बेहतरीन शायर शकूर अनवर और उनकी बेहतरीन कृति"पथरीली झीलें"
उर्दू अदब से बावस्ता मेरे आस पास कितने ही चेहरे हैं बिलयकीं उनकी
रोशनी अलग अलग दिखाई देती है।अब वो उर्दू अदब की रहनुमाई भी बड़ी खूबसूरती
से कर रहे हैं। उनमें से ही एक है मेरे अज़ीज़ मेरे रफीक शकूर अनवर। सियासत
हो या अदब या समाज होके घर की बात उनकी कहन लाजवाब है।वो अपनी बात बड़ी
साफगोई से रखते हैं--
लोग अक्सर डूब जाते हैं नदी में
इससे बेहतर डूबना है शायरी है। लो एक ओर शे'र-
और किसकी बनी सूरज से/ अपनी भी चल रही है सूरज से । उनकी बात कहने का अंदाज ही अलग है-
हुई हलचल सवेरा जागता है।जिधर देखो उजाला जागता है। सूरज को अपनी
बपोती मानने वाले लोगों पर उर्दू अदब में बहुत से शे'र आये, उनमें अब यह भी
शामिल होगा---
खा गये कुछ लोग सूरज को निगलकर का गये
अब हमारे वास्ते एक धूप का टुकड़ा नहीं ।
शकूर अनवर के पास इसका इलाज भी है।वो एक खूबसूरत मशविरा देते हैं---
चराग़ो से चराग़ो को जलाकर
। बना लो रोशनी का एक लश्कर। यही खासियत है शकूर अनवर की, उन्हें पर्यावरण की चिंता है
कड़ी धूप से जो बचाते रहे/ वो आंगन से अनवर शजर कट गये। यहां वो
बुजुर्ग पीढ़ी के अहसास को भी महसूस करते हैं।उनका जीवन दर्शन लाज़वाब
है---
ज़रा सी जिंदगी से सुख समेटो/मिला है ओस को फूलों का बिस्तर । भ्रष्टाचार पर वो चोट करते हुए कहते हैं-
कहां जाता है पैसा दफ्तरों से/यह जनता पूछती है अफसरों से। उनकी
ग़ज़लों के फलक का विस्तार जानने के लिए उन्हें पढ़ना जरूरी है। उतना ही
ज़रूरी है शकूर अनवर को समझना-
कई मोड़ आये मगर कट गये/इरादे अटल थे सफ़र कट गये। और-। आंधियों से मुकाबला ही रहा/ टूटकर पेड़ से गिरे तो नहीं।
हिन्दी ग़ज़ल पर मेरी हिंदी ग़ज़ल को लेकर दो पुरोधाओं चन्द्र सेन
विराट और कुंवर बैचेन से बात हुई थी ।बरस बीत गए पर भाई शकूर अनवर का यह
मतला चन्द्र सेन विराट के मतलब जैसा है-
जहां भी देखो समस्या,दुराचरण मित्रों
कहीं तो जाके हो, इनका निराकरण मित्रों
यह कृति" पथरीली झीलें" हर रंग की,हर बहर की,हर नज़र की
ग़ज़लों से बावस्ता है।मुक्कमल तादाद में भी है।जो हर सिम्त यह कहती नजर
आती है" कैसा पानी, कैसी रंगत/ क़िस्मत में पथरीली झीलें" शकूर अनवर का रंग
है यह। संभावना प्रकाशन हापुड़ से वर्ष २०१८ में प्रकाशित यह कृति बहुत
सारे पहलूओं पर चर्चा चाहती है।शायर शकूर अनवर को अशेष बधाईयां एवं
शुभकामनाएं। जितेन्द्र निर्मोही
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