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26 जनवरी 2020

हम ख़ुश्किमत है ,हम आज़ाद है ,,हम उससे भी ज़्यादा ख़ुशक़िस्मत है

हम ख़ुश्किमत है ,हम आज़ाद है ,,हम उससे भी ज़्यादा ख़ुशक़िस्मत है ,के इस देश के विधि विधान को संचालित करने ,नियंत्रित करने के लिए हमारे पास एक संविधान है ,,इस संविधान से हमारे देश के मंत्री ,,राष्टपति ,प्रधानमंत्री ,राज्य ,मुख्यमंत्री ,गवर्नर ,सुप्रीमकोर्ट ,हाईकोर्ट ,प्रजा सभी तो संचालित होते है ,,यह गर्व ,क्या अभी ज़िंदा है ,,,बस इसे हमे अपनी अंतरात्मा ,अपने शासक बने लोगों के राजधर्म में तलाशना है ,,छब्बीस जनवरी ,,गणतंत्र ,देश का इकत्तरवां गणतंत्र हम मना रहे है ,या यूँ कहिये , खुशियों के साथ इस गणतंत्र को मनाने की रस्म अदायगी हर साल की तरह से हम करते आ रहे है ,,में जब अख़बार में लिखता था ,तब भी ,और अब जब सोशल मीडिया पर हूँ तब भी ,मुझे सिर्फ एक बात सालती है ,पंद्रह अगस्त ,आज़ादी का दिन ,छब्बीस जनवरी गणतंत्र संविधान को लागु करने का दिन ,हमारे लिए आत्मचिंतन ,अंतरआत्मा की आवाज़ से खुद से पूंछने का दिन है ,क्या जो आज़ादी हमने पूर्वजों की क़ुर्बानी के बाद हमने हांसिल की है ,वोह आज़ादी क्या हम बचा कर रख पा रहे है ,उस आज़ादी का ,स्वाभिमान ,सम्मान क्या हम देख पा रहे है ,,वोह छब्बीस जनवरी जिसे हम ,हमारा अपना सविंधान ,,विश्व का सबसे बढ़ा लोकतंत्र का संविधान ,अंगीकार करने का दिन मनाते है ,, क्या उस संविधान को हमने अपने दिलों में ,दिमाग में ,अपने चालचलन ,राजधर्म में ज़िंदा रखा है ,,इस बारे में हम आत्मचिंतन करते ही ,नहीं ,वोटों की सियासत ,यह नेताओं की भ्रामक बयानबाज़ी ,और यह अखबार ,मीडिया मैनेजमेंट की चुप्पी हमे सही नतीजे पर पहुंचने ही नहीं देती ,,,देश के सिर्फ दो पर्व ,महापर्व ,छब्बीस जनवरी ,पंद्रह अगस्त हमे यह आत्मचिंत का मौक़ा देते है ,,,,लेकिन इन दो दिनों में हम आम लोग तो ,,भ्रम में रहते है ,एक दो दिन की खुशियां ,राष्ट्रभक्ति दिखाते है फिर भूल जाते है , नेता लोग ,नए कपड़े ,जैकेट ,कुर्ते पायजामे सिलवाते है ,भाषण देते है ,कुछ मिठाइयां बटवा देते है और चलते बनते है ,,,कुछ लोग प्रशासन ,सरकार ,विभाग तो कुछ पद्मश्री वगेरा जैसे सम्मान की लाइन में खड़े मिलते है ,यह सब रस्म बन गयी है ,अखबार ,,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस दिन ,,विभागों के विज्ञापनों ,,नेताओं की तारीफे ,निजी कंपनियों ,कोचिंगों के विज्ञापन ,विज्ञापन के दबाव में ,विभागों की उपब्धियां ,पेड़ विभागीय प्रशंसक न्यूज़ ही होती है ,,यह सब पंद्रह अगस्त ,छब्बीस जनवरी को हम लगातार देखते आ रहे है ,एक मज़ेदार बात यह रहती है ,के ,देश के महामहिम राष्ट्रपति ,उन्हें लिखकर दिए गए भाषण को एक पहली क्लास के स्टूडेंट की तरह पढ़ने के लिए मजबूर रहते है ,,राष्ट्र के नाम अभिभाषण जैसा सरकार चाहे उन्हें बोलना पढ़ता है ,खुद की अपनी सोच नहीं ,अपने दफ्तर में करोडो करोड़ रूपये का वेतन प्रतिमाह प्राप्त करने वाले कर्मचारियों जो फीडबैक वोह देखते है ,जो अखबारों मीडिया की खबरे वोह देखते है ,जो शिखायते जो देश की ज्वलंत समस्याए ,सरकारों की नकमयाबिया वोह देखते है ,उन पर नसीहत करने ,मार्गदर्शन करने ,सच बोलने का उनका हक़ इस लोकतंत्र में राष्ट्र के नाम अभिभाषण में जनता के पक्ष में ,होते हुए भी छीन लिया गया है ,,एक पहली क्लास के स्टूडेंट जिसे एक लेख लिखकर सिर्फ पढ़ने के लिए दिया जाता है वोह