चाण्क्य ने कहा था,,जिस राष्ट्र के धर्मगुरू,, धर्म के मार्गदर्शक
ज़िम्मेदार ,,सियासत करने लगे ,,सत्ता के हिस्सेदार बनने लगे ,,अधर्म फैलाकर
,,विधर्मी शासक के कुकृत्यों के हिस्सेदार बन ,शासन में खुद को स्थापित
करने के लिए ,,शासक उनके समर्थकों के तलवे चाटने लगे ,,ऐसे राष्ट्र में
धर्म नही सिर्फ अधर्म होता है ,,ऐसे राष्ट्र को अधर्मी धर्म के ठेकेदारो से
मुक्त करने के लिए वहां की जनता अगर क्रांति नही करती है ,,तो जनता पाप की
भागीदार है ,,ऐसे राष्ट्र को पतन से कोई नही बचा सकता ,,हम अपने गिरहबान
में झांक कर देखे हैं धर्म प्रेमी है या अधर्मी ,,हम राष्ट्रवादी है या
राष्ट्र के पतन के मूकदर्शक भागीदार राष्ट्रविरोधी ,,अंतर्मन को टटोलिये
ज़रूर ,,अख्तर
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