खून रिस्ते, विकलांग, लकवाग्रस्त, अशक्त बीमार भिखारियों की नुमाइश के भीख प्रव्रत्ति पर रोक लगाकर, ऐसे लोगों के पुनर्वास, इलाज की मांग पर प्रधानमंत्री कार्यालय से कार्यवाही शुरू
कोटा 27,दिसम्बर, अजमेर की दरगाह सहित देश की सभी बढ़ी दरगाह , मंदिर धार्मिक स्थलों के बाहर , ,रेडलाइट , शहरों के प्रमुख स्थान पर , अशक्त ,, गंभीर घायल , बिमार , कथित पेशेवर भिखारियों को इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाने के जिला कलेक्टर को निर्देश देने , और अन्य सभी तंदरुस्त आदतन भिखारियों को सुधार ग्रह में भेज कर , अवश्यकानुसार शिक्षा , रोज़गार , स्वरोज़गार से जोड़ने सहित क़ानून बनाकर भारत सरकार को कठोर निर्देश देने के अख्तर खान अकेला के सुझावों पर प्रधानमन्त्री महोदय ने विभागीय निर्देश दिए हैं , ,
ह्यूमन रिलीफ सोसायटी के महासचिव अख्तर खान अकेला ने इस सम्बंध में प्रधानमंत्री को विस्तृत वस्तुस्थिति के साथ सुझाव सम्बंधित ज्ञापन भेजा था जिस पर संज्ञान लेकर प्रधानमंत्री ने सम्बंधित विभाग को निर्देशित भी किया है ,
एडवोकेट अख्तर खान अकेला ने अपने पत्र में लिखा था,, के भारत के प्रमुख शहरों के मुख्य धार्मिक स्थलों , रेड लाइट चौराहों , प्रमुख स्थानों पर आदतन भिखारियों का जमावड़ा रहता है , जबकि हालात यह हैं के , दरगाहों , मंदिरो , मस्जिदों ,, वगेरा के बाहर , रोज़ मर्रा गंभीर बीमार ,, लकवाग्रस्त , या हाथ पैर कटे ,, शरीर से खून रिस्ते पीड़ित लोग , भीख मांगते नज़र आते है , अफ़सोस इस बात का है के भारतीय संस्कृति से दूर हो चुके भारतीय लोग , ऐसे लोगों पर दया करके , भीख में रूपये तो दे देते हैं , लेकिन उनकी स्थाई तकलीफ दूर करने के लिए , इलाज करवाने के लिए इन धार्मिक स्थलों पर जाने आने वाले , कोई भी जागरूक पत्रकार , अधिकारी , नेता ,, मंत्री वगेरा वगेरा इन्हे अस्पताल पहुंचाकर , इनका इलाज करवाने और सरकारी योजनाओं के तहत ऐसे अशक्त , निशक्त , गंभीर घायल , या फिर वृद्ध हो चुके लोगों को , वृद्धाश्रम ,, सुधार ग्रह में पहुंचाकर उनकी समस्या का स्थाई समाधान नहीं करते है ,अख्तर खान अकेला ने ज्ञापन में कहा कि, कुछ विदेशी पर्यटक इन दर्द से तड़पते गंभीर घायल खून रिस्ते भिखारियों के फोटोग्राफ लेकर , विदेश में , भारत की छवि खराब करते हैं ,, एक तरफ तो यह सब , भारत की जो मानवीय संस्कृति है , यह उस संस्कृति पर गंभीर कुठाराघात है , ज्ञापन में मांग की गई, के भारत में , समाज कल्याण विभाग है , जिला कलेक्टर है , संबंधित क्षेत्र के आसपास के थाने , पुलिस की बीट व्यवस्था है , भारत सरकार , राज्य सरकारों के कल्याण मंत्रालय है , ऐसे प्रताड़ित , पीड़ित लोगों की उपेक्षा पर , निर्देशित करने के लियें, मानवाधिकार आयोग है , लेकिन इन सब के बावजूद भी , भारत के मुख्य दरगाह स्थलों , चाहे वोह अजमेर ख्वाजा साहब की दरगाह हो , सरवाड़ की दरगाह हो , बढे मंदिर हों , मस्जिदें हों , चाहे कोई और जगह हो , मुख्य मंदिरों के आसपास की जगह हो , चौराहे हों , गलियां हों , रेड लाइटों के आसपास के इलाक़े हों , सभी