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27 जून 2024

नवनिर्वाचित लोकसभा में पहला प्रस्ताव पचास साल पुरानी दुखद घटना पर प्रस्ताव की जगह अगर देश के महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहुपक्षीय सुनवाई के साथ का प्रस्ताव होता तो देश गौरवान्वित होता , देश का वोटर अपने निर्वाचन पर गर्व करता ,,

 

नवनिर्वाचित लोकसभा में पहला प्रस्ताव पचास साल पुरानी दुखद घटना पर प्रस्ताव की जगह अगर देश के महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहुपक्षीय सुनवाई के साथ का प्रस्ताव होता तो देश गौरवान्वित होता , देश का वोटर अपने निर्वाचन पर गर्व करता ,,
विश्व के सबसे बढे लोकतंत्र में इस लोकसभा सत्र में अभी तक , राष्ट्रीयता , देश के लोगों की फ़िक्र , देश के संविधान की परवाह पक्ष या फिर विपक्ष में हरगिज़ हरगिज़ नज़र नहीं आई , ,वही कड़वाहट , आरोप प्रत्यारोप निजी पार्टियों की सियासी लड़ाई में , देश और देशवासियों के मुद्दे गौण से नज़र आने लगे हैं , अल्लाह , ईश्वर वाहेगुरु , जीसस ,, श्री महावीरजी , सभी इष्ट देवताओं से दुआ है के भारत की इस संसद में बैठे निर्वाचित लोगों को सद्बुद्धि मिले और यह संसद आपसी मन मुटाव , कड़वाहट ,, बदले की भावनाएं सियासी चालबाज़ियां भुलाकर सिर्फ और सिर्फ देश और देशवासियों की तरक़्क़ी , सुरक्षा , अस्मिता , संरक्षण , विकास ,, रोज़गार ,,रोज़ी रोटी के लिए काम करें , जी हाँ दोस्तों बात गंभीर है , लेकिन इन दिनों आम लोगों में तो गंभीरता खत्म हो ही गई है , पत्रकारिता का विनाशकाल है , कॉरपोरेट सेक्टर में अब पत्रकार नहीं , कर्मचारी होते है , जो सिर्फ मालिक के इशारे परे ही , उनकी बताई हुई , गाइड लाइन पर चलते हैं ,, मुद्दों से , लघु, छोटे पत्रकार, कलमकारों को छोड़कर पत्रकारिता का कोई खास वास्ता नहीं, अधिकतम से भी अधिकतम उक्त नाम पर व्यवसाय कर , किसी ना किसी पार्टी के , नेता के पक्षकार बने हैं , खेर इनमे भी एक क्रान्ति के बाद सुधार आएगा ज़रूर,, , लेकिन वर्तमान हालातों में जिन्हे जनता ने संसद में देश और देशवासियों के लिए फिक्रमंद की ज़िम्मेदारी देकर भेजा है , ,उनका कमाल लोकसभा में निर्वाचित होते ही देखिये , एक सदस्य का तो थप्पड़ मामले को लेकर ही , मानमर्दन किया जाने लगा ,,, बदज़ुबानी के मायने थप्पड़ नहीं क़ानूनी कार्यवाही हैं , उसे जायज़ किसी भी सूरत में ठहराना देश के क़ानून को कलंकित करने जैसा है , अब हम बात विपक्ष की करते हैं ,, गठबंधन संस्कृति की करते हैं , बहुमत तो किसी का भी नहीं , तो अल्पमत में भी कोई नहीं , दोनों पक्ष मज़बूत थे , ,,तो फिर नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में उन्हें नेता चुनकर, प्रधानमंत्री की शपथ दिलाई गई ,, उन्होंने