ऐसा देश है मेरा..................10
यूनेस्को की विश्व विरासत में शामिल कुम्भलगढ़ किला.................
राजस्थान के अनेक पहाड़ी किलों में राजसमंद जिले की अरावली की पहाड़ियों के मध्य स्थित है भव्य कुम्भलगढ़ का किला। यह किला सुरक्षा की दृष्टि से सात पहाड़ियों के मध्य इस प्रकार बनाया गया है कि काफी नजदीक पहुँचने पर ही इसका अस्तित्व नजर आता है। अनेक पहाड़ियों एवं घाटियों के बीच बना किले का सैनिक एवं सुरक्षात्मक महत्व का पता इसी से चलता है कि यह दुर्ग सदैव अजेय रहा। इतिहास की कई गाथाएं अपने में समेटे वास्तु कला की दृष्टि से इस दुर्ग को यूनेस्को ने अपनी प्राकृतिक ,सांस्कृतिक एवं एतिहासिक साइट की श्रेणी में 21 जून 2013 को विश्व धरोहर में शामिल कर इसके महत्व को प्रतिपादित किया है।
** कुंभलगढ़ प्रशस्ति में पहाड़ियों के नाम नील, श्वेत, हेमकूट, निषाद एवं गन्दमदन बताया गया है। कुंभलगढ़ की प्रशस्ति की कुछ पट्टिकाएं उदयपुर संग्रहालाय में सुरक्षित हैं। महाराणा कुंभा ने इस अजेय दुर्ग का निर्माण 13 मई 1459 को करवाया था। मंडन नामक शिल्पि ने इसका निर्माण किया। भारत के सभी दुगों में यह विशेष स्थान रखता है। दुर्ग का निर्माण पूर्ण होने पर कुंभा ने इस दुर्ग और अपने नामके सिक्के ढ़लवाये।
** कुंभलगढ़ का निर्माण करीब 15 वर्षो में पूरा हुआ। दुर्ग पर जाने के लिए केलवाड़ा नामक कस्बे से पश्चिम की ओर सड़क जाती है जो अटेपोल एवं हल्लापोल दों दरवाजों से हो कर दुर्ग तक पहुँचती है। किले का मुख्य प्रवेश द्वार हनुमान पोल है जिस के बाहर हनुमान जी की मूर्ति लगी है। दुर्ग के चारों तरफ मजबूत दीवार एवं सुदृड़ बुर्जे बनाई गई है। बुर्जो की श्रृंखला शैंपेन बोतल के आकार की नजर आती है।
** बताया जाता है चीन की दीवार के बाद यह दीवार सबसे लंबी है। दीवार की लंबाई 36 किमी. लंबी एवं 15 फुट चैड़ी है। इसकी चैड़ाई इतनी है कि चार घोड़े इस पर एक साथ दौड़ सकते थे। वास्तु शास्त्र के आधार पर बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीन, जलाशय, महल, आवासीय भवन, यज्ञ वेदी, स्तम्भ एवं छतरियां आदि बनाये गये हैं। नागर शैली में बना नीलकंठ महादेव मंदिर सहित किले पर करीब 360 से ज्यादा मंदिर हैं जिनमें 300 प्राचीन जैन मंदिर एवं शेष हिन्दु मंदिर हैं।
** इस दुर्ग के अन्दर एक और गढ़ है जिसे कटारगढ़ कहा जाता है। यह गढ़ सात विशाल द्वार विजय पोल, भैरवपोल, नीबू पोल, चैगान पोल, पागड़ा पोल, गणेश पोल एवं सुदृड़ प्राचीरों से सुरक्षित है। इस गढ़ के अन्दर सबसे ऊंचे भाग पर बादल महल एवं कुंभा महल बनाये गये हैं। यहीं पर कुंवर पृथ्वीराज की छतरी भी बनी है।
** अनेक ऐतिहासिक प्रसंगों का साक्षी रहा है यह दुर्ग। पन्नाधाय ने यहीं पर उदयसिंह को छुपा कर उसका लालन-पालन किया था। राणा प्रताप भी हल्दी युद्ध के बाद काफी समय तक यहाँ रहे। महाराणा कुंभा से ले कर राजसिंह तक राज परिवार इसी दुर्ग में रहा । करीब 30 किमी. व्यास में फैला यह दुर्ग ऐतिहासिक विरासत की शान एवं शूरवीरों का तीर्थ स्थल बना रहा। मांड गायक दुर्ग की प्रशंसा में गीत गाते हैं।
** कुम्भलगढ़ किले के साथ-साथ कुम्भलगढ़ अभयारण्य राजस्थान के उदयपुर, राजसमन्द और पाली जिलों में फैला हुआ हैं इसका क्षेत्र फल 608.57 वर्ग किलोमीटर है और इसकी घोषणा 13 जुलाई 1971 को की गई थी। यह अभयारण्य बाघ के लिए प्रसिद्ध रहा है। सन् 1960 तक तो इस में बाघ की गतिविधियां होना एक सामान्य बात थी, लेकिन धीरे-धीरे बाघ इस क्षेत्र से लुप्तप्रायः होने लगा और अब इसकी जगह यहाँ का प्रमुख भक्षक वन्य जीव बघेरा हो गया है। इसके अलावा अभयारण्य में रीछ, जरख, जंगली सूअर, नीलगाय, सांभर, सियार, जंगली बिल्ली, चैसिंगा, खरगोश और सेही आदि काफी संख्या में पाए जाते हैं। वैसे यह अभयारण्य भेड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। यह पूरे भरत में अकेला अभयारण्य है, यहाँ पर भेड़िए प्रजनन करते हैं। कुम्भलगढ़ अभयारण्य का जोबा वनखण्ड भेड़ियों को देखने कि लिए एक सबसे उपयुक्त स्थान है। यहाँ पर वाटरहोल के पास बनी हाइड में बैठकर सुबह या सांय के समय पानी पीते भेड़ियों को आसानी से देखा जा समता है। भेड़ियों के अतिरिक्त कुम्भलगढ़ अभयारण्य जंगली धूसर मुर्गो के लिए भी विख्यात है। जंगली मुर्गे वैसे तो घनी झाड़ियों में रहते हैं। यह अभयारण्य वन एवं वन्य जीवों के अतिरिक्त अपने ऐतिहासिक स्मारकों तथा इमारतों के लिए भी विख्यात है। इस अभयारण्य का नाम प्रसिद्ध कुम्भलगढ़ किले पर रखा गया है । अपनी उत्कृष्ट मूर्ति शिल्प के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध रणकपुर जैन मंदिर कुम्भलगढ़ अभयारण्य में ही स्थित है। किले पर साल में एक बार कुंभल महोत्सव आयोजित किया जाता है। यहां आने वाले पर्यटक एडवेंचर खेलों का लुत्फ भी उठाते हैं। आज यह किला राजस्थान आने वाले पर्यटकों की पसंद बन गया है।
- डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवम पत्रकार, कोटा
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