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21 जनवरी 2011

२५ जनवरी युवा मतदाता दिवस

देश का सबसे बढा राष्ट्रिय पर्व २६ जनवरी गणतन्त्र दिवस पर मनाया जाता हे वोह बात अलग हे के कुछ लोग इसे छुट्टी के रूप में कुछ पिकनिक के रूप में तो कोई शादी ब्याह कार्यक्रम के रूप में मनाते हें लेकिन यह कार्यक्रम देश का एक बहुत बहुत बढा आदरणीय कार्यक्रम हे जिसकी वजह से आज हम और आप जीवित हे लेकिन इस आदरणीय कार्यक्रम का नेता से लेकर अधिकारी और अधिआरियों से लेकर जनता कर्मचारी तक इस दिवस का अपमान कर रहे हे स्कूलों में और स्टेडियम पर प्रतिभा सम्मान में घोटाले हें युवाओं को इन कार्यक्रमों से जोड़ने के लियें कोलेज स्कुल या अफिर स्टेडियम में कोई बढ़े कार्यक्रम तय्यार नहीं किये गये हें बस इस दिवस को रस्म के रूप में मनाने का फेशन चल गया हे कहने को तो इस दिवस को मनाने के लियें केंद्र और राज्य की सरकारों ने कई कानून और नियम बनाये हें लेकिन यह कानून यह नियम कोन जानता हे किसे पढाये जाते हें किस अख़बार में यह कार्यक्रम छपते हें अखबार मीडिया ने इस दिन को तो विज्ञापनों से कमाई का दिन मना लिया हे जबकि जनता इसे अवकाश का दिन मान लिया हें सियासत के लोग कुछ गिनती के होते हें जो इस दिन अपनी पार्टी कार्यक्रमों में रस्म निभा कर घर चले जाते हें कोंग्रेस के आलावा दूसरी कई पार्टियाँ तो इस दिन अपने कार्यालयों में कोई कार्यक्रम भी नहीं रखते हें ।
खेर दोस्तों में भावनाओं में बह गया और विषय से भटक गया क्योंकि इस दिवस के एक दिन पहले सरकार ने पहली बार देश में २५ जनवरी को युवा मतदाता दिवस घोषित किया हे मतदाता यानी गणतन्त्र को जन्म देने वाला गणतन्त्र को ज़िंदा रखने वाला गणतन्त्र को सुरक्षित रखने वाला गणतन्त्र को गणतन्त्र बना देने वाला लेकिन हमारा देश हे के इस दिन की अहमियत नहीं समझा और नतीजा यह रहा के गणतन्त्र एक भीड़ तन्त्र बन कर रह गया संविधान बन गया और छप गया लाइब्रेरी की शोभा बन गया किया कानून किया न्याय पालिका क्या कार्यपालिका क्या जनता क्या सेना सब कागजों में सिमट गये देश में आज भी पचास प्रतिशत निरक्षर लोग हें और कानून हे के मानता हे के हर व्यक्ति ने कानून पढ़ लिया हे देश में सरकारों को संविधान ने पाबन्द किया हे के जनता के स्वास्थ को खराब करने वाली चीजें ना बेचें लेकिन इस देश में सबी चीजें यानी शराब ,सिगरेट तम्बाकू का व्यापार सरकार खुद कमाई के लियें कर रही हे इस देश में सभी को चिकित्सा,शिक्षा.स्वस्थ सुरक्षा देना संवेधानिक ज़िम्मेदारी हे लेकिन देश की अदालतों में जज मजिस्ट्रेट नहीं हे मुकदमों के अम्बार हें अस्पताल नहीं हे हें तो डोक्टर नहीं और डोक्टर हें तो दवा और बिस्तर नहीं हे निजी स्कूलों को लूट का जरिया बना कर सरकारी स्कूलों और कोलेजों की हालत आप सबके सामने हे तो ऐसे में अगर नेता और मंत्री पक्ष और विपक्ष सरकारी खजाने को लूटने कानून की पालना नहीं कर व्यापारियों और उद्ध्योग्पतियों को जनता से खुली लूट की छुट देती हे तो फिर क्या लोकतंत्र को जिंदाबाद किया जा सकता हे अगर लोकतंत्र गणतन्त्र यह होता हे तो फिर परतंत्र लूट तंत्र क्या होता हे जरा हमें बताओ खेर जो भी हो सरकार ने तो २५ तारीख युवा मतदाताओं के लियें जश्न का दिन हे और गणतन्त्र दिवस की पूर्व संध्या हे इसे अगर युवा चाहें तो इस दिन को जिंदा दिन बना कर ऐसा जश्न मनाये के जो गणतन्त्र परतंत्र में बदल दिया गया हे जो गणतन्त्र भिदत्न्त्र में बदल दिया गया हे उसे फिर से ज़िंदा करें और देश को एक बार फिर सोने की चिड़िया बनाएं देखते हें युवा क्या कुछ कर सकते हें या यह दिन भी राजनीती की भेंट चढ़ जाएगा । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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