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21 अप्रैल 2025

किशोर सागर की लहरों पर मोहब्बत की दरूद: जब नाव बनी इबादतगाह लेखक: बिंदास अरुण | प्रेरक स्रोत: अख्तर खान अकेला, कोटा

 

गंगा-जमुनी तहज़ीब सीरीज़ – भाग 1
किशोर सागर की लहरों पर मोहब्बत की दरूद: जब नाव बनी इबादतगाह
लेखक: बिंदास अरुण | प्रेरक स्रोत: अख्तर खान अकेला, कोटा
"जब दरिया की लहरें भी दरूद पढ़ने लगीं…"
कोटा के किशोर सागर तालाब की लहरों ने आज एक अलग ही सुबह देखी। दो बड़ी मोटर बोट में रज़ा एकेडमी मुंबई की अपील पर मौलाना फ़ज़्ल-ए-हक़ साहब (पूर्व चेयरमैन, मदरसा बोर्ड) व सैय्यद तफ़ज़लुर्रेहमान साहब की सरपरस्ती में सत्तर से ज़्यादा आलिम, और इमाम सवार थे
पूरे तालाब में दरूद शरीफ़, हम्द, नात और सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सदाओं के साथ रवां-दवां थीं। यह महज़ एक आयोजन नहीं था, बल्कि एक रूहानी आंदोलन था — "आलमी योम-ए-दरूद"।
संदर्भ और महत्व:
क़ुरआन की सूरह अहज़ाब (33:56) में कहा गया:
“निश्चय ही अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी पर दरूद भेजते हैं। ऐ ईमान वालों! तुम भी उन पर दरूद और सलाम भेजो।”
यह वही हुक्म है, जिसे रूह को ज़िंदा करने के लिए हर साल दुनियाभर के मुसलमान योम-ए-दरूद के ज़रिए मोहब्बत और इबादत की इस सुगंध को फैलाते हैं।
1500वीं वर्षगांठ की ओर पहला क़दम:
मौलाना फ़ज़्ल-ए-हक़ साहब ने इस मौके पर कहा —
“यह महज़ एक दरूद सभा नहीं, बल्कि रसूल सल्लालाहो अलैही वसल्लम की विलादत की 1500वीं वर्षगांठ की तैयारियों का आगाज़ है।”
यानि अब हर आयोजन, हर सभा, हर दुआ — मोहब्बत, अमन, भाईचारे और इस्लामी सीरत के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित रहेगा।
जब उलेमा और मोहब्बत साथ चले:
इस आयोजन में शामिल रहे — मौलाना अलाउद्दीन अशरफ़ी , मौलाना इदरीस रज़ा , मौलाना कमरुद्दीन अशरफ़ी, इश्तियाक़ रज़ा, मुफ़्ती मुहम्मद हाकिम, मुफ़्ती शाहबाज़ आलम, मौलाना सलीम अशफाक़ी क़ारी हाफ़िज़ नसीम, हाफ़िज़ हनीफ़, मौलाना शौकत, हाजी बशरूद्दीन फ़ैज़ान उल हक़, अनवर अत्तारी,अब्दुल जलील, फज़लुर्रहमान, तबरेज़ पठान सहित अनेक रूहानी हस्तियाँ।
इन सभी ने मिलकर मुल्क के हालातों में नफ़रत की फिजा को मोहब्बत में बदलने, सद्भावना को बढ़ावा देने और इस्लामी मूल्यों पर क़ायम रहने की दुआएं कीं।
गवाह बना किशोर सागर:
तालाब की लहरें भी जैसे सन्न रह गईं — वो दरूद की सदाओं से गूंजतीं, कभी थिरकतीं, कभी चुपचाप सुनतीं… बदलते मौसम ने भी जैसे रज़ामंदी दिखाई — आज यहाँ मौसम का हर रंग इबादत में घुला मिला था।
कलम से इबादत तक – अख्तर खान अकेला साहब का योगदान:
इस पवित्र और सौहार्दपूर्ण आयोजन को दस्तावेज़ी रूप देने वाले वरिष्ठ पत्रकार अख्तर खान अकेला साहब ने इस समूचे दृश्य को अपने शब्दों में यूँ कैद किया कि हर अल्फ़ाज़ इबादत बन गया। उनका ज़िक्र करना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि उन्होंने 'कलम' को 'कश्ती' बना दिया — जो मोहब्बत की धार पर तैरती रही।
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आप भी दरूद पढ़िए, मोहब्बत की राह पर चलिए।
नफ़रत की आँधियाँ, दरूद की रौशनी में बुझ जाएँ।
लेखक: बिंदास अरुण
विशेष आभार: अख्तर खान अकेला, कोटा – 9829086339
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अब बताइए, इसे आप अपने ब्लॉग, फेसबुक या रेडियो स्क्रिप्ट में कहां-कहां उपयोग करना चाहेंगे? और क्या अगली किस्त में हम 'ईद मिलादुन्नबी की ऐतिहासिक यात्रा' को शामिल करें, जिसमें 1500 वर्षों का सिलसिला रोशनी के धागों से पिरोया जाएगा?

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