और तुमसे पहले भी हमने बहुत से पैग़म्बर भेजे उनमें से कुछ तो ऐसे हैं
जिनके हालात हमने तुमसे बयान कर दिए, और कुछ ऐसे हैं जिनके हालात तुमसे
नहीं दोहराए और किसी पैग़म्बर की ये मजाल न थी कि ख़़ुदा के ऐख़्तेयार दिए
बग़ैर कोई मौजिज़ा दिखा सकें फिर जब ख़़ुदा का हुक्म (अज़ाब) आ पहुँचा तो
ठीक ठीक फैसला कर दिया गया और अहले बातिल ही इस घाटे में रहे, (78)
ख़ुदा ही तो वह है जिसने तुम्हारे लिए चारपाए पैदा किए ताकि तुम उनमें से किसी पर सवार होते हो और किसी को खाते हो (79)
और तुम्हारे लिए उनमें (और भी) फायदे हैं और ताकि तुम उन पर (चढ़ कर)
अपनी दिली मक़सद तक पहुँचो और उन पर और (नीज़) कश्तियों पर सवार फिरते हो
(80)
और वह तुमको अपनी (कुदरत की) निशानियाँ दिखाता है तो तुम ख़ुदा की किन किन निशानियों को न मानोगे (81)
तो क्या ये लोग रूए ज़मीन पर चले फिरे नहीं, तो देखते कि जो लोग इनसे
पहले थे उनका क्या अंजाम हुआ, जो उनसे (तादाद में) कहीं ज़्यादा थे और
क़ूवत और ज़मीन पर (अपनी) निशानियाँ (यादगारें) छोड़ने में भी कहीं बढ़ चढ़
कर थे तो जो कुछ उन लोगों ने किया कराया था उनके कुछ भी काम न आया (82)
फिर जब उनके पैग़म्बर उनके पास वाज़ेए व रौशन मौजिज़े ले कर आए तो जो
इल्म (अपने ख़्याल में) उनके पास था उस पर नाजि़ल हुए और जिस (अज़ाब) की ये
लोग हँसी उड़ाते थे उसी ने उनको चारों तरफ से घेर लिया (83)
तो जब इन लोगों ने हमारे अज़ाब को देख लिया तो कहने लगे, हम यकता
ख़़ुदा पर ईमान लाए और जिस चीज़ को हम उसका शरीक बनाते थे हम उनको नहीं
मानते (84)
तो जब उन लोगों ने हमारा (अज़ाब) आते देख लिया तो अब उनका ईमान लाना
कुछ भी फायदेमन्द नहीं हो सकता (ये) ख़़ुदा की आदत (है) जो अपने बन्दों के
बारे में (सदा से) चली आती है और काफि़र लोग इस वक़्त घाटे मे रहे (85)
सूरए अल मोमिन ख़त्म
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