वायदा किया के देश को सभी को साथ लेकर चलाएंगे , फिर प्रोटेम स्पीकर को लेकर , वरिष्ठता नियमों के उलंग्घन को लेकर बवाल हुआ , देश ने देखा है , विश्व स्तर पर भी यह चर्चा रही है ,, प्रोटेम स्पीकर के बाद ,, शपथ ग्रहण में असद्दुद्दीन ओवेसी के नारे के आरोपों ने संसद को कलंकित किया ,, अब वक़्त आया लोकसभा स्पीकर के निर्वाचन का लोकतान्त्रिक अधिकार था ,, इंडिया गठबंधन ने तो , पहले कोई सर्वदलीय गठबंधन बैठक बुलाई नहीं , कोई चर्चा नहीं की , बस अचानक , ,अपने एक केंडिडेट का ऐलान कर दिया , ममता बनर्जी ने उस पर आपत्ति जता दी ,,, खेर भाजपा ने , पूर्व लोकसभा अध्यक्ष कोटा सांसद को , स्पीकर के पद के लिए फिर से उम्मीदवार घोषित किया , ,ओम जी बिरला पर विपक्ष द्वारा गत लोकसभा में डेढ़ सो सांसदों को निलंबित करने का इलज़ाम था ,, विपक्ष को गुस्सा आना स्वाभाविक था ,, लेकिन देश गुस्से और बदले की भावना से नहीं चलता है , देश के संचालन के लिए ज़िम्मेदार बनना पढ़ता है , निजी सोच से ऊपर उठ कर राष्ट्रिय स्तर पर विचार बनाना पढ़ता है , बहुपक्षीय सोच बनाना पढ़ती है , ,लेकिन लोकसभा अध्यक्ष पद पर इण्डिया गठबंधन और ऍन डी ऐ गठबंधन प्रत्याक्षी के बीच में चुनावी बिगुल बज गया ,, ,बुधवार छब्बीस जून का वोह दिन , संसद में देश के लिए विचार विमर्श का नहीं था ,, स्पीकर के चयन का था , निर्वाचन का था ,, या फिर निर्वाचन के बाद राष्ट्र के लिए बहतर बहुपक्षीय सोच , रचनात्मक निर्माण की शुरुआत का दिन था ,, लेकिन हुआ किया ,, इण्डिया गठबंधन ने प्रत्याक्षी का प्रस्ताव रखा , ऍन डी ए की उम्मीदवारी ओम जी बिरला की थी ही सही , फिर अचानक विपक्ष का मन बदला विपक्ष फिसड्डी साबित हुआ , और मतविभाजन किये बगैर ही , ध्वनिमत से ओम जी बिरला को स्पीकर निर्वाचित कर दिया गया , इण्डिया गठबंधन काहे का गठबंधन ,, विपक्ष में आंकड़े होने के बाद भी , घोषणा होने के बाद भी , कोई रणनीति नहीं बना पाए , आपस में ही आरोप प्रत्यारोप लगाते रहे तो फिर इस गंठबंधन की तो देश के सामने पहले ही दिन पोल खुल गई ,, कांग्रेस सबसे बढ़ी पार्टी लेकिन उस पर हमला करने के लिए ,,,, देश की संसद में निर्वाचन होते ही , मूल्यों ,, सिद्धांतों के विपरीत सिर्फ तमाशा खड़ा करने के लिए , पचास साल पुरानी घटना को लेकर , पचास साल पुरानी सियासी अलोकतांत्रिक लेकिन संविधान में दिए गये प्रावधानों को लेकर जो आपात स्थिति लगी , जिसमे , किसी को भी गाली देने पर , किसी के खिलाफ बिना किसी सुबूत के बयान देने पर , भ्रष्टाचार करने पर , मिलावट करने पर , कालाबाज़ारी करने पर , सरकारी कार्यालयों में नाकारापन करने पर , मुनाफ़ा खोरी करने पर , रोक थी , जिस कार्यकाल में कुछ लोगों पर जो सियासी लोग थे , उन पर ज़ुल्म हुए होंगे , लेकिन