हालात हो गए है ,,देश में अख़बारों को मीडिया को ,जिला स्तर के अख़बारों ,, मिडिया से लेकर ,उन्हें समानांतर विज्ञापन मिले यह सरकार की ज़िम्मेदारी है ,उसके लिए नीति होना ही चाहिए हर अख़बार ,इलेक्ट्रॉनिक मिडिया को निष्पक्ष विज्ञापन वितरित हो यह होना ही चाहिए ,,,लेकिन यह दो दिन ,राष्ट्र पर्व के ,महापर्व के ,सिर्फ ,और सिर्फ आत्मचिंतन के होना चाहिए ,इसमें अख़बार मर्यादाओं के खिलाफ प्रथम पेज पर विज्ञापन नहीं ,,चालीस प्रतिशत से ज़्यादा विज्ञापन नहीं ,,पेड़ न्यूज़ विभागीय ,निजी कंपनियों के प्रोडक्ट न्यूज़ विज्ञापन नहीं ,सिर्फ यह दो दिन देश पर ,देश के आम नागरिकों पर अहसान के होना चाहिए ,,एक साल में क्या वायदे हुए ,सरकार की संवैधानिक ज़िम्मेदारियाँ क्या थी ,,बेरोज़गारों को कितने रोज़गार मिले ,भूख ,गरीबी ,किसानों को सहूलियतें देने के क्या काम हुए ,,अदालतों में इंसाफ़ में सस्ता ,सुलभ ,त्वरित न्याय की क्या व्यवस्थाएं हुई ,,अस्पतालों की व्यवस्थाये क्या है ,निजी स्कूलों में सुविधाएं क्या है ,,कॉलेज की स्थिति ,,साफ़ सफाई ,सड़कों के हालात ,,सुरक्षा की व्यवस्थाएं ,पुलिस का रवय्या ,ज़ुल्म ज़्यादती के खिलाफ सरकार जवाबदारी ,,क़ानून व्यवस्था ,सरकारी ज़िम्मेदारी ,गणतंत्र को स्थापित रखने के लिए संवैधानिक मर्यादाओं को संरक्षित करते हुए ,राजधर्म का ईमानदारी से पालन सरकारें कर रही है ,या नहीं ,इसका एक रिपोर्ट कार्ड ,ईंमानदार रिपोर्टकार्ड तैयार होना चाहिए ,अगर सरकार ,,सरकार के मंत्रियों ,अधिकारीयों का कामकाज सही है तो उनकी पीठ थपथपाना चाहिए ,नहीं तो ,ऐसे नाकारा , निकम्मे लोगों को ,लानत भेजते हुए भविष्य में बेहतर कामकाज करने के सुझाव भी देना ,चाहिए खुद राष्ट्रपति महोदय अभिभाषण ट्यूटरड होकर पढ़े नहीं ,वोह जो देख रहे है ,जो महसूस कर रहे है ,जो सरकार को राजधर्म निभाने के लिए टिप्स देना चाहते है ,,वोह सुझाव दें ,निगरानी करे ,,सरकार पर जनता के हक़ में ,जनता को उनके अधिकार देने के लिए लगाम कसे ,अख़बारों ,,इलेक्ट्रॉनिक मिडिया का यह दायित्व होना ही चाहिये , क्योंकि आम आदमी तो संविधान के दायरे से बाहर ,होकर जाति ,,धर्म ,समाज ,सम्प्रदाय ,विचारधारा ,पार्टी ,पॉलिटिक्स , नेताओं ,भाईसाहबों की टीमों में खो गया है ,उस आम आदमी को भी ,संविधान के दायरे में ,कर्तव्य पालन ,अधिकारों के लिए संघर्ष ,,,हक़ संघर्ष के लिए फिर लौटाकर लाने के लिए ,लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ को अपनी ज़िम्मेदारी निभाना ही होगी ,,एक प्रधानमंत्री को ,मजबूर करना होगा के वोह ,,इन दो महापर्वों पर ,,जनता की तरफ से ,,अख़बार ,,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में लाइव टेलीकास्ट कार्यक्रमों में ,,आम जनता के तरफ से उठाये गए हर सवाल में कामयाबी ,नाकामयाबी के बारे में जवाब दे ही सही ,अगर ऐसा हुआ ,तो निश्चित तोर पर ,,छब्बीस जनवरी ,,पंद्रह अगस्त ,दो राष्ट्रिय महापर्वों के आत्मचिंतन ,जश्न की सार्थकता ,है ,, इससे देश के स्वाभिमान ,कल्याण ,ज़िम्मेदारी ,जवाबदारी भी तय हो सकेगी ,लेकिन क्या यह संभव है ,,मेरी आलोचना हो सकती है ,मेरे इस आलेख की आलोचना हो सकती है ,,निजी स्वार्थ ,निजी सोच के चलते मेरी यह लेखनी गलत लग सकती है ,लेकिन प्लीज़ एक बार ,सिर्फ एक बार आत्मचिंतन ईमानदारी से ज़रूर करना ,ज़रूर करना ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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