आपका-अख्तर खान

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18 अक्टूबर 2017

त्योहारों के हर जश्न को अब हम ,विवादों के साथ मनाने के कुत्सित प्रयासों में जुट गए है ,

धनतेरस ,,रूपचौदस ,,दीपावली की सभी देशवासियों को बधाई ,,मुबारकबाद ,,,लेकिन अफ़सोस इस बात का है ,,के त्योहारों के हर जश्न को अब हम ,विवादों के साथ मनाने के कुत्सित प्रयासों में जुट गए है ,,हर त्यौहार ,,हर आस्था ,,हर मान्यता ,,कुछ लोगो द्वारा इस देश में बेवजह ,,विवादित बनाकर ,,उल जलूल टिप्पणियां की जा रही है ,,दीपावली हो तो ,,जश्न मत बनाओ ,,फटाखे मत चलाओ ,,फटाखे चलाओ तो बेचने पर बिक्री ,,बात अब तो देश के सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गयी ,,देश के त्योहारों ,,आस्थाओ को अब कोर्ट तय करेंगी ,यह सोच कर ,,देश और देशवासियों का अस्तित्व खतरे में लगने लगता है ,,किसी त्यौहार पर जश्न मनाना ,,फटाखे फोड़ना अब ग़ैरक़ानूनी बना दिया जाए तो अफ़सोस होना वाजिब है ,,लेकिन ऐसा आदेश अगर गलत पैरवी ,,कमज़ोर क़ानूनी पैरवी के कारण हो तो ,,और अधिक अफ़सोस होता है ,वैसे अदालतों के हज़ारो हज़ार आदेश आज भी पालना के इन्तिज़ार में है ,लेकिन ऐसे आदेशों पर अब मीडिया बहस नहीं करता ,एक्सपर्ट को नहीं बिठाता ,,सरकार से जुड़े वकील धार्मिक आज़ादी ,,के प्रश्न पर बहस नहीं करते ,,आंकड़ों को नहीं बताते ,,पटाखे ,दीपावली में नहीं फूटेंगे तो कब फूटेंगे ,,वोह बात अलग है के सावधानी बरती जाए ,,कोई गाइड लाइन जारी की जाए ,,अगर कोई नेता कोई पार्टी चुनाव जीतती है ,,क्रिकेट जीतते है ,,शादी ब्याह होते है तो न जाने कितने फटाखे ,, बम,,फोड़े जाते है ,,लेकिन प्रदूषण के लिए सिर्फ पटाखों को इलज़ाम देकर उन्हें रोकना धार्मिक आस्थाओ पर चोट है ,,देश की अदालत के समक्ष काश हमारी सरकार के नियुक्त सरकारी वकीलों ने बहतरीन पैरवी की होती ,,,पुनर्निरीक्षण याचिका लगाई होती ,,वैधानिक नियम बनाये होते ,,त्योहारों का रंग जमाने की अधिसूचना जारी कर ऐसे आदेश की क्रियान्विति पर रोक लगाई होती ,,अधिवक्ता परिषद जो सरकार की विचारधारा के वरिष्ट वकीलों की संस्था है ,,कई वकील केंद्रीय मंत्री है ,उन्होंने इस व्यवस्था को जनहित ,,जनता की भावना के अनुरूप हेंडल किया होता तो जनता के अरमानो पर ,,दीपावली की खुशियों पर यूँ छुरी न चलती ,,त्योहारों को सियासत ,,अदालतों के दांव पेंचो से दूर रखना चाहिए ,,जो लोग पटाखों से प्रदूषण की बात करते है उनके बच्चो की शादियों में पटाखे फोड़ते देखने पर अफ़सोस होता है ,,होली आये तो रंग से मत खेलो ,,पानी मत बहाओ ,,,मकर सक्रांति आये तो पतंग मत उढाओ ,,खेर चायनीज़ मांझे की बात तो समझ में आती है ,,दुर्घटनाओं से बचने के लिए पाबंदी वाजिब है ,,लेकिन पटाखे फोड़ना सिर्फ एक दिन पटाखे फोड़ना रोकने की बात हो तो गैरवाजिब सी लगती है ,पटाखों से महामारी फैलाने वाले सक्रमण वाइरस की मोत होती है ,,व्यक्ति बीमारियों से बचता है ,,लेकिन गलत पैरवी ,,गलत आंकड़ों के करना सरकार की नाकामी से ऐसे आदेश होने पर भी सरकार की चुप्पी त्योहारों और आस्थाओ पर हमला है ,,,फिर कुछ लोग है जो ऐसे मामलो में भड़क कर एक दूसरे की धार्मिक आस्थाओ और त्योहारों के तोर तरीक़ो पर आवाज़ उठाकर पाबंदियों की मांग करके ,,सरकार की नाकामियों को छुपाने के लिए ,,आम लोगो को अखबारों ,सोशल मीडिया ,,चौपाल माउथ पब्लिसिटी के ज़रिये मुद्दों से भटकाने की कोशिश करते है ,आप किसके साथ है ,देश में क़ानून ,,देश में संविधान ,,धार्मिक आज़ादी का है ,और इस त्योहारों की आज़ादी ,,जश्न ,,खुशियों के तोर तरीक़ो को कोई अदालत ,,कोई क़ानून ,,कोई पाबंदी रोक नहीं सकती ,वोह बात अलग है हम लोग खुद साक्षर हो अच्छा बुरा पहचाने ,स्वेच्छिक रूप से खुद अपने ऊपर पाबंदी लगाये ,,लेकिन सरकार को ऐसे मामले में कमज़ोर पैरवी कर आदेश कराने और फिर इन आदेशों की आड़ में लोगो की धार्मिक आज़ादी को छीनने का हक़ हरगिज़ हरगिज़ नहीं दिया जा सकता ,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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