दोस्तों किसी ने कहा है ,,,हमने अपनी दास्तां सुनाई ,,तुम्ही सो गए रोते
रोते ,,हम मुस्कुरा कर अपना दर्द बयां करते रहे ,,तुम फिर सो गए रोते रोते
,,,,जी हाँ दोस्तों भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस कोटा शहर ,,कोटा देहात और
कांग्रेस ट्रस्ट की कार्यालय ज़िम्मेदारी बखूबी सम्भाल रहे ,,भाई संतोष
कुमार सुमन के इकत्तीस साल कोटा कांग्रेस के सारथि के रूप में सफर की
कमोबेश कुछ यही कहानी है ,,मुस्कुराता चेहरा ,,कांग्रेस कार्यालय में
नियमित आने ,,जाने वालो का अभिवादन ,,कार्यक्रमों के दौरान व्यवस्थाओं का
बखूबी निर्वहन ,,कोटा देहात ,,कोटा शहर या फिर ट्रस्ट की ज़िम्मेदारियाँ हो
वक़्त पर उनका हँसते हँसते निस्तारण यही कुछ खूबियां है भाई संतोष कुमार
सुमन की ,,,कांग्रेस कार्यालय में इकत्तीस साल पहले जून 1985 में कार्यालय
सहायक के रूप में एक सो पचहत्तर रूपये प्रति माह से शुरू हुआ यह सफर आज
सिर्फ छ हज़ार रूपये पर टिका है ,,लेकिन सभी कार्यकर्ताओ पदाधिकारियों से
पारिवारिक हिस्सेदारी के संबंध इन्होने स्थापित किये है ,,नियमित रूप से
ज़िम्मेदारी से ,,आंधी हो या फिर तूफ़ान ,,सर्दी हो या फिर गर्मी ,,कांग्रेस
कार्यालय को ठीक 3 बजे खोलना ,,कार्यक्रमों के दौरान सम्पूर्ण
ज़िम्मेदारियाँ निभाना ,,,साथियो को बुलाना ,,बिठाना ,,अल्पाहार की व्यवस्था
करवाना ,,कार्यालय की कमी पूर्ति करना ,,नल ,,बिजली ,,साफ़ सफाई ,,सभी
व्यवस्थाएं देखना ,, ट्रस्ट के कामकाज के तहत कांग्रेस कार्यालय की 7
दुकानों दो गोदामों का नियमित किराया एकत्रित करना ,,आमद खर्च के तीन
रजिस्टर ,,कोटा देहात ,,,कोटा शहर ,,,कांग्रेस ट्रस्ट ईमानदारी से तैयार
करना ,,नियम ऑडिट करवाना ,,ट्रस्ट के पदाधिकारियों ,,संगठन के पदाधिकारियों
से समन्वय स्थापित कर व्यवस्थाएं देखना इनका काम बखूबी यह निभा रहे है
,,,कांग्रेस कार्यालय सहायक के रूप में संतोष कुमार बालिग होते ही आ गए
थे ,,मूंछो की लकीरे निकली थी ऑर यह कांग्रेस के सेवक बन गए थे ,,उस वक़्त
बारां जिला भी कोटा देहात में होने से कोटा देहात का क्षेत्राधिकार बढ़ा था
,,अब कोटा शहर ,,कोटा देहात में चुनाव के वक़्त टिकिटार्थियो के रिकॉर्ड
संधारण की ज़िम्मेदारियाँ ,,किसी भी कार्यक्रम को सफल बनाने की
ज़िम्मेदारियाँ ,,अख़बार में विज्ञप्तियां पहुंचाना ,,अखबार की कतरने
सम्भालना ,,,,सदस्यों ,,पदाधिकारियों की सूचियां संधारित करना ,,सभी कुछ
ज़िम्मेदारी इन संतोष भाई के पास है और यह एक सुमन ,,एक फूल की तरह चेहरे पर
उफ़ नहीं ,,सिर्फ संतोष का भाव रखते हुए मुस्कुराते रहते है ,,,,संतोष
कुमार ने अपने इकत्तीस साल के इस सफर में कांग्रेस के खूब उतार चढ़ाव देखे
है ,,पहले कांग्रेस कार्यालय का हॉल छोटा था ,,जिसे विस्तारित किया गया
,,थोड़ा सुसज्जित किया गया ,,गर्मी में ठंडे पानी की व्यवस्था के लिए
कार्यकर्ताओ के लिए कूलर लगाए गए ,,,,,,संतोष कुमार बरसते पानी में ,,लू के
थपेड़ो में भी आज से तीस साल पहले साइकल से स्टेशन जननायक पर जब कांग्रेस
कार्यक्रमों की प्रेस विञपतियां देने आते थे ,,तो गरमी में यह पसीने से
तरबतर होते थे ,,तो बारिश में इनकी बरसाती से पानी टपकता रहता था ,,फ़र्क़
इतना है के बस ,,संतोष भाई अब मोटर साइकल पर आ गए है ,,वह इसी चाकरी इसी
सेवा से अपने दो बेटों ,,एक बिटिया ,,पत्नी का ,,जितनी चादर इतने ही पाँव
पसारिए की तर्ज़ पर उनका जीवनयापन कर रहे है ,,पिछले दिनों इनके समर्पण
,,सेवा भाव को देखकर यूथ कांग्रेस के कोटा उत्तर प्रतिनिधि ने जब तात्कालिक
मंत्री शान्ति कुमार धारीवाल से संतोष सुमन का सम्मान का सम्मान करवाया
,,तो अभावों में रहकर भी स्वाभिमान से जीने वाले इस कांग्रेस के समर्पित
सिपाही अपनी रुलाई रोक नहीं सके और इनकी नम आँखों ने इनके दर्द को बयांन कर
दिया ,,,,मेरे मन का भाव था ,,बहुत लिखता हूँ ,,बहुतों के लिए लिखता हूँ
,,लेकिन आज संतोष सुमन के लिए जब मेने अलफ़ाज़ तलाशे ,,तो अलफ़ाज़ खुद ब खुद
थिरकने लगे और सच तो यह है के मुझे इनके लिए लिखते वक़्त दिली सुकून भी मिला
,,,और में खुद को गौरवान्वित भी महसूस कर रहा हूँ ,,के इकत्तीस साल के
कोटा शहर और कोटा देहात सहित कोटा कांग्रेस ट्रस्ट के परदे के पीछे नींव की
ईंट केयर टेकर ,,भाई संतोष के लिए मुझे लिखने का सौभाग्य मिला ,,बधाई
,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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