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30 अगस्त 2020

#कोरोना_एक_अनुभव

 #कोरोना_एक_अनुभव
#दो
मेरे कोरोनाग्रस्त होने के बाद मैं घर के ऊपर के कमरे में आइसोलेट हो गया । दवाएं शुरू कर दी। बेटी सोशल मीडिया आदि पर सक्रिय और अद्यतन रहती है इसलिए उसने इलेक्ट्रिक का स्टीम लेने वाला यंत्र मंगा दिया । मुझे हल्का बुखार था और भूख बिल्कुल नहीं लग रही थी । जैसे तैसे भोजन के उपरांत दवाई ली और लेट गया । तबियत बहुत अच्छी नहीं थी । पुलिस थाने , आई बी , अस्पताल से आ रहे फोन लगातार परेशान कर रहे थे जिसमें वो सामान्य जानकारी मांग रहे थे । एक डॉक्टर ने पूछा आप बाहर तो यात्रा पर नहीं गए थे । मैंने कहा नहीं । कुछ मित्रों को फोन पर टेक्स्ट मेसेज किया बस । #शरदउपाध्याय ने अपराह्न 4 बजे सम्भवतः व्यंग्यकारों के ग्रुप #वलेस में सूचना डाल दी । संदेशों और फोन कॉल का तांता लग गया । सब मित्र हिम्मत बंधा रहे थे । मुकेश जोशी , शशांक दुबे , हरीश कुमार सिंह , शान्तिलाल जैन , अभिषेक अवस्थी , मोहन मौर्य आदि ने व्हाट्सएप पर काफी प्रेरक और सकारात्मक संदेश भेजे । मुझे लगा मेरे साथ देश का इतना बड़ा समाज है । अकेला नहीं हूँ । पारिवारिक मित्रों #प्रदीपचौधरी , #महेन्द्रचौधरी ने कमान संभाल ली थी ।
शाम होते होते #प्रेमजनमेजय जी का ऊर्जा देता संदेश आया । #डॉज्ञानचतुर्वेदी ने फोन पर काफी देर तक बात की और तुरंत विटामिन डी 3 , जिंक की टेबलेट , विटामिन सी के सेवन की सलाह दी । उन्होंने कहा कोई चिंता की बात नहीं जरा भी दिक्कत हो कभी भी फोन कर लेना तुम मुझे । देश के इतने बड़े चिकित्सा और साहित्य के डॉक्टर का हाथ सिर पर हो तो आप का आत्मविश्वास दुगुना हो जाता है । #डॉदिलीपविजयवर्गीय जैसा विनम्र , सहृदय और दोस्ती निभाने वाला व्यक्ति मैंने कम ही देखा है चिकित्सा जगत में । मैंने उनको सूचना दी तो उन्होंने कहा लिमसी के पैकेट मंगा लो आप और उनको दिन में 3 से 4 बार चूसो । लिक्विड डाइट लो ज्यादा । #ज्ञानजी ने पूछा था कि कैसे वायरस आ गया ? मैंने उनको बताया कि छोटे भाई का 9 वर्षीय बेटा पार्क में खेलने , साइकिल चलाने जाता है और कहने पर भी मॉस्क नहीं लगाता उसे बुखार आया था कुछ दिन पूर्व लेकिन वो डॉक्टर को दिखाते ही ठीक हो गया । बाद में उसकी मम्मी और बहन को बुखार आया 3 से 4 दिन और वो भी ठीक गयीं । बाद में मुझे बुखार आ गया एक दिन बाद जो 4 से 5 दिन तक चला । ज्ञान जी ने कहा घर के और लोगों को भी हो सकता है भले ही असिमटोमेटिक ही क्यों न हो और वही हुआ 9 को ही मेडिकल कॉलेज से टीम आई और घर के सब सदस्यों के सैम्पल ले कर गयी माता जी सहित । घर मे बुखार आदि के कारण ऐहतियात के तौर पर मां के कमरे में आना जाना बन्द कर रखा था और उनको अलग ही रख रहे थे भरसक । जिसका फायदा यह हुआ कि उनकी रिपोर्ट निगेटिव आयी जबकि हमें उनकी उम्र 74 वर्ष देखते हुए बहुत डर लग रहा था कि क्या होगा और अस्पताल में ले जाएंगे , कैसे रहेंगी आदि प्रश्न मन में उठ रहे थे । 11 अगस्त का दिन सबसे भयावह दिन था पिता जी की मृत्यु के बाद मेरे घर के इतिहास में ।
