बाल मन तक पुस्तक पर मेरा अभिमत
सनद रहे..
पिछले रविवार लेखक प्रभात कुमार सिंघल की बाल कृति *बाल मन तक* का विमोचन हुआ। एक प्रति मुझे भी मिली। दूसरे दिन दोपहर में पन्ने उलट कर देखें। किताब को देख कर मन में प्रश्न आया, ये सब कार्यक्रम तो हो चुके फिर इसकी किताब निकलने की क्या जरूरत थी? बेकार ही रुपए और समय बर्बाद किया।
किताब का तीसरा और चौथा खंड देखा तो अपनी ही सोच पर अफसोस भी हुआ। तीसरे खंड में सात बाल साहित्यकारों के बच्चों से संबंधित विभिन्न साहित्यिक विषयों पर संपादक के विस्तृत साक्षात्कार लिखे थे। ये साक्षात्कार सभी बाल साहित्यकारों के लिए जो बालकों के लिए लिखते हैं बहुत ही उपयोगी और दिशाबोधक लगे। ऐसे साक्षात्कार सामने आने चाहिए।
चौथा खंड बाल साहित्यकारों की पुस्तकों की समीक्षाओं का था, जिनकी संपादक ने स्वयं समीक्षा की है। किसी भी बाल किताब की समीक्षा किताब के महत्व को बताती है और पढ़ने को प्रेरित भी करती है।
पहला और दूसरा खंड बच्चों में साहित्य के प्रति रुचि जगाने और साहित्यकारों को बाल साहित्य लिखने को प्रेरित किए गए प्रयासों पर है। बच्चों में साहित्य के प्रति प्रेम जागृत करने के लिए बाल साहित्य मेलों का आयोजन का विवरण पढ़ कर लगा की इस प्रकार के आयोजनों की बड़ी जरूरत हैं। जो महिला साहित्यकार इस आयोजन से जुड़ी उनके योगदान को सामने लाना और सम्मान देना संपादक के विशाल हृदय का प्रतीक है। दूसरे खंड में विभिन्न कविता लेखन प्रतियोगिताओं में प्राप्त बाल कविताओं का संकलन प्रेरित करता है।
इन प्रयासों के लिए मैं अपनी ओर से प्रभात भैया का आभार व्यक्त करती हूं जिन्होंने आगे आ कर सबको साथ ले कर बाल साहित्य की ओर एक कदम बढ़ाया। उनके द्वारा किए गए प्रयास गुजरे समय की बात बन कर ही नहीं रह जाए, शायद इसी भावना से यह पुस्तक सामने आई है, ताकि सनद रहे !
रेणु सिंह राधे
साहित्यकार, कोटा
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