आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

12 अप्रैल 2021

तारे की क़सम जब टूटा (1)

 सूरए अन नज्म मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी बासठ (62) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
तारे की क़सम जब टूटा (1)
कि तुम्हारे रफ़ीक़ (मोहम्मद) न गुमराह हुए और न बहके (2)
और वह तो अपनी नफ़सियानी ख़्वाहिश से कुछ भी नहीं कहते (3)
ये तो बस वही है जो भेजी जाती है (4)
इनको निहायत ताक़तवर (फ़रिश्ते जिबरील) ने तालीम दी है (5)
जो बड़ा ज़बरदस्त है और जब ये (आसमान के) ऊँचे (मुशरक़ो) किनारे पर था तो वह अपनी (असली सूरत में) सीधा खड़ा हुआ (6)
फिर करीब हो (और आगे) बढ़ा (7)
(फिर जिबरील व मोहम्मद में) दो कमान का फ़ासला रह गया (8)
बल्कि इससे भी क़रीब था (9)
ख़ुदा ने अपने बन्दे की तरफ जो ‘वही’ भेजी सो भेजी (10)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...