मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के वफादार पत्रकार, वफादार मिडिया सलाहकार निश्चित तोर पर असफल हैं , और यह मुख्यमंत्री बदलने का हव्वा , उनकी नाकामयाबी, फेल्योर गिरी का ही नतीजा है , अगर वक़्त रहते , कुछ सलाहकारों को नहीं बदला , तो फिर ,, अल्लाह ही मालिक रहेगा ,
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अधिकारियों पर भरोसा करते हैं , पत्रकारों पर , भरोसा करते हैं , उन्हें आउट राइट मदद भी करते हैं , लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत विश्व में पत्रकारों के लिए सर्वश्रेष्ठ मददगार साबित होने के बावजूद भी , पत्रकारों , और अधिकारीयों की बेवफाई के ही शिकार हैं , और यही वजह है , के हर बार ,, बेहतरीन सकारात्मक कामों के बावजूद भी , नकारात्मक खबरों का प्रचार शुरू हो जाता हैं , एक मुखालिफ माहौल बनाने की साज़िशे रची जाना शुरू हो जाती हैं , , जी हाँ दोस्तों यक़ीनन मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठे सलाहकार , जो सलाह के नाम पर सिर्फ सार्वजिनक विरोध , बयानबाज़ी करते हैं , मुख्यमंत्री को नुकसान पहुंचा रहे हैं , उन्हें झूंठ परोस रहे हैं , जबकि , मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का आम जनता से सरकार के संवाद कार्यक्रम देख रहे , जो भी ज़िम्मेदार अधिकारी ,विशेषाधिकारी हैं , वोह निश्चित तोर पर, मुख्यमंत्री को गुमराह कर रहे हैं , वोह उन्हें सही सलाह नहीं दे रहे हैं , सिर्फ जी हुज़ूरी कर , अपना टाइम पास कर रहे हैं , और जनता से उनकी दूरी बढ़ती ,, कार्यकर्ताओं से उनकी दुरी यह लगातार बढ़ा रहे हैं ,, जबकि , मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मिडिया सलाहकार, मिडिया , प्रिंट मीडिया का काम देखने वाले , ज़िम्मेदार , विशेषाधिकारी , तो बिलकुल ही फिसड्डी साबित हुए हैं , इसीलिए तो राजस्थान में जहाँ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कार्ययोजनाएं , कल्याणकारी कार्यक्रम , रोज़ सुर्ख़ियों की खबर होना चाहियें , उन खबरों की जगह , रोज़ राजस्थान में यह खबरें तो हाशिये पर हैं , और , नकारात्मक खबरे , विवादित बयानों को और ज़्यादा विवादित बनाकर , खतरों के प्रकाशन की मुहीम भाजपा के इशारे पर रोज़मर्रा , सरकार , सरकार के समर्थकों , सरकार के ज़िम्मेदारों के बीच , पैदा करने के प्रयासों के साथ खबरें प्रकाशित की जा रही हैं , अशोक गहलोत ने , राजस्थान के हर पत्रकार छोटे , मंझोले , बढे पत्रकार हों , उनके लिए दिल खोलकर कल्याणकारी व्यवस्थाएं की हैं , अधिस्वीकरण सरलीकरण, इलाज मुफ्त , पेंशन योजना , रियायती दरों पर भूखंड, मकान , न्यूनतम विज्ञापन की पाबंदी का क़ानून , यह तो है ही सही , लेकिन रोज़ मर्रा , प्रिंट मीडिया में , फूल पेज के विज्ञापन , इलेक्ट्रॉनिक मिडिया में , बढे बढे विज्ञापन , दूसरी सुविधाएं , पत्रकार कोटे से , ऊँचे पदों पर , केबिनेट स्तर की , लाखों रूपये प्रतिमाह वेतन मानदेय की पदों पर नियुक्तियां , जिला स्तर से लेकर , प्रदेश स्तरीय समितियों में , नियुक्तियां , सभी तो अशोक गहलोत कर रहे हैं , , इन सब के बावजूद , सारी कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद , विवादों के वक़्त , मीडिया मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पक्ष का समर्थन करने , की जगह , उनके खिलाफ माहौल बनाने की साज़िशें रच रहा हैं , अनावश्यक बात का बतंगगढ़ बनाकर वाद विवाद पैदा कर रहा हैं , अशोक गहलोत के पक्ष को ,, नज़रअंदाज़ कर, विरोधियों के पक्ष को बढ़ा चढ़ाकर बयान कर रहा है , यक़ीनन पत्रकारिता स्वतंत्र हैं , अपनी खबर अपने तरीके से बनाने का पत्रकारों का अधिकारी हैं , उनके अपने विचार हैं , लेकिन पत्रकारों के साथ रोज़ उठने , बैठने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सलाहकार, मीडिया सलाहकार, सभी सलाहकार वोह इस मामले में असफल है अगर ऐसा ही मामला नरेंद्र मोदी के साथ होता , भाजपा के किसी मुख्यमंत्री के साथ होता , तो अख़बारों की खबरें , , न्यूज़ चेनल्स की बहस डिबेटस , मुख्यमंत्री के बयानों को बात का बतंगगढ़ बनाने वाली नहीं होती , उनपर पर्दा डालने वाली होतीं , दुश्मन को विलेन बनाने वाली होतीं , मानेसर के बाद जो दर्द भोगा है , जो विधायकों को तकलीफें हुए , जो , सरकार बचाने में , कोशिशें हुई हैं , उन खबरों को प्राथमिकता से देकर , उस वक़्त को ताज़ा करने वाली खबरें होतीं , अजय माकन ने महसचिव प्रभारी होने के नाते , सर्विस प्रोवाइडर की जगह ,, पार्टी बनकर, मुख्यमंत्री बनाने की अग्रिम घोषणा के साथ , पर्वेक्षक बनकर आये, मलिकार्जुन खड़गे साहब को जो गुमराह किया था , वोह पारदर्शी खबरें होतीं , लेकिन , अशोक गहलोत अकेले पढ़ गए हैं , वोह अकेले ही इस जंग को , अपनी हिकमत से , लड़ रहे हैं , अकेले ही इस जंग को जीत रहे हैं , क्यूंकि उनकी अपनी गुडविल हैं, उनकी अपनी मेहनत हैं , कल्याणकारी व्यवस्थाएं हैं , बस उनकी टीम इक्का दुक्का की अक़्लमंदी , मौके पर तत्काल उनके मदद के तरीके , अपवाद हो सकते हैं , लेकिन यक़ीनन , जो अल्फ़ाज़ अशोक गहलोत ने, सचिन पायलेट के लिए इस्तेमाल किये , वोह परिभाषित रूप से , उनके कामकाज के रूप से , अशोक गहलोत का मीडिया का कामकाज देख रहे लोगों पर खरी उतरती हैं , आम जनता , आम कार्यर्कता से , संवाद की ज़िम्मेदारी जिन पर हैं उन पर भी वोह अलफ़ाज़ खरे उतरते हैं , ,मुखबिरी प्रणाली , जिसमे आम जनता क्या सोचती हैं , कार्यर्कता क्या सोच रहा हैं , इसकी सच्ची और कड़वी रिपोर्ट मुख्यमंत्री तक पहुंचाने वाले ज़िम्मेदारो के लिए भी खरी उतरती हैं , , राजस्थान में भाजपा सब कुछ कल्याणकारी व्यवस्थाओ के बाद भी , खुद भाजपा के पच्चीस सांसदों , 75 सेअधिक विधायकों के बावजूद भी , कुछ भी नहीं कर पाने के बाद भी , नाकारा साबित होने के बाद भी , आक्रोश रैली निकाल रहे हैं , अकेले खादी ग्रामोद्योग के उपाध्यक्ष पंकज मेहता ने , भाजपाइयों को इस मामले में , आयना दिखाकर, अपना बयान जारी किया , यह सब खबरें , क्या इनके मीडिया सलाहकार मैनेज करवाकर , अख़बारों की सुर्खियां नहीं बनवा सकते , जो सही खबरें हैं , वोह घटनाक्रम प्रकाशित नहीं करवा सकते , अगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कथित वफादार ज़िम्मेदारों में , एक आध अपवाद को छोड़कर , एक भी ज़िम्मेदार वफादार होता , तो अख़बार की खबरों में , पुराना , सारा घटनाक्रम , जिससे राजस्थान उद्धेलित था , वोह उस वक़्त मानेसर जाकर बैठने वालों के मामले में अख़बारों की सुर्खियां होतीं, खबर होती , कोई विवाद नहीं , चाचा भतीजे का विवाद है , आपस में बैठ कर सुलझा लेंगे , रोज़ मर्रा अनावश्यक रूप से मुख्यमंत्री बदलो , मुख्यमंत्री बदलो , आज बदल रहे हैं , कल बदल रहे है , का भाजपा से सुपारी लेकर पेड़ खबरों का शीर्षक नहीं होता, ,, तो जनाब , अभी भी वक़्त हैं , अपने साथ काम करने वाले सलाहकारों की छटनी करो , वर्ना फिर मत कहना , के पहले बताया क्यों नहीं , ,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
29 नवंबर 2022
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के वफादार पत्रकार, वफादार मिडिया सलाहकार निश्चित तोर पर असफल हैं , और यह मुख्यमंत्री बदलने का हव्वा , उनकी नाकामयाबी, फेल्योर गिरी का ही नतीजा है , अगर वक़्त रहते , कुछ सलाहकारों को नहीं बदला , तो फिर ,, अल्लाह ही मालिक रहेगा ,
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