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29 नवंबर 2022

 मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के वफादार पत्रकार, वफादार मिडिया सलाहकार निश्चित तोर पर असफल हैं , और यह मुख्यमंत्री बदलने का हव्वा , उनकी नाकामयाबी, फेल्योर गिरी का ही नतीजा है , अगर वक़्त रहते , कुछ सलाहकारों को नहीं बदला , तो फिर ,, अल्लाह ही मालिक रहेगा ,

 मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के वफादार पत्रकार, वफादार मिडिया सलाहकार निश्चित तोर पर असफल हैं , और यह मुख्यमंत्री बदलने का हव्वा , उनकी नाकामयाबी, फेल्योर गिरी का ही नतीजा है , अगर वक़्त रहते , कुछ सलाहकारों को नहीं बदला , तो फिर ,, अल्लाह ही मालिक रहेगा ,
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अधिकारियों पर भरोसा करते हैं , पत्रकारों पर , भरोसा करते हैं , उन्हें आउट राइट मदद भी करते हैं , लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत विश्व में पत्रकारों के लिए सर्वश्रेष्ठ मददगार साबित होने के बावजूद भी , पत्रकारों , और अधिकारीयों की बेवफाई के ही शिकार हैं , और यही वजह है , के हर बार ,,  बेहतरीन सकारात्मक कामों के बावजूद भी , नकारात्मक खबरों का प्रचार शुरू हो जाता हैं , एक मुखालिफ माहौल बनाने की साज़िशे रची जाना शुरू हो जाती हैं , , जी हाँ दोस्तों यक़ीनन मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठे सलाहकार  , जो सलाह के नाम पर सिर्फ सार्वजिनक विरोध , बयानबाज़ी करते हैं , मुख्यमंत्री को नुकसान पहुंचा रहे हैं , उन्हें झूंठ परोस रहे हैं , जबकि ,  मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का आम जनता से सरकार के संवाद कार्यक्रम देख रहे , जो भी ज़िम्मेदार अधिकारी ,विशेषाधिकारी हैं , वोह निश्चित तोर पर,  मुख्यमंत्री को गुमराह कर रहे हैं , वोह उन्हें सही सलाह नहीं दे रहे हैं , सिर्फ जी हुज़ूरी कर , अपना टाइम पास कर रहे हैं , और जनता से उनकी दूरी बढ़ती ,, कार्यकर्ताओं से उनकी दुरी यह लगातार बढ़ा रहे हैं ,, जबकि , मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मिडिया सलाहकार,  मिडिया , प्रिंट मीडिया का काम देखने वाले , ज़िम्मेदार , विशेषाधिकारी , तो बिलकुल ही फिसड्डी साबित हुए हैं , इसीलिए तो राजस्थान में जहाँ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कार्ययोजनाएं , कल्याणकारी कार्यक्रम , रोज़ सुर्ख़ियों की खबर होना चाहियें , उन खबरों की जगह , रोज़ राजस्थान में यह खबरें तो हाशिये पर हैं , और , नकारात्मक खबरे , विवादित बयानों को और ज़्यादा विवादित बनाकर , खतरों के प्रकाशन की  मुहीम भाजपा के इशारे पर रोज़मर्रा , सरकार , सरकार के समर्थकों , सरकार के ज़िम्मेदारों के बीच , पैदा करने के प्रयासों के साथ खबरें प्रकाशित की जा रही हैं , अशोक गहलोत ने , राजस्थान के हर पत्रकार  छोटे , मंझोले , बढे पत्रकार हों , उनके लिए दिल खोलकर कल्याणकारी व्यवस्थाएं की हैं , अधिस्वीकरण सरलीकरण, इलाज मुफ्त , पेंशन योजना , रियायती दरों पर भूखंड, मकान , न्यूनतम विज्ञापन की पाबंदी का क़ानून , यह तो है ही सही , लेकिन रोज़ मर्रा , प्रिंट मीडिया में , फूल पेज के विज्ञापन , इलेक्ट्रॉनिक मिडिया में , बढे बढे विज्ञापन , दूसरी सुविधाएं , पत्रकार कोटे से , ऊँचे पदों पर , केबिनेट स्तर की , लाखों रूपये प्रतिमाह वेतन मानदेय की पदों पर नियुक्तियां , जिला स्तर से लेकर , प्रदेश स्तरीय समितियों में , नियुक्तियां , सभी तो अशोक गहलोत कर रहे हैं , , इन सब के बावजूद , सारी कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद , विवादों के वक़्त , मीडिया मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पक्ष का समर्थन करने , की जगह , उनके खिलाफ माहौल बनाने की साज़िशें रच रहा हैं , अनावश्यक बात का बतंगगढ़ बनाकर वाद विवाद पैदा कर रहा हैं , अशोक गहलोत के पक्ष को ,, नज़रअंदाज़ कर,  विरोधियों के पक्ष को बढ़ा चढ़ाकर बयान कर रहा है , यक़ीनन पत्रकारिता स्वतंत्र हैं , अपनी खबर अपने तरीके से बनाने का पत्रकारों का अधिकारी हैं , उनके अपने विचार हैं , लेकिन  पत्रकारों के साथ रोज़ उठने , बैठने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सलाहकार,  मीडिया सलाहकार, सभी सलाहकार वोह इस मामले में असफल है   अगर ऐसा ही मामला नरेंद्र मोदी के साथ होता , भाजपा के किसी मुख्यमंत्री के साथ होता , तो अख़बारों की खबरें , , न्यूज़ चेनल्स की बहस डिबेटस ,  मुख्यमंत्री के बयानों को बात का बतंगगढ़ बनाने वाली नहीं होती , उनपर पर्दा डालने वाली होतीं ,  दुश्मन को विलेन बनाने वाली होतीं , मानेसर के बाद जो दर्द भोगा है , जो विधायकों को तकलीफें हुए , जो , सरकार बचाने में , कोशिशें हुई हैं , उन खबरों को प्राथमिकता से देकर ,  उस वक़्त को ताज़ा करने वाली खबरें होतीं , अजय माकन ने महसचिव प्रभारी होने के नाते , सर्विस प्रोवाइडर की जगह ,, पार्टी बनकर, मुख्यमंत्री बनाने की अग्रिम घोषणा के साथ , पर्वेक्षक बनकर आये,  मलिकार्जुन खड़गे साहब को जो गुमराह किया था , वोह पारदर्शी खबरें होतीं , लेकिन , अशोक गहलोत अकेले पढ़ गए हैं , वोह अकेले ही इस जंग को , अपनी हिकमत से , लड़ रहे हैं , अकेले ही इस जंग को जीत रहे हैं , क्यूंकि उनकी अपनी गुडविल हैं,  उनकी अपनी मेहनत हैं , कल्याणकारी व्यवस्थाएं हैं , बस उनकी टीम इक्का दुक्का की अक़्लमंदी , मौके पर तत्काल उनके मदद के तरीके , अपवाद हो सकते हैं , लेकिन यक़ीनन , जो अल्फ़ाज़ अशोक गहलोत ने,  सचिन पायलेट के लिए इस्तेमाल किये , वोह परिभाषित रूप से , उनके कामकाज के रूप से , अशोक गहलोत का मीडिया का कामकाज देख रहे लोगों पर खरी उतरती हैं , आम जनता , आम कार्यर्कता से , संवाद की ज़िम्मेदारी जिन पर हैं उन पर भी वोह अलफ़ाज़ खरे उतरते हैं , ,मुखबिरी प्रणाली , जिसमे आम जनता क्या सोचती हैं , कार्यर्कता क्या सोच रहा हैं , इसकी सच्ची और कड़वी रिपोर्ट मुख्यमंत्री तक पहुंचाने वाले ज़िम्मेदारो के लिए भी खरी उतरती हैं , , राजस्थान में भाजपा सब कुछ कल्याणकारी व्यवस्थाओ के बाद भी , खुद भाजपा के पच्चीस सांसदों , 75 सेअधिक विधायकों के बावजूद भी , कुछ भी नहीं कर पाने के बाद भी , नाकारा साबित होने के बाद भी , आक्रोश रैली निकाल रहे हैं , अकेले खादी ग्रामोद्योग के उपाध्यक्ष पंकज मेहता ने , भाजपाइयों को इस मामले में , आयना दिखाकर, अपना बयान जारी किया , यह सब खबरें , क्या इनके मीडिया सलाहकार  मैनेज करवाकर , अख़बारों की सुर्खियां नहीं बनवा सकते , जो सही खबरें हैं , वोह घटनाक्रम प्रकाशित नहीं करवा सकते , अगर  मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कथित वफादार ज़िम्मेदारों में , एक आध अपवाद को छोड़कर , एक भी ज़िम्मेदार वफादार होता , तो अख़बार की खबरों में , पुराना , सारा घटनाक्रम , जिससे राजस्थान उद्धेलित था , वोह  उस वक़्त मानेसर जाकर बैठने वालों के मामले में अख़बारों की सुर्खियां होतीं,  खबर होती , कोई विवाद नहीं , चाचा भतीजे का विवाद है , आपस में बैठ कर सुलझा लेंगे , रोज़ मर्रा अनावश्यक रूप से मुख्यमंत्री बदलो , मुख्यमंत्री बदलो , आज बदल रहे हैं , कल बदल रहे है , का भाजपा से सुपारी लेकर पेड़ खबरों का शीर्षक नहीं होता, ,, तो जनाब , अभी भी वक़्त हैं , अपने साथ काम करने वाले सलाहकारों की छटनी करो , वर्ना फिर मत कहना , के पहले बताया क्यों नहीं , ,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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