पहने हुए एक दूसरे के आमने सामने बैठे होंगे (53)
ऐसा ही होगा और हम बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरों से उनके जोड़े लगा देंगे (54)
वहाँ इत्मेनान से हर किस्म के मेवे मंगवा कर खायेंगे (55)
वहाँ पहली दफ़ा की मौत के सिवा उनको मौत की तलख़ी चख़नी ही न पड़ेगी और ख़ुदा उनको दोज़ख़ के अज़ाब से महफूज़ रखेगा (56)
(ये) तुम्हारे परवरदिगार का फज़ल है यही तो बड़ी कामयाबी है (57)
तो हमने इस क़़ुरआन को तुम्हारी ज़बान में (इसलिए) आसान कर दिया है ताकि ये लोग नसीहत पकड़ें तो (58)
(नतीजे के) तुम भी मुन्तजि़र रहो ये लोग भी मुन्तजि़र हैं (59)
सूरए अद दुख़ान ख़त्म
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