जिस्म से वो साथ था मगर गुम कही उसका चेहरा था शायद,
इश्क का मारा बंदा उसका जख़्म भी हरा हरा था शायद ,
मुतमइन भी होता उसका कल्ब बेवजह दिखावटी हो,
उसके दिल का भी घाव थोड़ा बहुत सुनहरा था शायद ,
मुद्दतों साथ रहे हम फिर भी न रूबरू हुई मै उसकी शक्ल से,
खोयी खोयी सी रहती उसके चेहरे की नजाकत हमेशा,
मुख्तसर् सी जिंदगी में किसी की यादों का पहरा था शायद ,
मैने कह दी उससे अपने दिल की दास्ताँ दिलशाद मेरे,
मेरी दास्ताँ सुनने वाला वो बेगैरत दिल से बहरा था शायद ,
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