जगह , आदतन भीख मांगने वाले लोग है , एक तरफ तो यह लोग खुद को बीमार , अशक्त बताकर ,, आदतन भीख मांग रहे हैं , तो दूसरी तरफ , तंदरुस्त लोग , भीख को , रोज़गार के रूप में , अपना रोज़गार बनाये हुए हैं , देश में सभी शहरों में , यही हालात है , ऐसे में एक भिखारी पक्ष , जो बीमार है , अशक्त है , घायल है , गंभीर रोगी है , लकवा ग्रस्त है , जिसे तत्काल इलाज की ज़रूरत हैं , लेकिन इलाज की जगह उसके परिजन या फिर कोई अन्य पेशेवर व्यक्ति , उसकी नुमाइश कर , उसका मर्म दिखाकर, दर्द दिखाकर , लोगों की संवेदना भड़काकर , उनसे भीख लेना चाहता है , यूँ तो ऐसे हालात में , पहली प्राथमिकता इनका इलाज होना चाहिए ,लेकिन आम आदमी , रूपये देता है , आगे चला जाता है ,, विदेशी आता है , फोटो लेता है , पोस्ट कर देता है , इससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि भी बिगड़ रही है , यह मानवाधिकारों का भी उलंग्घन है , सरकार का फेल्योर होना साबित है , एक गंभीर घायल शख्स , जिसके ज़ख्म नासूर बन चुके है , विकलांग है , लकवाग्रस्त है , उसका इलाज सरकार नहीं करवा पा रही हैं , इन लोगों को रेस्क्यू कर इनका इलाज पुनर्वास सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है, जबकि इस व्यवस्था के लिए सभी पुलिस अधीक्षक , जिला कलक्टरों को पाबंद किया जाना ज़रूरी है , उनका इलाज हो ,, उनकी कल्याणकारी व्यवस्था हो , दूसरी तरफ आदतन भिखारी जो बच्चों को पढ़ाने की जगह , इस कारोबार में लगा रहे हैं , महिलाये , बुज़ुर्ग ,, नौजवान इस कारोबार में लगे हैं , उन्हें चिन्हित कर, , कल्याण व्यवस्था ,, शैक्षणिक व्वयस्था , स्वरोज़गार ,, रोज़गार व्यवस्था से उन्हें जोड़कर , इस कोढ़ की तरह फेल रही बिमारी को खत्म करने के लिए क़ानून भी ज़रूरी है , ताकि सरकार , जिला कलेक्टर , पुलिस अधीक्षक पर , क़ानून के ज़रिये ऐसे लोगों को चिन्हित कर इलाज कराने , शिक्षा व्यवस्था , कल्याण व्यवस्था के लिए पाबंद किया जाये ,, और गंभीर मरीज़ बनकर जो नुमाइश करके भीख मांगते हैं उनका इलाज हो , उनसे भीख मंगवाने वाले , बच्चों से भीख मंगवाने वाले , हष्ट पुष्ट होकर भी भीख मांगने वालों के खिलाफ क़ानूनी कार्यवाही सम्भव हो सके,
न्यूज़ नॉलेज 18 की गूगल पर प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ,, भारत में भिखरियों (Number of Beggars in India) की संख्या बहुत ज्यादा है. यह गंभीर समस्या काफी पहले से चली आ रही है. लेकिन साल 2011 के जनगणना (2011 Census) के “शिक्षण स्तर और प्रमुख गतिविधि के तौर पर गैर कामगारों” के आंकड़े चौंकाने और हैरान करने वाले साबित होते दिख रहे हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक भारत में चार लाख से ज्यादा भिखारी और बिना किसी काम और आय के साधन वाले लोग हैं लेकिन इसमें भी अजीब बात यह है कि इनमें से 21 प्रतिशत लोग साक्षर ही नहीं बल्कि शिक्षित (Educated Beggars) भी हैं. भीख मांगना अधिकांश मामलों में व्यवसाय के स्तर पर पहुंच चुका है और इसके ना छोड़ने के कुछ अजीब कारण या बहाने भी हैं.
