राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय कोटा में नेत्र दान की प्रेरणा हेतु व्याख्यान,400 बच्चों ने समझी नैत्रदान प्रक्रिया
2. मोक्ष और पुण्य कमाना है, तो आंखें दान कीजिए
राजस्थान
तकनीकी विश्वविद्यालय, कोटा में नवप्रवेशी 400 विद्यार्थियों के लिए
इंडक्शन प्रोग्राम में आज नेत्रदान विषय पर शाइन इंडिया फाउंडेशन के माध्यम
से एक व्याख्यान का आयोजन किया गया.
अखिल
भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् नयी दिल्ली के तत्वावधान में आयोजित इस
कार्यक्रम में शाइन इंडिया फाउंडेशन की ओर से डा. कुलवंत गौड़ ने
विद्यार्थियों को सहज रूप में नेत्रदान के लाभ तथा इसके संग जुड़ी
भ्रांतियों के निराकरण पर अपना उद्बोधन दिया ।
उन्होंने
बताया कि नेत्र का मात्र कॉर्निया ही नेत्रदान के रूप में निकाला जाता है,
जिससे मृतक की आँखों में कोई विकृति नहीं आती है. इसी प्रकार, किसी भी
धर्म में नेत्रदान-अंगदान के लिए कोई मना नहीं है, बल्कि मृत्यु के बाद भी
आँखें किसी न किसी व्यक्ति को रोशनी देने के काम आती हैं,तो यह पुण्य का
काम होता है । एक व्यक्ति के नेत्रदान से दो व्यक्तियों और कभी कभी दो से
अधिक व्यक्तियों को भी रोशनी लौटाई जा सकती है ।
उन्होंने
नेत्रदान की पात्रता के बारे में स्पष्ट किया कि,किसी भी प्रकार के
रक्त-संक्रमण की अवस्था में नेत्रदान नहीं लिया जा सकता। किसी भी तरह की
साधारण मृत्यु में नेत्रदान संभव है । नेत्रदान प्रक्रिया में आठ से दस
मिनट का समय लगता हैं और उसके बाद निकाले गए कॉर्निया को एक विशेष द्रव में
रख कर संरक्षित कर लिया जाता है, जो आवश्यकतानुसार किसी नेत्र चिकित्सालय
को भेजा जा सकता है । कॉर्निया को 3 दिन या 2 सप्ताह या एक वर्ष तक भी
संरक्षित रखा जा सकता है । उन्होंने विद्यार्थियों से इस पुनीत कार्य में
योगदान देने का आह्वान किया और कहा कि मृत्यु होने के बाद वैसे तो कॉर्निया
6 से 8 घंटे में लिया जा सकता है, और सर्दियों में 12 घंटे तक भी कॉर्निया
सुरक्षित रहता है,परंतु फिर भी नेत्रदान की प्रक्रिया मृत्यु के बाद जितना
जल्दी हो जाए उतना कॉर्निया की गुणवत्ता ठीक रहती है ।
कार्यक्रम
कोऑर्डिनेटर रंजन माहेश्वरी ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा
कि,नेत्रदान करने वाले को मोक्ष और पुण्य की प्राप्ति होती है । जीवित रहते
यदि आप मोक्ष पाने की कामना रखते हैं तो मरणोपरांत आपके नेत्रदान हो यह
सुनिश्चित करके जाइये ।
कार्यक्रम
के अंत में ट्रेनिंग तथा प्लेसमेंट विभाग के विभागाध्यक्ष डा. मनीष
चतुर्वेदी ने सभी अतिथियों तथा सहयोगियों का आभार व्यक्त किया ।
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