सुबह 10 बजे डाक्टर का फोन आया और उसने घर के 8 लोग कोरोना से प्रभावित बता दिए और कहा ये सब मेडिकल कॉलेज आ जाएं हम एम्बुलेंस भेज रहे हैं । माता जी रोने लगीं , घबरा गयीं । हम सब के पैरों तले की ज़मीन खिसक गई मानों । वैसे इतना गम्भीर कोई बीमार नहीं था । बस मेरी बेटी विभूति की टेस्ट बड्स काम नहीं कर रही थीं । धर्मपत्नी सेवा के कारण चपेट में आ गयी थीं हल्का बुखार था और मेरे पर खांसी ने पकड़ बना ली थी । एम्बुलेंस वाले को समझाया भाई यहां सायरन मत बजा तेरा मोहल्ले के लोग जाने क्या क्या सोचेंगे । वैसे लोग तांक झांक में बाकायदा लगे थे अपनी खिड़कियों और दरवाज़ों की आड़ से । अब नीचे माता जी अकेली और ऊपर मैं अकेला आइसोलेट । नीचे आकर उनको समझा भी नहीं सकता कि यह मत छुओ , वहां मत जाओ आदि । वृद्धावस्था के कारण उनको ऊंचा सुनने की समस्या है और प्रायः वो कान की मशीन दोपहर बाद लगाती हैं । मैंने ऊपर के लोहे के जंगले से आवाज़ देकर उनको बुलाया और कहा आप मशीन लगा लो ताकि हम बातचीत कर सकें ऊपर से नीचे । उधर मित्र #महेन्दरचौधरी को फोन किया कि मेडिकल कॉलेज में कोई मित्र डाक्टर हो तो इन सब परिजनों की हालत ठीक है तो घर पर एलाऊ कर दें रहने को । उनके एक सक्रिय डाक्टर मित्र और हमारे परिचित सीनियर कम्पाउंडर , #डाक्टरदिलीपविजयवर्गीय ने बहुत मदद की इस काम में । वहां डॉक्टरों की टीम ने जांचा इन सबको और पूछा कितने कमरे हैं आप पर ? बता दिया कि 4 नीचे हैं 4 ऊपर और 4 बाथरूम हैं । जगह पर्याप्त है । वे इनके स्वास्थ्य को देख आश्वस्त थे सब 9 से लेकर 50 तक के अंदर आयु के थे और कोई क्रोनिक डिसीज नहीं थी इसलिए उनको घर की इजाज़त और पूर्व वर्णित दवाइयां दे दी गयीं ।
एम्बुलेंस का कोई अता-पता नहीं था ले जाने को । बारिश के कारण कोई शेड नहीं था खड़ा होने को अस्पताल के टेरेस के अतिरिक्त जहां पहले ही पेशेंट खड़े थे कोरोना के साथ । दोपहर के 3 बज चुके थे सुबह के चाय और बिस्किट खा कर निकले परिजन परेशान थे । बेटी को फोन करके मैं हालात से अवगत होता रहा । जब घर आने की सूचना मिली तब जाकर चैन आया । मां नीचे अलग परेशान और अपने पूजा पाठ में लगी थी कि बेटा भगवान का ही सहारा है क्या करें ? मैनें कहा आ रहे हैं सब , चिंता न करो आप । एक डॉक्टर ने सलाह दी आज केस बहुत हैं कोटा में शायद डेढ़ सौ के करीब इसलिए निजी एम्बुलेंस कर के चले जाएं । बाहर आ कर देरी से प्राप्त इस व्यावहारिक ज्ञान का उपयोग किया घरवालों ने यह बड़बड़ाते हुए कहा - कि पहले ही बता देते तो 2 घण्टे और क्यो बर्बाद करते । निजी एम्बुलेंस वाले को जब बताया कि कोरोना के मरीज हैं सब तब जाकर उसने नाक के नीचे तक लापरवाह अंदाज़ में मॉस्क लगाया और 500₹ में सबको घर छोड़ गया । शाम 5 बजे तक नहा धोकर सब बच्चे और बड़े निवृत्त हो पाए । भूख के कारण हाल बुरा था जो कुछ भी था खाया । अब शुरू हुआ असली संघर्ष की निगेटिव अकेली मां को कैसे रखें और भेजें तो तुरंत कहाँ पर ? शेष अगली किश्त में .

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