भीख मांगने को मजबूर शिक्षित
ये आंकड़े इस बात पर सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि मूल शिक्षा होने के बाद भी ये लोग रोजगार नहीं पा सके जिससे उनके पास भीख मांगने अलावा कोई और चारा ही नहीं बचा था. डिग्रीधारी लागों का भीख मांगने पर मजबूर होना एक गंभीर संकेत है जो देश में रोजगार की खराब स्थिति को परिलक्षित करता है. लोग भीख मांगने का विकल्प रोजगार ना होने और पर्याप्य सामाजिक सहयोग ना मिलने पर अपनाते हैं, इसमें एक बात जो नजरअंदाज की जाती है, वह इसमें लिप्त माफिया का होना भी है जो और चिंताजनक स्थिति बना देता है.
भिक्षावृत्ति के उदाहरण अक्सर सड़क किनारे,धार्मिक स्थलों के आस-पास या चौक-चौराहों पर दिख जाते हैं। एक संजीदा नागरिक के मन में ये सवाल उठ सकता है कि क्या भीख मांग रहे ये लोग अपनी विवशता के कारण ऐसी हालत में हैं या फिर ये किसी साजिश के शिकार हैं। ताज्जुब की बात तो ये है कि इस संबंध में अभी तक कोई बेहतर मैकेनिज्म नहीं बन पाया है। बहरहाल दिल्ली हाई कोर्ट ने भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने वाले कानून बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ़ बेगिंग एक्ट, 1959 [Bombay Prevention of Begging Act, 1959] की 25 धाराओं को समाप्त कर दिया है। साथ ही, भिक्षावृत्ति के अपराधीकरण को असंवैधानिक करार दिया है। हाई कोर्ट ने यह निर्णय भिखारियों के मौलिक अधिकारों और उनके आधारभूत मानवाधिकारों के संदर्भ में दायर दो जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दिया।
यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि देश में अब तक भिक्षावृत्ति के संदर्भ में कोई केंद्रीय कानून नहीं है। बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ़ बेगिंग एक्ट, 1959 को ही आधार बनाकर 20 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों ने अपने कानून बनाये हैं। दिल्ली भी इनमें से एक है। वहीँ दूसरा केंद्रशासित प्रदेश है दमन और दीव।
भारत में भिक्षावृत्ति किन रूपों में विद्यमान है और इसके पीछे के कारण क्या हैं ?
