तो हमने उनको और उनके सब लड़कों को नजात दी (170)
मगर (लूत की) बूढ़ी औरत कि वह पीछे रह गयी (171)
(और हलाक हो गयी) फिर हमने उन लोगों को हलाक कर डाला (172)
और उन पर हमने (पत्थरों का) मेंह बरसाया तो जिन लोगों को (अज़ाबे ख़ुदा से) डराया गया था (173)
उन पर क्या बड़ी बारिश हुयी इस वाकि़ये में भी एक बड़ी इबरत है और इनमें से बहुतेरे इमान लाने वाले ही न थे (174)
और इसमे तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन सब पर ग़ालिब (और) बड़ा मेहरबान है (175)
इसी तरह जंगल के रहने वालों ने (मेरे) पैग़म्बरों को झुठलाया (176)
जब शुएब ने उनसे कहा कि तुम (ख़़ुदा से) क्यों नहीं डरते (177)
मै तो बिला शुबाह तुम्हारा अमानदार हूँ (178)
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो (179)
मै तो तुमसे इस (तबलीग़े रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं माँगता मेरी मज़दूरी तो बस सारी ख़ुदाई के पालने वाले (ख़ुदा) के जि़म्मे है (180)
मगर (लूत की) बूढ़ी औरत कि वह पीछे रह गयी (171)
(और हलाक हो गयी) फिर हमने उन लोगों को हलाक कर डाला (172)
और उन पर हमने (पत्थरों का) मेंह बरसाया तो जिन लोगों को (अज़ाबे ख़ुदा से) डराया गया था (173)
उन पर क्या बड़ी बारिश हुयी इस वाकि़ये में भी एक बड़ी इबरत है और इनमें से बहुतेरे इमान लाने वाले ही न थे (174)
और इसमे तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन सब पर ग़ालिब (और) बड़ा मेहरबान है (175)
इसी तरह जंगल के रहने वालों ने (मेरे) पैग़म्बरों को झुठलाया (176)
जब शुएब ने उनसे कहा कि तुम (ख़़ुदा से) क्यों नहीं डरते (177)
मै तो बिला शुबाह तुम्हारा अमानदार हूँ (178)
तो ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो (179)
मै तो तुमसे इस (तबलीग़े रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं माँगता मेरी मज़दूरी तो बस सारी ख़ुदाई के पालने वाले (ख़ुदा) के जि़म्मे है (180)
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