देश की जनता खुश ज़रूर थी , देश में सभी सरकारी दफ्तर समय पर खुल रहे थे , कर्मचारी बिना किसी टालमटोल , भ्रष्टाचार के काम कर रहे थे , मुनाफाखोर , जमाखोरों के यहां छापे पढ़ रहे थे , ,नतीजा चुनाव हुए , कांग्रेस हारी और जनता पार्टी की सरकार ने , उसी खज़ाने से देश में महंगाई को ज़ीरो कर दिया , व्यवस्थाएं विधिवत कुछ समय चलीं ,, बाद में उस एमरजेंसी में गिरफ्तार लोगों को , ,जिन्हे उस सरकार ने क़ानून तोड़ने, के जुर्म में गिरफ्तार किया था उन्हें पेंशन देना शुरू की , लोकतंत्र सेनानी घोषित किया , लेकिन ऐसे सेनानी , देश के लिए निष्पक्ष रूप से ,, बिना किसी सियासी दबाव के कभी बोलते हुए दिखे ही नहीं , ,खेर आपात काल जो , पचास वर्ष पूर्व की बेहूदा घटना है , उस पर अनेकों बार चर्चा हुई , चुनावी स्टंट बना , और उसका रोना रोने के लिए , लोकसभा जहाँ देश , और देश वासियों के कल्याण , सुरक्षा , व्यवस्था , विकास , योजनाओं पर फैसला होना है , इस घिसे पिटे मामले पर प्रस्ताव लाकर , लोकसभा का क़ीमती वक़्त बर्बाद करना मेरी निजी राय में न्यायोचित नहीं था ,, , खेर बहुमत है ,व्यवस्थाएं हैं , किसी को भी अपने गठबंधन धर्म ,, अपनी नीतियों के तहत , कार्यसंचालन का हक़ है , लेकिन देश के डेढ़ सो करोड़ लोगों में से अगर कुछ बुद्धिजीवी नेशनलिस्ट बचे भी हैं , तो उन्हें इस पर चिंतन करना ही होगा के वर्तमान निर्वाचन के तुरंत बाद ,, पचास साल पुरानी घटना को लेकर , ,सर्वपर्थम इस प्रस्ताव की क्या देश को ज़रूरत थी , देश को , पेट्रोल , डीज़ल , रोज़गार , भूख ,गरीबी , महंगाई , किसानों की ज़रूरतें ,,, सेना के कल्याण ,, सुरक्षा व्यवस्था , रोज़गार की योजनाएं , आधार भूत ढाँचे के विकास , सीमाओं की सुरक्षा , चीन से संघर्ष ,, आतंकवाद से संघर्ष , मणिपुर में हिंसा खत्म कर शान्ति बहाली की चिंता , भ्रष्टाचार मुक्त भारत , गोरक्षां संरक्षण क़ानून , नफरत फैलाने वाले , नफरत भड़काने वाले , नफरत की आवाज़ बोलने वालों के खिलाफ कार्यवाही पर विचार की ज़रूरत थी , प्रथम लोकसभा सत्र में , देश को सर्वदलीय व्यवस्था के साथ चलाने के वायदे की ज़रूरत थी ,, लेकिन ऐसा हुआ नहीं , हुआ उलटा ... डेढ़ सो करोड़ भारतीय क्या सोचते हैं , ,अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बनने वाले , सर्वश्रेष्ठ न्यूज़ चैनल , अख़बार , पत्रकार , बुद्धिजीवी , संघ के ओरिजनल राष्ट्रभक्तों को छोड़कर सुविधाभोगी लोग किया सोचते हैं , उसे मुझे मतलब नहीं , लेकिन मेरी राय में देश के लिए यह प्रस्ताव ज़रूरी नहीं था , और विपक्ष का यूँ सरेंडर होकर , भागजाना भी , देश के हक़ में नहीं था ,,,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339

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