भिक्षावृत्ति का सबसे साधारण classification ऐच्छिक भिक्षावृत्ति और अनैच्छिक भिक्षावृत्ति के रूप में किया जा सकता है। बहुत से ऐसे लोग हैं जो आलस्य, काम करने की कमजोर इच्छा शक्ति आदि के कारण भिक्षावृत्ति अपनाते हैं। भारत में कुछ जनजातीय समुदाय भी अपनी आजीविका के लिये परम्परा के तौर पर भिक्षावृत्ति को अपनाते हैं। लेकिन यहाँ पर गौर करने वाली बात ये है कि भीख मांगने वाले सभी लोग इसे ऐच्छिक रूप से नहीं अपनाते।
दरअसल, गरीबी, भुखमरी तथा आय की असमानताओं के चलते देश में एक वर्ग ऐसा भी है, जिसे भोजन, कपड़ा और आवास जैसी आधारभूत सुविधाएँ भी प्राप्त नहीं हो पातीं। यह वर्ग कई बार मजबूर होकर भीख मांगने का विकल्प अपना लेता है। भारत में आय की असमानता और भुखमरी की कहानी तो ग्लोबल लेवल की कुछ रिपोर्टों से ही जाहिर हो जाती है।
दिसम्बर, 2017 में प्रकाशित वर्ल्ड इनइक्वैलिटी रिपोर्ट [World Inequality Report] के अनुसार भारत के 10% लोगों के पास देश की आय का 56% हिस्सा है। वहीं International Food Policy Research Institute नामक एक संगठन द्वारा 2017 में जारी Global Hunger Index में 119 देशों की सूची में भारत को 100वाँ स्थान मिला है। साथ ही भारत को भुखमरी के मामले में गंभीर स्थिति वाले देशों में रखा गया है।
ज्ञापन में कहा गया है कि इसके अलावा गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी जैसी समस्यायों से मजबूर लोगों तक मौलिक सुविधाओं की पहुँच सुनिश्चित की जानी चाहिए। इसके लिये वास्तविक लाभार्थियों की पहचान और सेवाओं की लीक प्रूफ डिलीवरी जरूरी है।
दूसरी ओर गंभीर बिमारी से पीड़ित, अपंगता से ग्रसित और छोटी उम्र के बच्चे जो भिक्षावृत्ति को अपना चुके हैं, उनके पुनर्वास के लिये व्यापक स्तर पर प्रयास किये जाने की जरूरत है। इसके लिये पुनर्वास गृहों की स्थापना करके उनमें आवश्यक चिकित्सीय सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
साथ ही उनकी मौलिक जरूरतों को पूरा करते हुए उन्हें कौशल प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। तभी वे भविष्य में समाज की मुख्य धारा का हिस्सा बन सकेंगे। इस संबंध में बिहार जैसे राज्य में चलने वाली मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना का सन्दर्भ लिया जा सकता है। इस योजना में भिखारी को गिरफ्तार करने के स्थान पर उन्हें Open House में भेजकर उनके पुनर्वास की व्यवस्था किये जाने का प्रावधान है।
जहाँ तक बात संगठित तौर पर चलने वाले भिक्षावृत्ति रैकेटों की है तो इनको मानव तस्करी और अपहरण जैसे अपराधों के साथ जोड़ कर देखा जाना चाहिए। दूर-दराज़ के इलाकों से लोगों को खरीदकर या अपहरण कर लाया जाता है और उन्हें भिक्षावृत्ति में लगाया जाता है। इसलिये इससे निपटने के लिये राज्यों के बीच सूचनाएँ साझा करने हेतु एक तंत्र की भी आवश्यकता है।
इस मामले में मुम्बई, दिल्ली, उत्तराखण्ड , माननीय न्यायालय द्वारा पूर्व में कल्याणकारी आदेश दिए है जिनकी पालना नहीं हुई और उक्त आदेश अपर्याप्त होने से सम्पूर्ण भारत व्यवस्था के लिए नहीं होने से विस्तृत सुनवाई, अध्ययन के साथ स्थाई समाधान कठोर दिशा निर्देध विधि नियम आवश्यक हो गए हैं,
ज्ञापन में अख्तर खान अकेला ने मांग उठाई कि माननीय के समक्ष उक्त पत्र के माध्यम से याचिका पेश कर निवेदन है कि उक्त गम्भीर समस्या पर भारत सरकार सहित, देश की सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर विस्तृत रिपोर्ट प्राप्त करें, भविष्य की कार्ययोजना तय्यार कर स्थाई समाधान को लेकर आवश्यक क़ानून बनाने , कल्याणकारी , दण्डात्मक व्यवस्थाएं क्रियान्वित के विधि नियम बनाकर निर्देश जारी कर अनुग्रहित करें, शिकायत इस तरह से दर्ज होकर कार्यवाही शुरू करने की सूचना आई है
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