आपका-अख्तर खान

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27 सितंबर 2018

सुप्रीमकोर्ट करने लगे तो भी अफ़सोस होता है ,

कहते है ,,जैसा राजा ,,ऐसी प्रजा ,जैसा शासन ,ऐसे फैसले ,,सच है या गलत पता नहीं ,लेकिन जो अच्छे दिन हम देख रहे है ,ऐसे अच्छे दिनों पर हम हँसे या रोयें ,तय कर नहीं पा रहे है ,,तोबा करे या दांतो तले ऊँगली दबाकर इन हालातो पर सुबकियों से रोये ,कुछ समझ नहीं आता ,में भूख ,गरीबी ,,भ्रस्टाचार ,बेरोज़गारी ,उद्योपतियों के हाथो की कठपुतली ,बैंकों के घोटाले कर भागने वालों का बचाव ,ढीलपोल ,,साम्प्रदायिकता ,धर्मान्धता की बात नहीं कर रहा ,मेरे दिल दिमाग में ज़रा भी सियासी विचार इस वक़्त नहीं है ,बस अफ़सोस है ,आप मेरे अल्फ़ाज़ों को पढ़ का न जाने क्या समझे ,न जाने क्या नसीहत दे ,मुझे पता नहीं ,लेकिन दोस्तों क्या यही अच्छे दिन है ,क्या यही सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा ,आज के परिप्रेक्ष में है ,जहाँ ,,एक क़ानून के मामले में सुप्रीमकोर्ट कोई टिप्पणी कर दे ,,कोई बदलाव करने की बात कहकर ,झूंठे मुक़दमों से एहतियाती जांच के निर्दश दे दे ,,तो वोटों के बिखरने के खौफ से सरकार टूट जाती है ,सरकार का चेहरा घिनोना होकर ,सुप्रीमकोर्ट के निर्देशों को बदलने के लिए बहुमत से एक क़ानून में संशोधन कर देती है ,,एक खास समुदाय के पारिवारिक मामले में ,अगर राजयसभा में बहुमत नहीं होता ,तो सरकार सभी नियम क़ायदे ताक में रखकर ,अधिसूचना जारी कर इसे हर हाल में लागू करने का राजनितिक मामला बनाती है ,लेकिन दोस्तों राजनीती से अलग हठ कर ,एक तरफ सुप्रीमकोर्ट कहती है ,,बेईमान ,भ्रष्ट ,,,अपराधी दागी ,बलात्कारी जो भी हो उन्हें संसद ,विधानसभा में जाने से रोकने के लिए सुप्रीमकोर्ट क़ानून नहीं बना सकती ,,दूसरी तरफ देश में एक क़ानून जिसमे अप्राकृतिक मैथुन जो देश की संस्कृति के खिलाफ है , जिस क़ानून में अप्राकृतिक मैथुन अपराध की शिकायत पर सज़ा का खौफ था ,उस देश में बरसो से बने इस क़ानून को ,डंके की चोट पर अवैध क़रार देकर ,क़ानून की किताब से अदालत द्वारा निकाल कर फेंक दिया जाता है ,कोई लोकसभा नहीं कोई राजयसभा नहीं ,,बेहयाई इस हद तक रहती तो कोई बात नहीं लेकिन पराकष्ठा जब हुई जब एक महिला ,,इज़्ज़त ,आबरू जिसका गहना ,है ,,एक रिश्ता पति पत्नी के बीच का होने के बाद पति के अ लावा किसी और खुलेआम रिश्ता बेहयाई है ,धर्म में मज़हब में ,संस्कृति में ,रिवाज में यह सब है ,लेकिन दोस्तों ऐसी संस्कृति में इसे मान्यता देते हुए ,ऐसे अपराधियों को सजा देने वाले क़ानून का पन्ना किताब में से फाड़ कर फेंक दिया जाए ,,तो देश के इन हालातो पर सदमा तो होता है ,,धर्म ,मज़हब की रिवायतों ,,पूजा ,नमाज़ का फैसला सुप्रीमकोर्ट करने लगे तो भी अफ़सोस होता है ,खेर में सियासत में इस सरकार की बुराई की नज़र से नहीं कह रहा सिर्फ इल्तिजा कर रहा हूँ ,,सरकार को सरकार में बैठे संस्कारवान लोगो को ,सरकार के समर्थक संस्कारवान ,संस्कृति संरक्षण की बात करने वाले आदाब ,अख़लाक़ की हिमायत करने वाले लोगो को अगर यह सब पसंद है ,यह बेहयाई उनकी हिमायत से हो रही है ,इस बेहयाई को उनका समर्थन है तो कोई बात नहीं ,लेकिन दोस्तों अगर एक ज़र्रा बराबर भी आप लोगों को यह मंज़ूर नहीं ,,आप इसे बेहयाई मानते है ,देश की संस्कृति ,देश के स्वभाव ,,धर्म ,मज़हब की शिक्षा के खिलाफ मानते है तो बगावत करो ,अपने नेता ,अपने प्रधानमंत्री को मजबूर करो ,जब ,एक सुप्रीम कोर्ट का आदेश रद्द करने के लिए ,,एस सी एस टी एक्ट क़ानून में बदलाव की हिम्मत यह सरकार करती है ,तो देश की संस्कृति ,,देश में शर्म ,हया को सांस्कारिक निगाह से देखने वाले संगठन आर एस एस के बुते पर बनी यह सरकार जो देश की संस्कृति को सर्वोच्च स्थान देने की बात करती ,है ,ऐसी बेहयाई भरे आदेशों के खिलाफ जिसमे पति के बंधन में बंधे रहने के बाद भी पर परुषगमन की छूट दी गयी हो प्लीज़ अध्यादेश लेकर आओ ,,क़ानून बनाकर इसे फिर संशोधित प्रस्ताव के साथ लागु करके दिखाओ ,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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